वामपंथी उग्रवाद से संबंधित हिंसा में कमी | 27 Sep 2021

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल, समाधान (SAMADHAN)

मेन्स के लिये:

वामपंथी उग्रवाद से संबंधित हिंसा और उसका कारण

चर्चा में क्यों?

‘गृह मंत्रालय’ (MHA) द्वारा उपलब्ध आँकड़ों के मुताबिक, देश में ‘वामपंथी उग्रवाद’ (LWE) से संबंधित हिंसा और इसके प्रभाव के भौगोलिक प्रसार में लगातार गिरावट आई है।

  • माओवादियों का भौगोलिक प्रभाव देश के केवल 41 ज़िलों तक सिमट कर रह गया है, जो कि वर्ष 2010 में 10 राज्यों के 96 ज़िलों तक विस्तृत था।
  • वामपंथी उग्रवाद की घटनाएँ भी वर्ष 2009 के 2,258 से घटकर अगस्त 2021 तक 349 हो गई हैं।

प्रमुख बिंदु

  • भारत में वामपंथी उग्रवाद:
    • वामपंथी उग्रवाद को दुनिया भर में माओवादी और भारत में नक्सलवादी के रूप में जाना जाता है।
    • भारत में नक्सली हिंसा की शुरुआत वर्ष 1967 में पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग ज़िले के नक्सलबाड़ी नामक गाँव से हुई और इसीलिये इस उग्रपंथी आंदोलन को ‘नक्सलवाद’ के नाम से जाना जाता है।
      • ज़मींदारों द्वारा छोटे किसानों के उत्पीड़न पर अंकुश लगाने के लिये सत्ता के खिलाफ चारू मजूमदार, कानू सान्याल और कन्हाई चटर्जी द्वारा शुरू किये गए इस सशस्त्र आंदोलन को नक्सलवाद का नाम दिया गया।
    • यह आंदोलन छत्तीसगढ़, ओडिशा और आंध्र प्रदेश जैसे पूर्वी भारत के कम विकसित राज्यों में फैल गया।
    • यह माना जाता है कि नक्सली माओवादी राजनीतिक भावनाओं और विचारधारा का समर्थन करते हैं।
      • माओवाद, साम्यवाद का एक रूप है जिसे माओ त्से तुंग द्वारा विकसित किया गया। इस सिद्धांत के समर्थक सशस्त्र विद्रोह, जनसमूह और रणनीतिक गठजोड़ के संयोजन से राज्य की सत्ता पर कब्ज़ा करने में विश्वास रखते हैं।
      • वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्र को ‘रेड कॉरिडोर’ कहा जाता है।
  • वामपंथी उग्रवाद का कारण:
    • आदिवासी असंतोष:
      • वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 का उपयोग आदिवासियों को लक्षित करने के लिये किया गया है, जो अपने जीवन यापन हेतु वनोपज पर निर्भर हैं।
      • विकास परियोजनाओं, खनन कार्यों और अन्य कारणों की वजह से नक्सलवाद प्रभावित राज्यों में व्यापक स्तर पर जनजातीय आबादी का विस्थापन हुआ है।
    • माओवादियों के लिये आसान लक्ष्य: 
      • ऐसे लोग जिनके पास जीवन जीने का कोई स्रोत नहीं है, उन्हें माओवादियों द्वारा आसानी से अपने साथ कर लिया जाता है।
      • माओवादी ऐसे लोगों को हथियार, गोला-बारूद और पैसा मुहैया कराते हैं।
    • देश की सामाजिक-आर्थिक प्रणाली में अंतराल:
      • सरकार नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में किये गए विकास के बजाय हिंसक हमलों की संख्या के आधार पर अपनी सफलता को मापती है।
        • नक्सलियों से लड़ने के लिये मज़बूत तकनीकी बुद्धिमत्ता का अभाव है।
      • उदाहरण के लिये ढाँचागत समस्याएँ, कुछ गाँव अभी तक किसी भी संचार नेटवर्क से ठीक से जुड़ नहीं पाए हैं।
    • प्रशासन की तरफ से कोई जाँच नहीं:  
      • यह देखा गया है कि पुलिस द्वारा किसी क्षेत्र पर कब्ज़ा करने के बाद भी प्रशासन उस क्षेत्र के लोगों को आवश्यक सेवाएंँ प्रदान करने में विफल रहता है।
      • नक्सलवाद से एक सामाजिक मुद्दे या सुरक्षा खतरे के रूप में निपटने पर भ्रम की स्थिति।
  • नक्सली गतिविधियों की जांँच के लिये सरकार की पहल:
    • 2015 में राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना: इसमें सुरक्षा उपायों, विकास पहलों और स्थानीय समुदायों के अधिकारों को सुनिश्चित करने वाले बहु-आयामी दृष्टिकोण शामिल हैं।
      • गृह मंत्रालय (MHA) केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) बटालियनों की तैनाती, हेलीकॉप्टरों और यूएवी तथा भारतीय रिज़र्व बटालियनों (IRBs)/विशेष भारत रिज़र्व बटालियनों (SIRBs) की मंज़ूरी के माध्यम से राज्य सरकारों को व्यापक समर्थन प्रदान कर रहा है।
      • राज्य पुलिस के आधुनिकीकरण और प्रशिक्षण हेतु, पुलिस बल आधुनिकीकरण (Modernization of Police Force-MPF), सुरक्षा संबंधी व्यय (Security Related Expenditure-SRE) व विशेष बुनियादी ढांँचा योजनाओं (Special Infrastructure Scheme-SIS) के तहत धन उपलब्ध कराया जाता है।
      • सड़कों के निर्माण, मोबाइल टावरों की स्थापना, कौशल विकास, बैंकों और डाकघरों के नेटवर्क में सुधार, स्वास्थ्य एवं शिक्षा सुविधाओं के लिये कई विकास पहलें लागू की गई हैं।
      • विशेष केंद्रीय सहायता (Special Central Assistance- SCA) योजना के तहत अधिकांश वामपंथी उग्रवाद प्रभावित ज़िलों को विकास के लिये धन भी प्रदान किया जाता है।
    • ग्रेहाउंड्स: वर्ष 1989 में इसे एक विशिष्ट नक्सल विरोधी बल के रूप में स्थापित किया गया था।
    • ऑपरेशन ग्रीन हंट: इसे वर्ष 2009-10 में शुरू किया गया था जिसके तहत नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बलों की भारी तैनाती की गई थी।
    • वामपंथी उग्रवाद (LWR) मोबाइल टावर परियोजनाः सरकार द्वारा वर्ष 2014 में वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित राज्य क्षेत्रो में मोबाइल संपर्क में सुधार करने हेतु  मोबाइल टावरों की स्थापना को मंज़ूरी दी गई थी।
    • आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम: इसे वर्ष 2018 में शुरू किया गया, इसका उद्देश्य उन ज़िलों में तीव्रता से सुधार करना है जिन्होंने प्रमुख सामाजिक क्षेत्रों में अपेक्षाकृत कम प्रगति दिखाई है।
    • समाधान (SAMADHAN):
      • इसका अर्थ है:
        • S- स्मार्ट लीडरशिप।
        • A- आक्रामक रणनीति।
        • M- प्रेरणा और प्रशिक्षण।
        • A- एक्शनेबल इंटेलिजेंस।
        • D- डैशबोर्ड आधारित मुख्य प्रदर्शन संकेतक (KPIs) और मुख्य परिणाम क्षेत्र (KRAs)
        • H- हार्नेसिंग टेक्नोलॉजी।
        • A- प्रत्येक थिएटर/नाटकशाला हेतु कार्य योजना।
        • N- वित्तपोषण तक पहुंँच नहीं।
      • यह सिद्धांत वामपंथी उग्रवाद की समस्या का एकमात्र समाधान है। इसमें विभिन्न स्तरों पर तैयार की गई अल्पकालिक से लेकर दीर्घकालिक नीतियाँ में सरकार की पूरी रणनीति शामिल है।

