पुंछी आयोग की रिपोर्ट | 02 Mar 2023

प्रिलिम्स के लिये:

पुंछी आयोग की रिपोर्ट, CJI, अंतर-राज्यीय परिषद (ISC) की स्थायी समिति, केंद्र-राज्य संबंध।

मेन्स के लिये:

केंद्र-राज्य संबंधों पर पुंछी आयोग की सिफारिशें।  

चर्चा में क्यों? 

केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) ने केंद्र-राज्य संबंधों पर पुंछी आयोग की रिपोर्ट के संबंध में राज्यों से टिप्पणी मांगने की प्रक्रिया शुरू करने का फैसला किया है। 

पुंछी आयोग: 

  • केंद्र सरकार ने पुंछी आयोग का गठन अप्रैल 2007 में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) मदन मोहन पुंछी की अध्यक्षता में किया था।  
  • आयोग ने संघ और राज्यों के मध्य मौजूदा व्यवस्थाओं की जाँच और समीक्षा की, साथ ही विधायी संबंधों, प्रशासनिक संबंधों, राज्यपालों की भूमिकाओं, आपातकालीन प्रावधानों सहित सभी क्षेत्रों में शक्तियों, कर्त्तव्यों एवं ज़िम्मेदारियों के बारे में विभिन्न न्यायालयों के फैसलों की जाँच एवं समीक्षा की।
  • आयोग ने मार्च 2010 में सरकार को अपनी सात खंडों की रिपोर्ट प्रस्तुत की। 
  • अंतर-राज्यीय परिषद (ISC) की स्थायी समिति ने अप्रैल 2017, नवंबर 2017 और मई 2018 में आयोजित अपनी बैठकों में पुंछी आयोग के सुझावों पर विचार किया।  

पुंछी आयोग की प्रमुख सिफारिशें: 

  • राष्ट्रीय एकता परिषद: 
    • इसने आंतरिक सुरक्षा (जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका में गृह-भूमि सुरक्षा विभाग) से संबंधित मामलों के लिये एक अधिक्रमण संरचना के निर्माण की सिफारिश की। यह भी प्रस्तावित किया कि इसे 'राष्ट्रीय एकता परिषद' के रूप में जाना जा सकता है।
  • अनुच्छेद 355 और अनुच्छेद 356 में संशोधन: 
    • इसमें संविधान के अनुच्छेद 355 और अनुच्छेद 356 में संशोधन का सुझाव दिया गया।
      • अनुच्छेद 355 किसी भी बाहरी आक्रमण के खिलाफ राज्य की रक्षा के लिये केंद्र के कर्त्तव्य से संबंधित है और अनुच्छेद 356 राज्य व्यवस्था की विफलता के मामले में राष्ट्रपति शासन लागू किये जाने से संबंधित है।
    • इन सिफारिशों का उद्देश्य केंद्र की शक्तियों के दुरुपयोग की रोकथाम कर राज्यों के हितों की रक्षा करना है।
  • समवर्ती सूची के विषय:
    • आयोग ने सिफारिश की कि समवर्ती सूची के अंतर्गत आने वाले विषयों पर विधेयक पेश करने से पहले अंतर-राज्यीय परिषद के माध्यम से राज्यों से परामर्श किया जाना चाहिये।
      • समवर्ती सूची तीन सूचियों में से एक है; इसमें उन मामलों का उल्लेख है जिन पर राज्य और केंद्र दोनों सरकारें कानून बना सकती हैं।
  • राज्यपालों की नियुक्ति और निष्कासन:
    • राज्यपाल को अपनी नियुक्ति से कम-से-कम दो वर्ष पहले सक्रिय राजनीति (स्थानीय स्तर पर भी) से दूर रहना चाहिये।
    • राज्यपाल की नियुक्ति करने में राज्य के मुख्यमंत्री का मत होना चाहिये।
    • एक समिति का गठन किया जाना चाहिये जिसे राज्यपालों की नियुक्ति का कार्य सौंपा जाए। इस समिति में प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, लोकसभा अध्यक्ष और संबंधित राज्य का मुख्यमंत्री शामिल हो सकता है।
    • नियुक्ति की अवधि पाँच वर्ष के लिये होनी चाहिये।
    • राज्यपाल को केवल राज्य विधानमंडल द्वारा एक प्रस्ताव के माध्यम से हटाया जा सकता है। 
  • संघ की संधि करने की शक्ति: 
    • राज्य सूची में मौजूद मामलों से संबंधित संधियों के संबंध में संघ की शक्ति को विनियमित किया जाना चाहिये।
    • इस तरह राज्यों को उनके आंतरिक मामलों में अधिक प्रतिनिधित्त्व प्राप्त होगा।
    • आयोग ने निर्धारित किया कि राज्यों को उनके मुद्दों के संदर्भ में तैयार की गई अधिक संधियों में शामिल होना चाहिये। यह सरकार के विभिन्न स्तरों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्त्व सुनिश्चित करेगा।
  • मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति: 
    • मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति के संबंध में स्पष्ट दिशा-निर्देश बनाए जाने चाहिये ताकि इस पहलू पर राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियाँ सीमित रहें। 
    • चुनाव पूर्व गठबंधन को एकल राजनीतिक दल माना जाता है। 
    • राज्य सरकार के गठन के दौरान वरीयता का क्रम निम्नलिखित होना चाहिये:  
      • सबसे अधिक संख्या वाले सबसे बड़े चुनाव-पूर्व गठबंधन वाले समूह/गठबंधन। 
      • अन्य पार्टियों के समर्थन वाली अकेली सबसे बड़ी पार्टी। 
      • सरकार में सम्मिलित होने वाले कुछ दलों के साथ चुनाव के बाद गठबंधन।
      • सरकार में शामिल होने वाले कुछ दलों के साथ चुनाव के बाद गठबंधन और शेष बाह्य समर्थन देने वाली निर्दलीय पार्टियाँ।  

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस