भारत में शरणार्थी, निर्वासन और संबंधित मुद्दे | 02 Jul 2025

प्रिलिम्स के लिये:

शरणार्थी सम्मेलन, 1951, विदेशी नागरिक अधिनियम, 1946, नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (CAA), रोहिंग्या शरणार्थी, शरणार्थियों के लिये संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त

मेन्स के लिये:

भारत में शरणार्थियों की स्थिति, शरणार्थियों से निपटने के लिये भारत में विधायी ढाँचा, भारत में शरणार्थियों के सामने आने वाली चुनौतियाँ

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं और बांग्लादेश में राजनीतिक घटनाक्रमों के मद्देनज़र, भारत ने विशेष रूप से पूर्वी सीमा पर अवैध प्रवासियों के खिलाफ निर्वासन और प्रत्यावर्तन (सीमा पर वापस भेजने) जैसे उपायों के माध्यम से अपनी कार्रवाई तीव्र कर दी है।

  • हालाँकि इस दौरान भारतीय नागरिकों सहित गलत तरीके से निष्कासन के बढ़ते मामलों ने नागरिकता सत्यापन, विधिक प्रक्रिया और संवैधानिक सुरक्षा उपायों को लेकर गंभीर चिंताएँ उत्पन्न की हैं।

निर्वासन और प्रत्यावर्तन क्या है?

निर्वासन (Deportation)

  • परिचय: निर्वासन एक औपचारिक और विधिक प्रक्रिया है, जिसके तहत किसी विदेशी नागरिक को भारतीय क्षेत्र से निकालना है, यदि वह अवैध रूप से या बिना वैध दस्तावेज़ों के रह रहा हो।
  • प्रक्रिया: पहचान → हिरासत → कानूनी कार्यवाही → पहचान सत्यापन → राजनयिक माध्यमों से प्रत्यावर्तन।
    • विदेशी नागरिक अधिनियम, 1946 और आव्रजन एवं विदेशी अधिनियम, 2025 जैसे कानूनों द्वारा शासित।
  • संलग्न एजेंसियाँ: गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs - MHA), विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (Foreigners Regional Registration Office - FRRO) और संबंधित दूतावास
  • सुरक्षा उपाय: इसमें न्यायिक निगरानी, ​​अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) और अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों का अनुपालन शामिल है।

प्रत्यावर्तन (Pushback)

  • परिचय: प्रत्यावर्तन एक अनौपचारिक या अविधिक प्रक्रिया है, जिसके तहत संदिग्ध विदेशी नागरिकों को अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास से बलपूर्वक वापस भेज दिया जाता है, बिना किसी वैधानिक प्रक्रिया का पालन किये।
  • संचालन: मुख्य रूप से सीमा सुरक्षा बल (BSF) द्वारा, प्रायः संदिग्धों की रोकथाम के स्थान पर ही
  • विधिक स्थिति: यह भारतीय विधि में विधिवत परिभाषित नहीं है, इसमें न्यायिक निगरानी या नागरिकता की पुष्टि नहीं होती।
  • चिंताएँ:
    • विधिक प्रक्रिया का उल्लंघन, पहचान की त्रुटि का जोखिम और मानवाधिकार मानदंडों (जैसे कि गैर-प्रत्यावर्तन सिद्धांत) का उल्लंघन।
    • हाल की घटनाओं में असम और पश्चिम बंगाल से भारतीय नागरिकों को गलत तरीके से वापस भेजने की घटनाएँ शामिल हैं । 

भारत में आप्रवास और विदेशियों को विनियमित करने वाले प्रमुख कानून क्या हैं?

