हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों का तरलता संकट | 27 Jun 2019

चर्चा में क्यों?

हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों (Housing Finance Companies) के तरलता संकट (Liquidity Crisis) को देखते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India - RBI) ने यह निर्णय लिया है कि वह दैनिक आधार पर इन कंपनियों की तरलता स्थिति, परिसंपत्ति-देयता (Asset-Liability) का अंतर और पुनः भुगतान अनुसूची (Repayment Schedules) की निगरानी करेगा।

  • तरलता संकट ऐसी वित्तीय स्थिति को दर्शाता है जिसमें तरलता प्रवाह में कमी आ जाती है। किसी एक कंपनी के लिये इसका अर्थ है कि उसके पास तरलता परिसंपत्तियों की कमी हो जाना जिसके परिणाम स्वरूप कंपनी अपने ज़रूरी कार्य जैसे कर्मचारियों के वेतन, ऋणों के भुगतान आदि को भी चुकाने की स्थिति में नहीं होती।

मुख्य बिंदु

  • सामान्यतः इस प्रकार की कंपनियों को राष्ट्रीय आवास बैंक (National Housing Bank- NHB) द्वारा विनियमित और संचालित किया जाता है, परंतु चूँकि इनका तरलता संकट बैंकों सहित वित्तीय क्षेत्र के अन्य हिस्सों को भी प्रभावित कर सकता है और इससे अर्थव्यवस्था की वित्तीय स्थिरता में भी परिवर्तन आने की संभावना होती है, ऐसे में RBI द्वारा इन पर नज़र रखना आवश्यक हो जाता है।
  • इस कार्य के लिये NHB के जनरल मैनेजर को RBI के गैर-बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग (Department of Non-Banking Supervision) के मुख्य महाप्रबंधक के साथ नियमित संचार और सहयोग करने लिये कहा गया है।
  • IL&FS के डिफॉल्टर हो जाने के बाद से गैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र, बैंकों के साथ विश्वास के संकट (Trust Deficit) से जूझ रहा है।
  • RBI ने NBFS के संकट से जूझते हुए अर्थव्यवस्था की वित्तीय स्थिरता को बनाए रखने पर ज़ोर दिया है।

राष्ट्रीय आवास बैंक

(National Housing Bank- NHB)

  • NHB की स्थापना संसदीय अधिनियम के अंतर्गत वर्ष 1987 में की गई थी।
  • इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य स्थानीय और क्षेत्रीय दोनों स्तरों पर हाउसिंग फाइनेंस संस्थानों को बढ़ावा देना है।
  • NHB हाउसिंग फाइनेंस संस्थानों को वित्तीय और अन्य सहायता प्रदान करने वाली एक प्रमुख संस्था के रूप में कार्य करती है।
  • NHB हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों का पंजीकरण, विनियमन और संचालन भी करता है।

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC)

  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी उस संस्था को कहते हैं जो कंपनी अधिनियम 1956 के अंतर्गत पंजीकृत होती है और जिसका प्रमुख कार्य उधार देना तथा विभिन्न प्रकार के शेयरों, प्रतिभूतियों, बीमा कारोबार तथा चिटफंड से संबंधित क्षेत्र में निवेश करना होता है।
  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ भारतीय वित्तीय प्रणाली में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं।
  • यह संस्‍थाओं का विजातीय समूह है (वाणिज्यिक सहकारी बैंकों को छोड़कर) जो विभिन्‍न माध्यमों से वित्तीय मध्‍यस्‍थता का कार्य करता है जैसे –
    • जमा स्‍वीकार करना
    • ऋण और अग्रिम देना
    • प्रत्‍यक्ष अथवा अप्रत्‍यक्ष रूप में निधियाँ जुटाना
    • अंतिम व्ययकर्त्ता को उधार देना
    • थोक और खुदरा व्यापारियों तथा लघु उद्योगों को अग्रिम ऋण देना।

स्रोत: द हिंदू