भारत में बढती मेडिकल अपशिष्ट की समस्या : आखिर वास्तविकता क्या है? | 26 Mar 2018

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रकाशित औद्योगिक संगठन एसोचैम और वेलोसेटी के एक संयुक्त शोध-पत्र में इस बात का खुलासा किया गया है कि भारत में 2020 तक प्रतिदिन 775.5 टन मेडिकल अपशिष्ट पैदा हो सकता है। वर्तमान में मेडिकल अपशिष्ट उत्सर्जन की दर 550.9 टन रोज़ाना है।

  • शोध पत्र के अनुसार हर साल उत्सर्जित होने वाले मेडिकल अपशिष्ट में सात प्रतिशत उछाल आने की संभावना है।
  • “अनअर्थिंग द ग्रोथ कर्व ऐंड नसेसिटी ऑफ बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट इन इंडिया, 2018” नामक इस शोध पत्र में कचरे के सुरक्षित और प्रभावी प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिये कड़े निगरानी और मूल्यांकन ढाँचे को अपनाए जाने की ज़रूरत पर बल दिया गया है।
  • अपशिष्ट का सुरक्षित और प्रभावी प्रबंधन न केवल कानूनी आवश्यकता है, बल्कि एक सामाजिक दायित्व भी है। चिंता, प्रोत्साहन, जागरूकता की कमी और लागत कुछ ऐसे तथ्य हैं जिसके कारण उचित बायोमेडिकल अपशिष्ट प्रबंधन में समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • वर्ष 2025 तक देश में अपशिष्ट प्रबंधन का बाज़ार 136.20 करोड़ अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की संभावना है। अध्ययन के अनुसार, चिकित्सा अपशिष्ट के खराब प्रबंधन का सीधा प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़ता है।
  • साथ ही, इसके कारण विकासशील देशों में पर्यावरण विशेषकर जल, वायु और मिट्टी सहित प्रदूषण के विभिन्न स्तरों पर होने वाले असर के संदर्भ में भी विचार-विमर्श किया जाना चाहिये।

मेडिकल अपशिष्ट क्या है?

  • मेडिकल अपशिष्ट में काँच व प्लास्टिक की ग्लूकोज की बोतलें, इंजेक्शन और सिरिंज, दवाओं की खाली बोतलें व उपयोग किये गए आईवी सेट, दस्ताने एवं अन्य सामग्री शामिल होती हैं। इसके अलावा, इसमें विभिन्न प्रकार की रिपोर्टें, रसीदें व अस्पताल की पर्चियाँ आदि भी शामिल होती हैं।
  • अस्पतालों से निकलने वाले इस अपशिष्ट को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) द्वारा निम्न वर्गों में विभाजित किया गया है:

► औषधीय पदार्थ : इस वर्ग में बची-खुची, पुरानी एवं खराब दवाओं को शामिल किया जाता है।
► रोगयुक्त पदार्थ : इसमें रोगी के मल-मूत्र, उल्टी, मानव अंग आदि अवशेषों को शामिल किया जाता है।
► रेडियोधर्मी पदार्थ : इसमें विभिन्न रेडियोधर्मी पदार्थों जैसे- रेडियम, एक्स-रे तथा कोबाल्ट आदि पदार्थों को शामिल किया जाता है।
► रासायनिक पदार्थ : इसमें बैटरी व लैब में प्रयुक्त होने वाले विभिन्न रासायनिक पदार्थ शामिल किये जाते है।

उपरोक्त के अलावा, मेडिकल अपशिष्ट के अंतर्गत कुछ सामान्य पदार्थ भी शामिल होते हैं जिनमें दवाइयों के रैपर, कागज, रिपोर्ट, एक्स-रे फिल्में आदि को शामिल किया जाता है।

मुख्य स्रोत

  • मेडिकल अपशिष्ट के मुख्य स्रोत सरकारी एवं प्राइवेट अस्पताल, नर्सिंग होम, डिस्पेंसरी, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, मेडिकल कॉलेज, रिसर्च सेंटर, पराचिकित्सक सेवाएँ, ब्लड बैंक, मुर्दाघर, शव-परीक्षा केंद्र, पशु-चिकित्सा कॉलेज तथा पशु रिसर्च सेंटर आदि होते हैं।
  • इसके अलावा, सामान्य चिकित्सकों, दंत चिकित्सा क्लीनिकों, पशु घरों, कसाईघरों, रक्तदान शिविरों, मनोरोग क्लीनिकों, अंत्येष्टि सेवाओं, टीकाकरण केंद्रों तथा विकलांगता शैक्षिक संस्थानों से भी बायोमेडिकल अपशिष्ट का उत्सर्जन होता है। 

बायोमेडिकल अपशिष्ट प्रबंधन नियम
बायोमेडिकल अपशिष्ट (प्रबंधन एवं निष्पादन) अधिनियम, 1998 के तहत, बायोमेडिकल अपशिष्ट इधर-उधर फेंकना गैरकानूनी है। बायोमेडिकल अपशिष्ट का समुचित निस्तारण न कर, सार्वजनिक स्थान पर फेंकना म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन अधिनियम, पुलिस अधिनियम, 1969 की धारा 34 और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 15 का भी उल्लंघन है। इस अपराध के लिये दोषी पाए जाने पर आरोपित को पांच साल तक की सजा का भी प्रावधान है।