आगे की राह

  • यद्यपि हाल के दिनों में वामपंथी उग्रवाद की घटनाओं में कमी आई है लेकिन ऐसे समूहों को समाप्त करने के लिये निरंतर प्रयास और ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • IED (इम्प्रोवाइज़्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) से संबंधित घटनाओं को रोकने के लिये नवीन उपायों को नियोजित करने की आवश्यकता है, इससे हाल के वर्षों में महत्त्वपूर्ण घटनाओं को अंज़ाम दिया गया है।
  • कानून और व्यवस्था बनाए रखने में राज्य महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिये स्थानीय पुलिस बलों के क्षमता निर्माण और आधुनिकीकरण पर ज़ोर दिया जाना चाहिये। स्थानीय प्रशासन वामपंथी उग्रवादी संगठनों को कुशलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से बेअसर कर सकता है।
  • वामपंथी उग्रवाद के जाल में फँसे निर्दोष व्यक्तियों को मुख्यधारा में लाने के लिये राज्यों को अपनी आत्मसमर्पण नीति को युक्तिसंगत बनाना चाहिये।
  • राज्यों को भी वामपंथी उग्रवाद समूहों को पूरी तरह से समाप्त करने और प्रभावित क्षेत्रों के सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करने के लिये एक केंद्रित समयबद्ध दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
  • सरकार को सुरक्षाकर्मियों के जीवन के नुकसान को कम करने के लिये ड्रोन के उपयोग जैसे तकनीकी समाधान करने की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू