अनुचित तरीके से मुकदमा चलाने पर विधि आयोग की रिपोर्ट | 01 Sep 2018

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विधि आयोग ने “अनुचित तरीके से मुकदमा चलाने (न्याय की हत्या): कानूनी उपाय’’ नामक शीर्षक से एक रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। उल्लेखनीय है कि मई 2017 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने बबलू चौहान@डबलू बनाम दिल्‍ली सरकार, 247 (2018) डीएलटी 31 के मामले में निर्णय देते हुए निर्दोष व्यक्ति के खिलाफ अनुचित मुकदमा चलाने पर चिंता व्यक्त की थी।

प्रमुख बिंदु :

  • इस संदर्भ में दिल्ली उच्च न्यायालय ने अनुचित तरीके से चलाए गए मुकदमे के शिकार लोगों को राहत और पुनर्वास प्रदान करने के लिये एक कानूनी रूपरेखा तैयार करने की तत्‍काल आवश्‍यकता बताई थी तथा विधि आयोग से कहा था कि वह इस मुद्दे की विस्‍तृत जाँच कर सरकार को अपनी सिफारिशें दे। 
  • अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर अनुचित तरीके से मुकदमा चलाने, निर्दोष व्यक्तियों को दोषी ठहराने और जेल में बंद करने जैसे मुद्दे को ‘न्याय की हत्या’ (miscarriage of justice) के रूप में चिह्नित किया गया है। ध्यातव्य है कि ऐसा किसी व्यक्ति को अनुचित तरीके से दोषी ठहराने पर होता है लेकिन बाद में नए तथ्यों के उजागर होने से व्यक्ति को निर्दोष पाया जाता है।
  • नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्‍ट्रीय नियम (The International Covenant on Civil and Political Rights - ICCPR) भी ‘न्याय की हत्या’ के शिकार लोगों को मुआवज़ा देने के लिये सदस्य राष्ट्रों के दायित्वों की बात करता है। उल्लेखनीय है कि भारत ने भी नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्‍ट्रीय नियम की पुष्टि की है।
  • यह रिपोर्ट भारतीय आपराधिक न्‍याय प्रणाली के संदर्भ में इस मुद्दे को देखती है और सिफारिश करती है कि ‘न्याय की हत्या’ के मानकों में अनुचित तरीके से मुकदमा चलाना, गलत तरीके से कैद करना और गलत तरीके से दोष साबित करना आदि शामिल होंगे।
  • जबकि अनुचित मुकदमों में वे मामले शामिल होंगे जिसमें निर्दोष व्यक्ति हो तथा पुलिस/अभियोजन पक्ष ने जाँच में किसी प्रकार की अनियमितता बरती हो तथा व्यक्ति को अभियोजन के दायरे में लाया गया हो। इसमें उन दोनों मामलों को शामिल किया जाएगा जिसमें व्यक्ति द्वारा जेल में समय बिताया गया हो या नहीं बिताया गया हो और जिन मामलों में अभियुक्त को निचली अदालत द्वारा दोषी नहीं पाया गया था या जहाँ आरोपी को एक या एक से अधिक अदालतों द्वारा दोषी पाया गया था लेकिन अंततः उच्च न्यायालय द्वारा दोषी नहीं पाया गया था।
  • आयोग ने अनुचित तरीके से मुकदमा चलाने के मामलों के निपटारे के लिये विशेष कानूनी प्रावधानों को  लागू करने की सिफारिश की है, ताकि अनुचित तरीके से चलाए गए मुकदमें के शिकार लोगों को मौद्रिक और गैर-मौद्रिक मुआवज़े (जैसे परामर्श, मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएँ, व्‍यावसायिक/रोज़गार, कौशल विकास आदि) के मामले में वैधानिक दायरे के भीतर राहत प्रदान की जा सके।
  • रिपोर्ट में अनुशंसित रूपरेखा के प्रमुख सिद्धांतों - ‘अनुचित तरीके से मुकदमा चलाने’ की परिभाषा  और जिन मामलों में मुवाजे का दावा किया गया है उनके फैसले के लिये विशेष अदालतें बनाने, कार्यवाही की प्रकृति – दावों के फैसले के लिये सामयिकता आदि, मुआवज़ा निर्धारित करते समय वित्‍तीय और अन्‍य कारक, कुछ मामलों में अंतरिम मुआवज़े का प्रावधान, गलत तरीके से मुकदमा चलाने/दोषी ठहराने आदि को देखते हुए अयोग्‍यता हटाने जैसी बातों का उल्लेख करता है।