‘आरबीआई रिटेल डायरेक्ट’ योजना | 13 Jul 2021

प्रिलिम्स के लिये

‘आरबीआई रिटेल डायरेक्ट’ योजना, खुदरा निवेशक, खुदरा प्रत्यक्ष गिल्ट खाता, सरकारी प्रतिभूतियाँ

मेन्स के लिये

भारतीय सरकारी प्रतिभूति बाज़ार, सरकारी प्रतिभूति में खुदरा निवेश बढ़ाने के उपाय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने ‘आरबीआई रिटेल डायरेक्ट’ योजना की घोषणा की है।

  • फरवरी 2021 में रिज़र्व बैंक ने खुदरा निवेशकों को सरकारी प्रतिभूतियों (जी-सेक) में प्रत्यक्ष निवेश करने की सुविधा प्रदान करने हेतु केंद्रीय बैंक के साथ गिल्ट प्रतिभूति खाता खोलने की अनुमति देने का प्रस्ताव रखा था।

प्रमुख बिंदु

‘आरबीआई रिटेल डायरेक्ट’ योजना

  • इस योजना के तहत व्यक्तिगत खुदरा निवेशकों को भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ 'खुदरा प्रत्यक्ष गिल्ट खाता' (RDG Account) खोलने और उसे नियंत्रित करने की सुविधा प्रदान की जाएगी।
    • खुदरा निवेशक एक गैर-पेशेवर निवेशक होता है, जो प्रतिभूतियों या फंडों, जिसमें म्यूचुअल फंड और एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ETF) आदि शामिल हैं, को खरीदता एवं बेचता है।
    • एक गिल्ट खाते की तुलना बैंक खाते से की जा सकती है, किंतु इस खाते में पैसे के बजाय ट्रेज़री बिल या सरकारी प्रतिभूतियों को डेबिट या क्रेडिट किया जाता है।
  • गिल्ट खाते इस योजना के प्रयोजन के उद्देश्य से उपलब्ध कराए गए ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से खोले जा सकते हैं।
  • यह ऑनलाइन पोर्टल पंजीकृत उपयोगकर्त्ताओं को सरकारी प्रतिभूतियों के प्राथमिक जारीकर्त्ता और ‘नेगोशिएटेड डीलिंग सिस्टम-ऑर्डर मैचिंग सिस्टम’ (NDS-OM) तक पहुँच प्रदान करेगा।
    • रिज़र्व बैंक ने अगस्त 2005 में ‘नेगोशिएटेड डीलिंग सिस्टम-ऑर्डर मैचिंग सिस्टम’ की शुरुआत की थी। यह सरकारी प्रतिभूतियों में लेनदेन के लिये एक इलेक्ट्रॉनिक, स्क्रीन आधारित, ऑर्डर संचालन व्यापार प्रणाली है।
  • यह व्यक्तिगत निवेशकों के लिये सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश की सुविधा को आसान बनाने हेतु वन-स्टॉप समाधान है। 
    • रिज़र्व बैंक, वाणिज्यिक बैंकों एवं म्यूचुअल फंड से परे सरकारी ऋण प्रतिभूतियों के स्वामित्व का प्रजातंत्रीकरण (Democratize ) करना चाहता है।

वर्तमान सरकारी प्रतिभूति (G-sec) बाज़ार:

  • सरकारी प्रतिभूति बाज़ार में संस्थागत निवेशकों का दबदबा है जो बैंक, म्युचुअल फंड और बीमा कंपनियों जैसे बड़े बाज़ारों को नियंत्रित करते हैं।
    • ये संस्थाएँ 5 करोड़ रुपए या उससे अधिक आकार में व्यापार करती हैं।
  • इसलिये ऐसे छोटे निवेशक जो छोटे आकार में व्यापार करना चाहते हैं, उनके लिये द्वितीयक बाज़ार में तरलता की कमी है।
    • प्राथमिक बाज़ार वे होते है जहाँ प्रतिभूतियाँ बनाई जाती हैं, जबकि द्वितीयक बाज़ार वह होता है जहाँ निवेशकों द्वारा उन प्रतिभूतियों का कारोबार किया जाता है।
  • उनके लिये अपने निवेश से बाहर निकलने का कोई आसान तरीका नहीं होता है। इस प्रकार वर्तमान में प्रत्यक्ष सरकारी प्रतिभूतियों का व्यापार खुदरा निवेशकों के बीच लोकप्रिय नहीं है।

