RECLAIM फ्रेमवर्क | 05 Jul 2025
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
कोयला मंत्रालय ने समावेशी सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से न्यायसंगत और सतत् खदान बंदी सुनिश्चित करने के लिये RECLAIM (रिक्लेम) फ्रेमवर्क की शुरुआत की है।
RECLAIM फ्रेमवर्क क्या है?
- परिचय: यह एक भारत-विशिष्ट नीतिगत उपकरण है जिसे कोयला नियंत्रक संगठन (कोयला मंत्रालय) द्वारा हार्टफुलनेस इंस्टीट्यूट के सहयोग से विकसित किया गया है। इसका उद्देश्य समावेशी और सतत् खदान बंदी के लिये मार्गदर्शन प्रदान करना है।
- उद्देश्य: खान प्रभावित समुदायों के लिये न्यायसंगत, समावेशी और स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप परिवर्तन सुनिश्चित करना, जिसमें सामुदायिक भागीदारी, पारिस्थितिक पुनर्स्थापन तथा दीर्घकालिक सामाजिक-आर्थिक पुनर्प्राप्ति को बढ़ावा दिया जाता है।
- यह लैंगिक समावेशिता, सुभेद्य समूहों और पंचायत राज संस्थानों के साथ समन्वय पर ध्यान केंद्रित करता है ताकि खनन के बाद की अर्थव्यवस्थाओं को मज़बूत बनाया जा सके।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- यह स्थानीय भागीदारी के माध्यम से सामुदायिक केंद्रित योजना को बढ़ावा देता है, जिसमें लैंगिक समानता, सुभेद्य समूहों और आजीविका के विविधीकरण पर विशेष ज़ोर दिया गया है।
- यह पंचायती राज संस्थाओं और स्थानीय शासन संरचनाओं के साथ समन्वय स्थापित कर संस्थागत एकता सुनिश्चित करता है तथा भारत के खनन क्षेत्रों के अनुसार अनुकूलित कार्यान्वयन योग्य, क्षेत्र-प्रमाणित उपकरण व कार्यप्रणालियाँ प्रदान करता है।
- कार्यान्वयन के चरण: पूर्व-बंदी चरण (आवश्यकताओं का आकलन, क्षमता निर्माण), बंदी चरण (सहभागी योजना क्रियान्वयन) और बंदी के बाद का चरण (निगरानी, आजीविका सहायता, परिसंपत्ति पुनप्रयोजन)।
- महत्त्व:
- खदान बंदी के सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभावों को कम करता है।
- सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) का समर्थन करता है तथा पारदर्शिता, जवाबदेही और विश्वास को बढ़ावा देता है।
- यह अन्य संसाधन-निर्भर क्षेत्रों और राज्यों के लिये अनुकरणीय मॉडल के रूप में कार्य करता है।
कोयला खदानों की बंदी से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- नीति और व्यवहार के बीच अंतर: वर्ष 2009 से खदान बंदी के दिशानिर्देश होने के बावजूद अब तक केवल 3 कोयला खदानों को औपचारिक रूप से बंद किया गया है।
- वर्ष 2024 तक की स्थिति में 299 गैर-परिचालन खदानों में से केवल 8 ने बंदी के लिये आवेदन किया, जबकि शेष खदानें वैज्ञानिक तरीके से बंद किये बिना परित्यक्त या बंद पड़ी हैं, इससे पर्यावरणीय क्षरण, मीथेन उत्सर्जन और दुर्घटनाओं व अवैध खनन का खतरा बढ़ गया है।
- उचित पुनर्वास की कमी: अस्थिर खनन प्रथाएँ और स्थानीय संसाधनों का क्षरण बेरोज़गारी तथा जबरन पलायन उत्पन्न करती है, जिससे खदान बंदी के दौरान सामुदायिक क्षमता व संसाधनों की उपलब्धता कम हो गई है। इससे स्थानीय भागीदारी कमज़ोर होती है और प्रभावी एवं समावेशी बंदी को लागू करना एक बड़ी चुनौती बन जाता है।
- भूमि वापसी ढाँचे की कमी: स्पष्ट खदान बंदी और भूमि वापसी नीति के अभाव में, खदानों की भूमि प्रायः अन्य विभागों को सौंप दी जाती है या नवीकरणीय परियोजनाओं में लगा दी जाती है, बिना वैज्ञानिक बंदी या सामुदायिक परामर्श के। इससे न्यायसंगत परिवर्तन की प्रक्रिया में देरी होती है, विशेष रूप से झारखंड जैसे राज्यों में।
