बाढ़ के लिये प्रोटोकॉल | 01 Aug 2017

संदर्भ
भारत में बाढ़ लगभग प्रत्येक वर्ष आने वाली एक प्राकृतिक आपदा है, जो अपने साथ एक भीषण तबाही लेकर आती है। ऐसे में इस नियति से छुटकारा पाने के लिये राज्य सरकारों को एक प्रोटोकॉल बनाने की आवश्यकता है। 

प्रमुख बिंदु 

  • देश के पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों में बाढ़ के कहर से कम से कम 600 लोग मारे गए और हज़ारों लोगों विस्थापित हुए हैं। इस प्रत्येक वर्ष आने वाली प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिये एक विशाल क्षमता-निर्माण कार्यक्रम तैयार करने की आवश्यकता है। 
  • भारतीय उपमहाद्वीप में मानसून की बाढ़ एक असामान्य घटना नहीं है।  
  • विभिन्न क्षेत्रों में वर्षा की आवृत्ति और बारंबारता में भी काफी परिवर्तनशीलता है। 
  • बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों की जनता सरकार से तेज़ी से राहत और पुनर्वास स्थापित करने की उम्मीद करती है, परन्तु इसके अतिरिक्त लोगों को होने वाले धन की हानि का भी कोई हल निकालना चाहिये।   
  • बाढ़ के प्रभाव को दूर करने के लिये ज़मीनी स्तर पर भी कई कार्य किये जाने चाहिये, जैसे- अल्पकालिक आवास, भोजन, सुरक्षित पानी, स्वास्थ्य देखभाल और महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों का संरक्षण इत्यादि।
  • भारत में नीतिगत निर्णय बनाने में सामाजिक समर्थन की कमज़ोर नींव को देखते हुए प्राकृतिक आपदाओं के दौरान इन कारकों का एक बड़ा प्रभाव पड़ता है। 
  • यह निराशाजनक है कि कुछ राज्य आपदा राहत निधि का पूरा उपयोग नहीं करते हैं।  
  • 2015 में चेन्नई की बाढ़ जैसे विनाशकारी घटनाएँ राज्यों से बांधों और जलाशयों के प्रवाह को नियंत्रित करने संबंधी प्रोटोकॉल की समीक्षा की माँग करते हैं। 
  • केंद्र के आँकड़ों के अनुसार, पिछले चार सालों में बाढ़ से प्रत्येक वर्ष 1,000 से 2,100 लोगों की मौत हुई है, जबकि फसल और अन्य सार्वजनिक नुकसान एक वर्ष में 33,000 करोड़ रुपए रहा है।
  • हमें निरंतर आर्थिक विकास के लिये दोनों मोर्चों पर कार्रवाई की आवश्यकता है। एक ज़ोरदार मानसून अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण तो है ही, परंतु सरकारों को अधिक वर्षा के दुष्परिणामों से निपटने के लिये भी तैयार रहना चाहिये।