  • आप्रवास और विदेशी अधिनियम, 2025: इसने विदेशी नागरिक अधिनियम (1946), पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम (1920), विदेशियों का पंजीकरण अधिनियम (1939) और आप्रवास (वाहक दायित्व) अधिनियम (2000) जैसे चार पुराने कानूनों को प्रतिस्थापित किया। 
    • इसका उद्देश्य विदेशियों के प्रवेश, निवास और निकास की प्रक्रिया को आधुनिक एवं सुव्यवस्थित बनाना है।
    • प्रवेश और निर्वासन के कड़े प्रावधान: वैध पासपोर्ट/यात्रा दस्तावेज़ अनिवार्य; छूट न मिलने पर वीज़ा की आवश्यकता होती है। राष्ट्रीय सुरक्षा, संप्रभुता, सार्वजनिक स्वास्थ्य या विदेशी संबंधों जैसे आधारों पर प्रवेश से इंकार किया जा सकता है। आप्रवास अधिकारियों के निर्णय अंतिम होते हैं।
    • संस्थागत ढाँचा: यह कानून आप्रवासन ब्यूरो (BoI) को एक वैधानिक निकाय के रूप में स्थापित करता है, जो वीज़ा जारी करने, सीमा नियंत्रण और विदेशियों के पंजीकरण का कार्य करेगा।
    • अनिवार्य रिपोर्टिंग: विदेशियों को पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा। अधिसूचित क्षेत्रों में होटलों, शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों और गृहस्वामियों को विदेशी नागरिकों की जानकारी देना आवश्यक होगा।
    • आवागमन प्रतिबंध: संरक्षित/प्रतिबंधित/निषिद्ध क्षेत्रों (जैसे सीमावर्ती क्षेत्र, रणनीतिक स्थल) में प्रवेश के लिये विशेष अनुमति आवश्यक होगी। विदेशी नागरिक सरकार की अनुमति के बिना अपना नाम नहीं बदल सकते और उनके आवागमन पर सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाया जा सकता है
    • दंड: अनधिकृत प्रवेश पर अधिकतम 5 वर्ष का कारावास या 5 लाख रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
  • आप्रवासी (असम से निष्कासन) अधिनियम, 1950:  यह अधिनियम विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से असम में हुए भारी प्रवासन को नियंत्रित करने के उद्देश्य से बनाया गया था।
    • हालाँकि यह अधिनियम संपूर्ण भारत पर लागू होता है, लेकिन इसमें असम के लिये विशेष प्रावधान हैं, जो केंद्र सरकार को यह अधिकार देते हैं कि वह उन व्यक्तियों या समूहों को भारत से या विशेष रूप से असम से निष्कासित कर सकें, जो सामान्यतः भारत के बाहर निवास करते थे और जिनकी उपस्थिति सार्वजनिक हित या असम में अनुसूचित जनजातियों के लिये हानिकारक मानी जाए।
    • धारा 2 के अंतर्गत अधिकारियों को यह अधिकार प्राप्त है कि वे ऐसे व्यक्तियों को निर्धारित समय और मार्ग के भीतर भारत या असम छोड़ने का आदेश दे सकें।
  • विदेशी पंजीकरण: वे विदेशी नागरिक (जिसमें भारतीय मूल के व्यक्ति भी शामिल हैं), जिन्हें 180 दिनों से अधिक का दीर्घकालिक वीज़ा प्राप्त है, उन्हें FRRO (विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण अधिकारी) के पास पंजीकरण कराना अनिवार्य है।
  • नागरिकता अधिनियम, 1955: यह अधिनियम नागरिकता की प्राप्ति, त्याग और पंजीकरण से संबंधित मामलों को नियंत्रित करता है, जिसमें भारतीय प्रवासी नागरिक (OCI) से जुड़े प्रावधान भी शामिल हैं।

भारत की शरणार्थी नीति

  • भारत वर्ष 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन या उसके वर्ष 1967 के प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है और देश में कोई विशिष्ट शरणार्थी कानून भी मौजूद नहीं है।
    • भारत ने इस सम्मेलन पर हस्ताक्षर करने से इसलिये परहेज़ किया है, क्योंकि इसकी परिभाषा संकीर्ण और यूरोप-केंद्रित मानी जाती है, जो आर्थिक प्रवासियों को शामिल नहीं करती तथा दक्षिण एशियाई परिस्थितियों के अनुरूप नहीं है।
    • इसके अतिरिक्त, भारत को यह आशंका भी है कि इस तरह के बाध्यकारी दायित्व उसकी संप्रभुता से समझौता कर सकते हैं, आंतरिक सुरक्षा को प्रभावित कर सकते हैं और शरणार्थी संरक्षण के लिये अपनाई गई अस्थायी, मानवीय दृष्टिकोण वाली नीति पर अंकुश लगा सकते हैं।
  • म्याँमार, अफगानिस्तान और श्रीलंका जैसे देशों से आए शरणार्थियों को विदेशी नागरिक अधिनियम, 1946 के अंतर्गत नियंत्रित किया जाता है, लेकिन उन्हें कोई विशेष विधिक सुरक्षा प्राप्त नहीं होती।
  • राज्य सरकारें स्वतंत्र रूप से शरणार्थी दर्जा प्रदान नहीं कर सकतीं, जिससे भारत की केंद्रीकृत और अस्थायी नीति की पुष्टि होती है, जो मानवीय सहायता तो प्रदान करती है, लेकिन विधिक मान्यता या अधिकार नहीं देती