- कोयला धारक क्षेत्र (CBA) संशोधन विधेयक, 2024 में अप्रयुक्त भूमि को मूल मालिकों को लौटाने का प्रस्ताव है, लेकिन इसके क्रियान्वयन की स्पष्टता का अभाव है।
- प्रौद्योगिकीय एवं आर्थिक चुनौतियाँ: भारत की खदान बंदी योजनाएँ मुख्यतः तकनीकी दृष्टिकोण पर आधारित हैं, जो सामाजिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय न्याय जैसे महत्त्वपूर्ण पहलुओं की अनदेखी करती हैं।
- उच्च एस्क्रो आवश्यकताएँ (खुली खदानों के लिये ₹14 लाख प्रति हेक्टेयर) खदान संचालकों को खदान बंदी गतिविधियाँ अपनाने से हतोत्साहित करती हैं।
कोयला:
- परिचय: कोयला एक जीवाश्म ईंधन है, जो प्राचीन वनस्पतियों के अवशेषों से बना हुआ अवसादी शैल (sedimentary rock) के रूप में पाया जाता है। इसे उसकी उच्च आर्थिक महत्ता के कारण प्रायः 'काला सोना' भी कहा जाता है।
- यह एक पारंपरिक ऊर्जा स्रोत है, जिसका व्यापक उपयोग घरेलू ईंधन, तापीय विद्युत उत्पादन, तथा लोहा-इस्पात उद्योग और रेलवे के भाप इंजनों जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में किया जाता है।
- वैश्विक उत्पादक: वर्ष 2025 तक, कोयले के शीर्ष 5 उत्पादक देश - चीन, भारत, इंडोनेशिया, संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस हैं।
- भारत में कोयला वितरण:
- गोंडवाना कोयला क्षेत्र: गोंडवाना कोयला भारत के कुल कोयला भंडार का 98% और उत्पादन का 99% योगदान देता है। यह उच्च गुणवत्ता वाला तथा धातु शोधन-ग्रेड (metallurgical-grade) कोयला प्रदान करता है।
- प्रमुख कोयला भंडार दामोदर (झारखंड–पश्चिम बंगाल), महानदी (छत्तीसगढ़–ओडिशा), गोदावरी (महाराष्ट्र) और नर्मदा (मध्य प्रदेश) घाटियों में स्थित हैं।
- तृतीयक कोयला क्षेत्र: तृतीयक कोयला क्षेत्र (15–60 मिलियन वर्ष पुराने) में कार्बन की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है, लेकिन इनमें नमी और सल्फर की मात्रा अधिक पाई जाती है।
- ये मुख्यतः - असम, मेघालय, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, दार्जिलिंग तराई (पश्चिम बंगाल), राजस्थान, उत्तर प्रदेश और केरल जैसे प्रायद्वीपीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- गोंडवाना कोयला क्षेत्र: गोंडवाना कोयला भारत के कुल कोयला भंडार का 98% और उत्पादन का 99% योगदान देता है। यह उच्च गुणवत्ता वाला तथा धातु शोधन-ग्रेड (metallurgical-grade) कोयला प्रदान करता है।
- कोयले का वर्गी करण:
- एन्थ्रेसाइट (80–95%): सबसे अधिक मात्रा में कार्बन; जम्मू और कश्मीर में सीमित उपस्थिति।
- बिटुमिनस (60–80%): सबसे प्रचुर मात्रा में, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश में पाया जाता है।
- लिग्नाइट (40–55%): निम्न श्रेणी, उच्च नमी, तमिलनाडु, राजस्थान और असम (लखीमपुर) में पाया जाता है।
- पीट (<40%): कोयले के निर्माण की प्रारंभिक अवस्था है; इसमें ऊष्मा उत्पादन क्षमता बहुत कम होती है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: भारत में कोयला खदानों की अवैज्ञानिक बंदी के सामाजिक-आर्थिक एवं पारिस्थितिकीय प्रभावों का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। RECLAIM फ्रेमवर्क इन समस्याओं के समाधान हेतु किस प्रकार कार्य करता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (A) मेन्सप्रश्न. गोंडवानालैंड के देशों में से एक होने के बावजूद भारत के खनन उद्योग अपने सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में बहुत कम प्रतिशत का योगदान देते हैं। विवेचना कीजिये। (2021) प्रश्न. "प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव के बावजूद, कोयला खनन विकास के लिए अभी भी अपरिहार्य है।" विवेचना कीजिये। (2017) |