राज्यसभा के लिये मनोनयन | 20 Mar 2020

प्रीलिम्स के लिये:

राज्यसभा के लिये मनोनयन 

मेन्स के लिये:

राज्यसभा के मनोनीत सदस्यों की भूमिका, सेवानिवृत्त होने के बाद न्यायाधीशों की नियुक्ति संबंधी विवाद 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिये नामांकित किया गया, जिससे राज्य सभा में नामांकित  सदस्यों की भूमिका को लेकर अनेक सवाल उठाए जा रहे हैं।

मुख्य बिंदु:

  • श्री गोगोई, शिक्षाविद मृणाल मिरी (Mrinal Miri) के बाद असम से राज्यसभा में मनोनीत होने वाले  दूसरे व्यक्ति हैं।
  • पूर्वोत्तर से दो अन्य व्यक्ति मेघालय से शिक्षाविद् बी.बी. दत्ता और मणिपुर से मुक्केबाज़ एम.सी. मैरीकॉम को भी मनोनीत किया गया है।
  • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने असम में ‘राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर’ (National Register of Citizens- NRC) को अद्यतन करने तथा ‘राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद’ में फैसला सुनाया था।

राज्य सभा में मनोनयन:

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद- 80 राज्यसभा के गठन का प्रावधान करता है। 
  • राज्यसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 हो सकती है, परंतु वर्तमान में यह संख्या 245 है। 
  • इनमें से 12 सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा से संबंधित क्षेत्रों से मनोनीत किया जाता है।

विवाद का कारण:

  • सेवानिवृत्ति के बाद सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश पर पाबंदी:
    • सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को भारत में कहीं भी किसी न्यायालय या किसी प्राधिकरण में कार्य करने की स्वतंत्रता नहीं है। ऐसा यह सुनिश्चित करने के लिये किया गया है कि वह न्यायिक निर्णय देते समय भविष्य का ध्यान न रखें। हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को उनकी सेवानिवृत्त के बाद न्यायाधिकरणों एवं आयोगों में विभिन्न पदों पर नियुक्त किया जाता है।
  • सेवानिवृत्ति के बाद भी नियुक्ति किये जाने के निम्नलिखित कारण हैं-
    • प्रथम, पिछले कुछ दशकों में अधिकरणों एवं आयोगों की संख्या में तेज़ी से वृद्धि हुई हैं, जिनमें सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को सदस्यों के रूप में कार्य करने की आवश्यकता होती है।
    • दूसरा, न्यायाधीशों की सेवानिवृत्त होने की आयु (उच्च न्यायालय में 62 वर्ष और उच्चतम न्यायालय में 65 वर्ष) में वृद्धि नहीं किये जाने के कारण सेवानिवृत्त न्यायाधीश अभी भी सार्वजनिक हित में अपने व्यापक अनुभव का उपयोग करने की स्थिति मे होते हैं।

मनोनयन को लेकर पूर्व में हुये विवाद:

  • सचिन तेंदुलकर के नामांकन को लेकर कुछ तर्कशील भारतीयों ने इस आधार पर यह प्रश्न किया है कि संविधान के अनुच्छेद 80 (3) में निर्दिष्ट श्रेणियों- ‘साहित्य, कला, विज्ञान और सामाजिक सेवा’ में खेल शामिल नहीं हैं, इसलिये कोई भी खिलाड़ी मनोनयन के पात्र नहीं है। परंतु बाद में माना गया कि निर्दिष्ट श्रेणियाँ अपने आप में पूर्ण (Exhaustive) नहीं हैं अपितु उदाहरण ( Illustrative) मात्र हैं।  

मनोनयन का उद्देश्य:

  • प्रसिद्ध लोगों का संसद मे प्रवेश:
    • प्रसिद्ध लोगों के मनोनयन के पीछे उद्देश्य यह है कि नामी या प्रसिद्ध व्यक्ति बिना चुनाव के राज्यसभा में जा सके। 
    • यहाँ यह ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि अमेरिकी सीनेट में कोई मनोनीत सदस्य नहीं होता है।
  • समावेशी समाज का निर्माण:
    • राष्ट्रीय स्तर पर द्विसदनीय विधायिका के एक सदन के रूप मे राज्य सभा का निर्माण करते समय लोकतांत्रिक राष्ट्र निर्माण की दिशा में चुनाव (Election) एवं मनोनयन (Nomination) की विशिष्ट सम्मिश्रित प्रणाली को अपनाया गया तथा राज्य सभा में 12 सदस्यों के मनोनयन का प्रावधान किया गया। 
    • संसदीय वास्तुकला मे मनोनीत सदस्यों की उपस्थिति भारतीय समाज को अधिक समावेशी बनाने वाली व्यवस्था का समर्थन करती है।
  • राष्ट्र का प्रतिनिधित्व:
    • मनोनीत सदस्य किसी राज्य का नहीं अपितु पूरे राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे सदन में राष्ट्रीय आकाँक्षाओं एवं लोकाचार (Ethos) को प्रतिबिबिंत करते हैं तथा सदन का गौरव बढ़ाते हैं।
  • संकीर्ण राजनीति से ऊपर:
    • डॉ. ज़ाकिर हुसैन वर्ष 1952 में मनोनीत 12 सदस्यों में से एक प्रमुख शिक्षाविद् थे। उनका मानना था- “राष्ट्रीय पुनर्जागरण (National renaissance) राजनीति के संकीर्ण द्वार से नहीं प्रवेश कर सकता, इसके लिये बाढ़ रूपी सुधारवादी शिक्षा की जरूरत है।”

नुकसान (Disadvantages):

  • मनोनीत सदस्यों का प्रावधान लोकतंत्र की परिभाषा- ‘लोगों का, लोगों द्वारा, लोगों के लिये शासन’ के खिलाफ है।
  • यह प्रावधान जनता के प्रति जवाबदेहिता के सिद्धांत के खिलाफ है क्योंकि मनोनीत सदस्य किसी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।   

आगे की राह: 

  • हालाँकि संविधान में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को इस तरह के पदों को स्वीकार करने पर रोक नहीं है, लेकिन ये नियुक्तियाँ न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमज़ोर करती हैं। अत: ऐसी प्रथाओं को रोकने के संसदीय प्रयास होने चाहिये, नहीं तो सेवानिवृत्त होने से पूर्व के फैसले सेवानिवृत्त होने के बाद मिलने वाली नौकरी से प्रभावित होंगे।

मनोनीत सदस्यों से संबंधित महत्त्वपूर्ण जानकारी:

  • संविधान का स्रोत:
    • राज्य सभा के लिये सदस्यों का मनोनयन संबंधी प्रावधान आयरलैंड के संविधान से लिया गया है। 
  • दल बदल कानून का प्रावधान:
    • अगर कोई नामित या नाम निर्देशित सदस्य 6 महीने के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल होता है तो उसे दल बदल अधिनियम के तहत निरर्ह करार दिया जा सकता है।
  • राष्ट्रपति पर महाभियोग:
    • संसद के दोनों सदनों के मनोनीत सदस्य जिन्होंने राष्ट्रपति के चुनाव मे भाग नहीं लिया था, इस महाभियोग में भाग ले सकते हैं। 

स्रोत: द हिंदू