सीमा आवागमन के लिये विशेष प्रावधान

  • नेपाल: भारत-नेपाल शांति और मैत्री संधि (1950) नागरिकों को बिना वीज़ा के स्वतंत्र आवागमन की अनुमति देती है।
  • म्याँमार: मुक्त आवागमन व्यवस्था (FMR) दोनों पक्षों की सीमा से 10 किलोमीटर के भीतर रहने वाले लोगों को बिना वीज़ा के सीमा पार करने की अनुमति देती है।
    • वर्ष 2023 की मणिपुर में हुई हिंसा के पश्चात्, गृह मंत्रालय (MHA) ने अवैध प्रवासन पर रोक लगाने के लिये 1,643 कि.मी. लंबी भारत-म्याँमार सीमा पर बाड़ लगाने का निर्णय लिया।
  • बांग्लादेश और पाकिस्तान: पासपोर्ट और वीज़ा द्वारा नियंत्रित आवागमन; मुक्त आवागमन व्यवस्था (FMR) लागू नहीं है।

निर्वासन और प्रत्यावर्तन से जुड़ी प्रमुख समस्याएँ क्या हैं और निष्पक्ष तथा विधिक दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के उपाय क्या हैं?

निर्वासन और प्रत्यावर्तन से संबंधित समस्याएँ

  • विधिसम्मत प्रक्रिया का अभाव: विदेशी अधिकरण (FT) प्रायः व्यक्ति को विदेशी मान लेते हैं और प्रमाण का भार अभियुक्त पर डालते हैं, जिसके पास अपनी पहचान स्थापित करने के लिये आवश्यक साधन नहीं होते।
    • प्रत्यावर्तन, एक अतिरिक्त विधिक प्रक्रिया के रूप में, अभियुक्त को निष्पक्ष सुनवाई से वंचित करता है, जिससे ऐसे निर्णय लिये जाते हैं, जो प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन करते हैं।
  • हाशिये पर रह रहे समूहों पर प्रभाव: आदिवासी, प्रवासी श्रमिक और निर्धन वर्ग, जिनके पास दस्तावेज़ रखने की सबसे कम संभावना होती है, सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। नागरिकता जन्म या निवास के आधार पर न होकर दस्तावेज़ों पर आधारित शर्त बन जाती है।
    • उदाहरण: असम NRC से लगभग 20 मिलियन लोग बाहर कर दिये गए, जिससे सभी समुदाय प्रभावित हुए और यह स्पष्ट हुआ कि यह प्रक्रिया केवल विदेशी नागरिकों को बाहर करने तक सीमित नहीं थी।
  • कमज़ोर सुरक्षा उपाय और न्यायिक निगरानी: प्रत्यावर्तन जैसी अतिरिक्त विधिक प्रक्रियाएँ प्रायः विधिसम्मत प्रक्रिया को दरकिनार कर देती हैं और न्यायिक परीक्षण की सीमा को घटा देती हैं, जिससे उत्तरदायित्व एवं सांविधानिक संतुलन और नियंत्रण पर गंभीर प्रश्न उठते हैं।
  • विधिक व्याख्याओं का दुरुपयोग: अधिकारियों ने निर्वासन को उचित ठहराने के लिये असम लोक व्यवस्था अनुरक्षण अधिनियम, 1950 जैसे पुराने कानूनों का हवाला दिया है।
    • उदाहरण: असम में अधिकारियों ने निर्वासन की कार्रवाई को उचित ठहराने के लिये उच्चतम न्यायालय के एक निर्णय का हवाला दिया। हालाँकि विधिसम्मत प्रक्रिया के बिना किया गया निर्वासन निष्पक्षता और न्याय के संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करता है तथा व्यक्तियों को मतदान, निवास और वापसी जैसे अधिकारों से वंचित कर देता है।

