स्वतंत्र भुगतान नियामक बोर्ड के गठन का आरबीआई द्वारा विरोध | 20 Oct 2018

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 के संशोधन प्रस्ताव में उल्लिखित एक स्वतंत्र भुगतान नियामक बोर्ड (Independent Payments Regulatory Board-PRB) के गठन के मसौदे का विरोध किया है।

प्रमुख बिंदु

  • संशोधन को अंतिम रूप देने के पूर्व अंतर-मंत्रालयी समिति को लिखे असहमति पत्र में आरबीआई ने कहा, ‘आरबीआई के बाहर भुगतान प्रणाली के लिये नियामक होने का कोई औचित्य नहीं है।‘
  • रतन वाटल कमेटी ने आरबीआई की समग्र संरचना के बाहर PRB की स्थापना की सिफारिश की थी। डिजिटल भुगतान को लेकर बनाई गई इस समिति ने सुझाव दिया था कि सरकार को भुगतान का नियमन केंद्रीय बैंक (RBI) के कामकाज से अलग स्वतंत्र रूप से करना चाहिये।
  • आरबीआई के मुताबिक, चूँकि समस्त बैंक RBI द्वारा नियंत्रित होते हैं, अतः आरबीआई द्वारा एक समग्र विनियमन अधिक प्रभावी होगा और परिणामस्वरूप अनुपालन लागत में वृद्धि नहीं होगी। इसलिये एकीकृत संचालन की आवश्यकता है, न कि समन्वय की।
  • आरबीआई ने अपने पत्र में इस बात को भी दोहराया है कि आरबीआई के गवर्नर को प्रस्तावित PRB का अध्यक्ष बनाया जाना चाहिये।
  • आरबीआई के अनुसार, भारत में डिजिटल भुगतान प्रणाली ने अच्छी और स्थिर प्रगति की है। भारत को डिजिटल भुगतान प्रणाली के क्षेत्र में एक लीडर के रूप में अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हो रही है। इसे देखते हुए एक अच्छी तरह से काम कर रही प्रणाली में कोई बदलाव नहीं किया जाना चाहिये।
  • इससे पहले आरबीआई ने एक अलग सार्वजनिक ऋण प्रबंधन निकाय स्थापित करने के सरकार के प्रस्ताव का भी विरोध किया था और प्रस्ताव को रोक दिया गया था।
  • आरबीआई के नवीनतम कदम के अनुसार देश के भीतर डेटा स्टोर करने के लिये भुगतान कंपनियों को केंद्रीय बैंक के निर्देश का पालन करना होता है। पीआरबी की संरचना वित्त मंत्री द्वारा वित्त विधेयक में की गई घोषणाओं के अनुरूप नहीं है।
  • अपने रुख के समर्थन में आरबीआई ने कहा कि भुगतान प्रणाली वास्तव में मुद्रा के लिये प्रौद्योगिकी आधारित विकल्प है। आरबीआई द्वारा बैंकों के माध्यम से मुद्रा का वितरण किया जाता है। भुगतान प्रणाली के लिये इसका तार्किक विस्तार अच्छा परिणाम दे रहा है। फिनटेक कंपनियाँ और अन्य गैर-बैंकिंग कंपनियाँ इस कार्य को बेहतर ढंग से कर रही हैं।
  • वास्तव में यह स्पष्ट नहीं है कि गैर-बैंकिंग कंपनियों को भुगतान प्रणाली के माध्यम से पैसा एकत्र करने का काम कैसे दिया जा सकता है।
  • आरबीआई ने तर्क दिया है कि भारत में भुगतान प्रणाली में बैंकों का वर्चस्व है।
  • एक ही नियामक द्वारा बैंकिंग सिस्टम और भुगतान प्रणाली का विनियमन सहयोग प्रदान करता है और भुगतान उपकरणों में सार्वजनिक विश्वास को प्रेरित करता है।
  • केंद्रीय बैंक द्वारा भुगतान प्रणाली का विनियमन स्थिरता के लिहाज़ से प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मॉडल है।
  • इस प्रकार केंद्रीय बैंक द्वारा भुगतान और निपटान प्रणाली का विनियमन और पर्यवेक्षण से समग्र लाभ सुनिश्चित होगा।