राज्यपाल को पदच्युत करना | 07 Nov 2022 | भारतीय राजनीति
प्रिलिम्स के लिये:
राज्यपाल को हटाने से संबंधित संवैधानिक प्रावधान
मेन्स के लिये:
राज्यपाल-राज्य संबंधों में असहमति के बिंदु, राज्यपाल को हटाना और विभिन्न आयोगों द्वारा संबंधित सिफारिशें
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक राजनीतिक दल ने तमिलनाडु के राज्यपाल को हटाने का प्रस्ताव पेश किया।
- सरकार बनाने के लिये पार्टी का चुनाव, बहुमत साबित करने की समय-सीमा, विधेयकों को लेकर बैठकें और राज्य प्रशासन के बारे में आलोचनात्मक बयान जारी करना हाल के वर्षों में राज्यों तथा राज्यपालों के बीच की कड़वाहट के मुख्य कारण रहे हैं।
- इसके कारण, राज्यपाल को केंद्र के एक एजेंट, कठपुतली और रबर स्टैम्प जैसे नकारात्मक शब्दों के साथ संदर्भित किया जाने लगा है।
राज्यपाल को कैसे हटाया जा सकता है?
- संविधान के अनुच्छेद 155 और 156 के तहत राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है तथा वह "राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत" पद धारण करता है।
- यदि पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा होने से पूर्व इस प्रसादपर्यंतता को वापस ले लिया जाता है, तो राज्यपाल को पद छोड़ना पड़ता है।
- राष्ट्रपति चूँकि प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से काम करता है, इसलिये राज्यपाल को केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया और हटाया जा सकता है।
राज्यों और राज्यपाल के बीच असहमति के मामले में क्या होता है?
- संवैधानिक प्रावधान:
- राज्यपाल और राज्य के बीच मतभेद होने पर इसकी भूमिका के बारे में स्पष्ट संवैधानिक प्रावधान नहीं है।
- मतभेदों का प्रबंधन परंपरागत रूप से एक-दूसरे की सीमाओं के सम्मान द्वारा निर्देशित किया जाता है।
- न्यायालयों के फैसले:
- सूर्य नारायण चौधरी बनाम भारत संघ (1981): राजस्थान उच्च न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रपति की प्रसादपर्यंतता न्यायसंगत नहीं है क्योंकि राज्यपाल के पास कार्यकाल की कोई सुरक्षा नहीं होती है और राष्ट्रपति द्वारा प्रसादपर्यंतता वापस लेने से उसे किसी भी समय हटाया जा सकता है।
- बीपी सिंघल बनाम भारत संघ (2010): सर्वोच्च न्यायालय ने प्रसादपर्यंतता सिद्धांत पर विस्तार से बताया। सर्वोच्च न्यायालय ने बरकरार रखा कि 'प्रसादपर्यंतता' सिद्धांत पर कोई सीमा या प्रतिबंध नहीं है", लेकिन यह "प्रसादपर्यंतता की वापसी के कारण की आवश्यकता को समाप्त नहीं करता है"।
- बेंच ने कहा कि न्यायालय यह मानकर चलेगी कि राष्ट्रपति के पास राज्यपाल को हटाने के लिये "ठोस और वैध" कारण थे लेकिन अगर कोई बर्खास्त किया गया राज्यपाल न्यायालय में आता है, तो केंद्र को अपने फैसले को न्यायोचित ठहराना होगा।
- विभिन्न आयोगों द्वारा की गई सिफारिशें:
- वर्षों से कई पैनल और आयोगों ने राज्यपालों की नियुक्ति और उनके कार्य करने के तरीके में सुधारों की सिफारिश की है। हालाँकि संसद द्वारा उन्हें कभी कानून नहीं बनाया गया।
- सरकारिया आयोग (वर्ष 1988):
- इसने सिफारिश की कि राज्यपालों को "दुर्लभ और बाध्यकारी" परिस्थितियों को छोड़कर पाँच साल का कार्यकाल पूरा करने से पहले बर्खास्त नहीं किया जाना चाहिये।
- बर्खास्त किये जाने की प्रक्रिया में राज्यपालों को स्पष्टीकरण अथवा अपना तर्क प्रस्तुत करने का अवसर मिलना चाहिये और केंद्र सरकार को इस संबंध में स्पष्टीकरण पर उचित विचार करना चाहिये।
- आगे यह सिफारिश की गई है कि राज्यपालों को उनके निष्कासन के आधारों के बारे में सूचित किया जाना चाहिये।
- वेंकटचलैया आयोग (वर्ष 2002):
- इसने सिफारिश की कि आमतौर पर राज्यपालों को अपना पाँच साल का कार्यकाल पूरा करने की अनुमति दी जानी चाहिये।
- यदि उन्हें कार्यकाल पूरा होने से पहले हटाना है तो केंद्र सरकार को मुख्यमंत्री से परामर्श के बाद ही ऐसा करना चाहिये।
- पुंछी आयोग (वर्ष 2010):
- इसने संविधान से "राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत" वाक्यांश को हटाने का सुझाव दिया क्योंकि केंद्र सरकार की इच्छा पर राज्यपाल को हटाया नहीं जाना चाहिये।