नए नियम

  • 2016 में केंद्र सरकार द्वारा नए बायोमेडिकल अपशिष्ट प्रबंधन नियम अधिसूचित किये गए हैं। इन नए नियमों के तहत इसके प्रभाव क्षेत्र को बढ़ा दिया गया है और इसमें प्रयोगशाला अपशिष्ट, रक्त के नमूनों आदि के पूर्व-उपचार को भी शामिल किया गया है।

प्रमुख विशेषताएँ

  • इन नियमों के दायरे को टीकाकरण शिविरों, रक्तदान शिविरों, शल्य चिकित्सा शिविरों या अन्य किसी स्वास्थ्य गतिविधि तक बढ़ा दिया गया है।
  • दो वर्षों के भीतर (March 27, 2019) क्लोरीनयुक्त प्लास्टिक के थैलों, दस्तानों एवं रक्त के थैलों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की योजना।
  • सभी स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा एवं नियमित रूप से सभी स्वास्थ्य कर्मियों का टीकाकरण किया जाएगा।
  • निपटान के लिये बायोमेडिकल अपशिष्ट युक्त थैलों या कंटेनरों के लिये बार कोड प्रणाली स्थापित की जाएगी।
  • बड़ी दुर्घटनाओं की रिपोर्ट की जाएगी।
  • बायोमेडिकल अपशिष्ट को अब 10 के बजाय 4 वर्गों में वर्गीकृत किया जाएगा।
  • नए नियमों के तहत, वातावरण में प्रदूषक तत्त्वों के उत्सर्जन से संबंधित नियमों को और कठोर बना दिया गया है।

वास्तविक स्थिति क्या है?

  • बायोमेडिकल अपशिष्ट (प्रबंधन एवं निष्पादन) अधिनियम, 1998 के तहत अस्पतालों के लिये अनिवार्य है कि वे पर्यावरण के अनुकूल और वैज्ञानिक तरीके से अपशिष्ट का निष्पादन करें।
  • लेकिन जहाँ पश्चिमी देशों में बायोमेडिकल अपशिष्ट का निपटान एक व्यावसायिक गतिविधि बन चुका है, वहीं भारत में लगभग आधे अपशिष्ट का ही निष्पादन नियमों के अनुसार हो पाता है और शेष को नगर निगम के ठोस अपशिष्ट में मिला दिया जाता है।
  • मनुष्य या जानवरों के इलाज या शल्यक्रिया के दौरान ठोस या तरल रूप में जमा बायोमेडिकल अपशिष्ट खतरनाक रूप से संक्रामक होता है। 
  • बड़े अस्पतालों में बायोमेडिकल अपशिष्ट से न केवल परिसर के भीतर का, बल्कि आस-पास का वातावरण भी खतरनाक रूप से प्रदूषित होता है।

बायोमेडिकल अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2018
1. सभी स्वास्थ्य सुविधाओं द्वारा बायोमेडिकल अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2018 के प्रकाशन की तिथि से दो वर्ष के भीतर अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर वार्षिक रिपोर्ट उपलब्ध करानी होगी।

2. बायोमेडिकल अपशिष्ट उपचार एवं निपटान की सुविधा प्रदान करने वाले ऑपरेटरों को 27 मार्च, 2019 मार्च तक केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board) द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार बायोमेडिकल अपशिष्ट के प्रबंधन संबंधी बार कोड और वैश्विक पोजिशनिंग सिस्टम (global positioning system) स्थापित करना होगा।

3. राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड/प्रदूषण नियंत्रण समितियों को प्राप्त जानकारी का संकलन कर उसकी समीक्षा एवं विश्लेषण करना होगा है तथा इसे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भेजना होगा, जो इस विषय में प्राप्त जानकारियों का ज़िलावार अध्ययन करेगा। तत्पश्चात् केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा मेडिकल अपशिष्ट के उत्पादन, स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं की कैप्टिव उपचार सुविधाओं (captive treatment facilities), आम बायोमेडिकल अपशिष्ट उपचार एवं निपटान की सुविधा के विषय में जानकारी एकत्रित की जाएंगी।

4. प्रत्येक धारक द्वारा अर्थात् संस्था के शीर्ष पर आसीन प्रशासनिक नियंत्रक तथा बायोमेडिकल अपशिष्ट उत्पन्न करने वाले परिसर द्वारा प्रयोगशाला अपशिष्ट, सूक्ष्मजीवविज्ञानी अपशिष्ट, रक्त के नमूनों और रक्त के पात्रों द्वारा कीटाणुशोधन के माध्यम से या डब्ल्यूएचओ (World Health Organization - WHO) द्वारा पूर्व निर्धारित तरीके से उपचार किया जाएगा। अथवा स्वास्थ्य देखभाल गतिविधियों द्वारा निर्धारित अपशिष्टों के सुरक्षित प्रबंधन हेतु जारी दिशा-निर्देश और डब्लूएचओ ब्लू बुक 2014 तथा बायोमेडिकल अपशिष्ट के अंतिम निपटान के लिये सामान्य अपशिष्ट उपचार उपायों का इस्तेमाल किया जाएगा।