न्यायसंगत और विधिसम्मत निर्वासन एवं प्रत्यावर्तन सुनिश्चित करने हेतु उपाय

  • विधि का शासन: सभी निर्वासन और प्रत्यावर्तन की कार्रवाइयों में विधिसम्मत प्रक्रिया का पालन सुनिश्चित किया जाए, जिसमें अनुच्छेद 14 और 21 के तहत संवैधानिक सुरक्षा उपायों का अनुपालन शामिल हो, जैसे कि उचित पहचान सत्यापन, न्यायिक पुनरावलोकन और विधिक उपायों तक पहुँच।
  • संस्थागत सुदृढ़ीकरण: विदेशी अधिकरणों (FT) की कार्यप्रणालियों में सुधार और मानकीकरण किया जाए, जिसमें प्रशिक्षित सदस्य, प्रक्रियात्मक पारदर्शिता और नियमित ऑडिट शामिल हों, ताकि गलत वर्गीकरण को रोका जा सके और उत्तरदायित्व बढ़ाया जा सके।
  • मानवीय दृष्टिकोण: राष्ट्रीय सुरक्षा और मानवाधिकारों के बीच संतुलन बनाया जाए, सामान्य पूर्वधारणाओं से बचा जाए और प्रभावित वर्गों की सामाजिक-आर्थिक संवेदनशीलताओं को मान्यता दी जाए; विशेष रूप से असम और पश्चिम बंगाल जैसे सीमा राज्यों में निष्पक्ष प्रक्रिया अपनाई जाए।
  • विधिक स्पष्टता एवं नीतिगत ढाँचा: निर्वासन (जो कि विधिक है) और प्रत्यावर्तन (जो कि अतिरिक्त विधिक है) के बीच स्पष्ट अंतर किया जाए; आप्रवास एवं विदेशियों अधिनियम, 2025 के अंतर्गत कानूनों का समन्वय किया जाए।
    • भारत को पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों जैसे नॉन-रिफाउलमेंट सिद्धांत के अनुरूप निर्वासन और प्रत्यावर्तन पर एक समर्पित नीति अपनानी चाहिये।

निष्कर्ष

हालाँकि निर्वासन और प्रत्यावर्तन राष्ट्रीय सुरक्षा बनाए रखने और अवैध प्रवासन को नियंत्रित करने के महत्त्वपूर्ण उपकरण हैं, फिर भी इन्हें निष्पक्षता, विधिसम्मत प्रक्रिया और प्राकृतिक न्याय जैसे संवैधानिक सिद्धांतों का पालन करना चाहिये। गलत निर्वासन को रोकने के लिये विधिक सुरक्षा उपायों को सुदृढ़ करना, न्यायिक निगरानी सुनिश्चित करना और अधिकार-आधारित दृष्टिकोण को बढ़ावा देना अत्यंत आवश्यक है। एक संतुलित ढाँचा व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करते हुए संप्रभुता को बनाए रखेगा और भारत की लोकतांत्रिक तथा विधिक प्रतिबद्धताओं को सुदृढ़ करेगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

Q. क्या भारत के आप्रवासन कानून गलत निर्वासन के विरुद्ध पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करते हैं? हाल के भारतीय नागरिकों से जुड़े घटनाक्रमों के संदर्भ में समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2016)

क्र. सं.

समाचारों में कभी-कभी उल्लिखित समुदाय

किसके मामले में

1

कुर्द

बांग्लादेश

2

मधेसी

नेपाल

3

रोहिंग्या

म्याॅंमार

उपर्युक्त में से कौन-सा/से युग्म सही सुमेलित है/हैं?

(a) 1 और 2
(b) केवल 2
(c) 2 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (c)


मेन्स

प्रश्न. "शरणार्थियों को उस देश में वापस नहीं लौटाया जाना चाहिये, जहाँ उन्हें उत्पीड़न अथवा मानवाधिकारों के उल्लंघन का सामना करना पड़ेगा।" खुले समाज और लोकतांत्रिक होने का दावा करने वाले किसी राष्ट्र के द्वारा नैतिक आयाम के उल्लंघन के संदर्भ में इस कथन का परीक्षण कीजिये। (2021)

प्रश्न. बड़ी परियोजनाओं के नियोजन के समय मानव बस्तियों का पुनर्वास एक महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक संघात है, जिस पर सदैव विवाद होता है। विकास की बड़ी परियोजनाओं के प्रस्ताव के समय इस संघात को कम करने के लिये सुझाए गए उपायों पर चर्चा कीजिये। (2016)

प्रश्न. पिछले चार दशकों में, भारत के भीतर और भारत के बाहर श्रमिक प्रवसन की प्रवृत्तियों में परिवर्तनों पर चर्चा कीजिये। (2015)