- इसके बजाय उसे केवल राज्य विधायिका के प्रस्ताव द्वारा हटाया जाना चाहिये।
आगे की राह
- संघवाद का सुदृढ़ीकरण: राज्यपाल के पद के दुरुपयोग को रोकने के लिये भारत में संघीय व्यवस्था को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
- इस संबंध में अंतर-राज्य परिषद और संघवाद के विकल्प के रूप में राज्यसभा की भूमिका को मज़बूत किया जाना चाहिये।
- राज्यपाल की नियुक्ति की पद्धति में सुधार: राज्यपाल की नियुक्ति राज्य विधायिका द्वारा तैयार किये गए पैनल के आधार पर की जा सकती है, वहीं वास्तविक नियुक्ति का अधिकार अंतर-राज्य परिषद को होना चाहिये, न कि केंद्र सरकार को।
- राज्यपाल के लिये आचार संहिता: इस 'आचार संहिता' में कुछ 'मानदंड और सिद्धांत' निर्धारित किये जाने चाहिये, जो राज्यपाल के 'विवेक' एवं उसकी शक्तियों के प्रयोग हेतु मार्गदर्शन कर सकें।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न
प्रिलिम्स:
प्रश्न. किसी राज्य के राज्यपाल को निम्नलिखित में से कौन सी विवेकाधीन शक्तियाँ प्राप्त हैं? (2014)
- राष्ट्रपति शासन लगाने के लिये भारत के राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेजना
- मंत्रियों की नियुक्ति
- राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कुछ विधेयकों को भारत के राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित रखना
- राज्य सरकार के कामकाज के संचालन के लिये नियम बनाना
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:
(a) केवल 1 और 2 (b) केवल 1 और 3 (c) केवल 2, 3 और 4 (d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (b)
व्याख्या:
- संविधान के अनुच्छेद 163 के अनुसार, राज्यपाल अपनी शक्तियों का प्रयोग मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से करेगा, सिवाय उन कार्यों के जिनमें उसे विवेकाधिकार प्राप्त है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत किसी राज्य का राज्यपाल भारत के राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेज सकता है, जिसमें राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश की जा सकती है। यह राज्यपाल को प्रदान की जाने वाली एक विवेकाधीन शक्ति है। अत: कथन 1 सही है।
- यह मुख्यमंत्री (CM) और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है जो कि उसके प्रसादपर्यंत पद धारण करते हैं। राज्य मंत्रिमंडल में मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल के विवेक पर नहीं होती है। यह केवल औपचारिक रूप से नियुक्ति को मंज़ूरी देता है। इस संदर्भ में विवेकाधिकार मुख्यमंत्री के पास होता है। अत: कथन 2 सही नहीं है।
- राज्यपाल, राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कुछ विधेयकों, जो कि उच्च न्यायालय की स्थिति को ज़ोखिम में डालते हैं, को राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित कर सकता है। इसके अलावा उस स्थिति में राज्यपाल भी विधेयक को सुरक्षित रख सकता है यदि यह संविधान के प्रावधानों के खिलाफ है, राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के विपरीत है, देश के हित के खिलाफ एवं गंभीर राष्ट्रीय महत्त्व का है आदि। अतः कथन 3 सही है।
- यह राज्य सरकार के कामकाज़ के संचालन के लिये नियम बनाता है और मंत्रियों के बीच कार्य का आवंटन करता है लेकिन यह शक्ति राज्यपाल के विवेकाधीन नहीं है। वह मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करता है। अत: कथन 4 सही नहीं है। अतः विकल्प (b) सही है।
मेन्स
प्रश्न. क्या सर्वोच्च न्यायालय का फैसला (जुलाई 2018) उपराज्यपाल और दिल्ली की चुनी हुई सरकार के बीच राजनीतिक संघर्ष को सुलझा सकता है? परीक्षण कीजिये। (2018)
प्रश्न. राज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग के लिये आवश्यक शर्तों की चर्चा कीजिये। राज्यपाल द्वारा अध्यादेशों को विधायिका के समक्ष रखे बिना पुन: प्रख्यापित करने की वैधता पर चर्चा कीजिये। (2022)
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