लाभ:

  • ईज़ ऑफ एक्सेस में सुधार (Improved Ease of Access):
    • यह छोटे निवेशकों के लिये G-sec ट्रेडिंग की प्रक्रिया को आसान बना देगा, इसलिये यह G-sec में खुदरा भागीदारी बढ़ाएगा और ईज़ ऑफ एक्सेस में सुधार करेगा।
  • सरकारी उधार की सुविधा:
    • यह उपाय अनिवार्य होल्ड टू मेच्योरिटी ( ऐसी प्रतिभूतियाँ जो परिपक्वता तक स्वामित्व के लिये खरीदी जाती हैं) प्रावधानों में छूट के साथ वर्ष 2021-22 में सरकारी उधार कार्यक्रम को सुचारु रूप से पूरा करने की सुविधा प्रदान करेगा।
  • घरेलू बचत का वित्तीयकरण:
    • G-Sec बाज़ार में प्रत्यक्ष खुदरा भागीदारी की अनुमति देने से घरेलू बचत के विशाल पूल के वित्तीयकरण को बढ़ावा मिलेगा और यह भारत के निवेश बाज़ार में गेम-चेंजर हो सकता है।

सरकारी प्रतिभूतियों में खुदरा निवेश बढ़ाने को किये गए अन्य उपाय :

  • प्राथमिक नीलामी में गैर-प्रतिस्पर्द्धी (Non-Competitive) नीलामी।
    • गैर-प्रतिस्पर्द्धी बोली का अर्थ है कि एक व्यक्ति दिनांकित सरकारी प्रतिभूतियों (Dated Government Security) की गैर-प्रतिस्पर्द्धी नीलामी में मूल्य उद्धृत किये बिना भाग ले सकता है।
  • शेयर बाज़ार खुदरा बोलियों के लिये सेवा समूह (Aggregator) और सहायक केंद्र के रूप में कार्य करते हैं।
  • द्वितीयक बाज़ार में एक विशिष्ट खुदरा क्षेत्र की अनुमति।

सरकारी प्रतिभूति (Government Security)

  • सरकारी प्रतिभूतियाँ केंद्र सरकार या राज्य सरकारों द्वारा जारी की जाने वाली एक व्यापार योग्य साधन होती हैं। 
  • ये सरकार के ऋण दायित्व को स्वीकार करती हैं। ऐसी प्रतिभूतियाँ अल्पकालिक (आमतौर पर एक वर्ष से भी कम समय की मेच्योरिटी वाली इन प्रतिभूतियों को ट्रेज़री बिल कहा जाता है जिसे वर्तमान में तीन रूपों में जारी किया जाता है, अर्थात् 91 दिन, 182 दिन और 364 दिन) या दीर्घकालिक (आमतौर पर एक वर्ष या उससे अधिक की मेच्योरिटी वाली इन प्रतिभूतियों को सरकारी बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियाँ कहा जाता है) होती हैं।
  • भारत में केंद्र सरकार ट्रेज़री बिल और बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियाँ दोनों को जारी करती है, जबकि राज्य सरकारें केवल बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियों को जारी करती हैं, जिन्हें राज्य विकास ऋण (SDL) कहा जाता है। 
  • सरकारी प्रतिभूतियों में व्यावहारिक रूप से डिफॉल्ट का कोई जोखिम नहीं होता है, इसलिये इन्हें जोखिम रहित गिल्ट-एज्ड उपकरण भी कहा जाता है।
    • गिल्ट-एज्ड प्रतिभूतियाँ सरकार और बड़े निगमों द्वारा उधार ली गई निधि के साधन के रूप में जारी किये जाने वाले उच्च-श्रेणी के निवेश बॉण्ड हैं।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस