यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षण (RCT) | 21 Oct 2019

प्रीलिम्स के लिये

अर्थशास्त्र का नोबेल, नोबेल पुरस्कारों के बारे में

मेन्स के लिये

RCT का महत्त्व, अर्थशास्त्र तथा योजनाओं के मूल्यांकन में इसका प्रयोग

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2019 के अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार हेतु अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी, एस्तेर डुफ्लो और माइकल क्रेमर को चुना गया है।

  • उल्लेखनीय है कि उन्हें यह पुरस्कार अर्थशास्त्र में यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षण (Randomised Controlled Trials-RCT) प्रणाली के सफल प्रयोग हेतु दिया जा रहा है।
  • उपरोक्त तीनों अर्थशास्त्रियों ने वैश्विक गरीबी से निपटने के लिये एक नई प्रणाली RCT को विकसित किया है जिसके माध्यम से गरीबी उन्मूलन के लिये लागू की जाने वाली योजनाओं की प्रभावी जाँच करने में मदद मिलेगी। 

RCT क्या है?

  • प्रायः यह प्रयोग पहले चिकित्सा विज्ञान में किया जाता था परंतु अर्थशास्त्र में RCT का प्रयोग पहली बार वर्ष 1990 में किया गया।
  • यह एक प्रकार का वैज्ञानिक प्रयोग है जिसके अंतर्गत किसी विषय को यादृच्छिक (Randomly) आधार पर दो समूहों में बाँटा जाता है। इसमें से एक समूह में प्रयोग के तौर पर कुछ हस्तक्षेप किये जाते हैं तथा दूसरे समूह का उपचार पारंपरिक तरीके से ही किया जाता है। उसके बाद दोनों प्रयोगों से प्राप्त परिणामों की तुलना की जाती है। इस प्रयोग के परिणाम का उपयोग हस्तक्षेप की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिये किया जाता है।
  • उदाहरण के लिये यदि किसी ग्रामीण समुदाय के लोगों को हमें मोबाइल वैक्सीनेशन की सुविधा देनी है तथा अनाज बाँटने हैं तो RCT प्रयोग के तहत गाँव के लोगों को चार समूहों A, B, C तथा D में विभाजित किया जाएगा। समूह A को केवल मोबाइल वैक्सीनेशन की सुविधा दी जाएगी, समूह B को केवल अनाज दिया जाएगा, समूह C को दोनों सुविधाएँ दी जाएँगी तथा समूह D को कोई सुविधा नहीं दी जाएगी। इसमें समूह D को ‘नियंत्रित समूह’ कहा जाएगा जबकि अन्य सभी को ‘उपचार समूह’ कहा जाएगा। इस परीक्षण से प्राप्त परिणामों से यह पता चलेगा कि किसी विशेष हस्तक्षेप से किसी योजना के क्रियान्वयन में अलग-अलग समूहों पर क्या प्रभाव पड़ता है। 
  • माइकल क्रेमर ने इस प्रयोग को सर्वप्रथम केन्या के स्कूलों में लागू किया था एवं इस बात की जाँच की थी कि मुफ्त खाना तथा किताब बाँटने से बच्चों की शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ेगा।

RCT का महत्त्व:

  • RCT, अर्थशास्त्रियों व सामाजिक विज्ञान के शोधार्थियों के लिये काफी महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है। जिसमें अध्ययन के दौरान किसी समग्र घटना पर किसी एक विशेष कारक के प्रभाव को अलग कर उसे नियंत्रित किया जा सकेगा। 
  • उदाहरण के तौर पर किसी विद्यालय में अधिक शिक्षकों की नियुक्ति से बच्चों की शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इसका अध्ययन करते समय अन्य कारकों जैसे बच्चों की बुद्धिमत्ता, उनका पोषण, उस क्षेत्र विशेष की जलवायु तथा उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति को स्थिर मानना होगा। 
  • अर्थशास्त्रियों का मानना है कि RCT तकनीक सरकारों के लिये उनके द्वारा लागू की गई योजनाओं के मापन और मूल्यांकन में मददगार साबित होगी। 

RCT की आलोचना: 

  • वर्ष 2015 में अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार विजेता और RCT तकनीक के प्रमुख आलोचकों में से एक एंगस डेटन (Angus Deaton) का मानना है कि RCT तकनीक में प्रयोग हेतु यादृच्छिक तरीके से जो भी सैंपल समूह चुने जाते हैं वे कई विशेषताओं में एक समान नहीं होते। 
  • कई अन्य आलोचकों ने यह भी तर्क दिया है कि RCT तकनीक का प्रयोग भौतिक विज्ञान के विषयों में अधिक प्रभावी है जहाँ प्रयोग को नियंत्रित करना आसान होता है। उनका कहना है कि सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में यह प्रयोग सफल नहीं हो सकता, क्योंकि समाज को प्रभावित करने वाले कई कारकों को नियंत्रित करना असंभव होता है।

आगे की राह

आगामी वर्षों में अर्थशास्त्र तथा सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में RCT निश्चित तौर पर एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा साथ ही गरीबी उन्मूलन, सामाजिक-आर्थिक असमानता को कम करने में उपयोगी साबित होगा। इसमें निहित चुनौतियों को दूर करने के लिये इसके आलोचकों से विचार-विमर्श किया जाना चाहिये तथा यथासंभव परिवर्तन कर इसे और अधिक उपयोगी बनाने का प्रयास किया जाना चाहिये। 

स्रोत: द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस