प्रीलिम्स फैक्ट्स: 24 अगस्त, 2018 | 24 Aug 2018

छठा अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन

23 अगस्त, 2018 को राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने नई दिल्ली में छठे अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस सम्मेलन का आयोजन पर्यटन मंत्रालय ने महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश राज्य सरकारों के सहयोग से किया है।

  • पर्यटन मंत्रालय द्वाराआयोजित छठे अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन की थीम - “बुद्ध मार्ग – सजीव विरासत” है। 
  • सम्मेलन का उद्देश्य भारत में बौद्ध विरासत को प्रदर्शित करना तथा देश के बौद्ध स्थलों में पर्यटन को बढ़ावा देना है। इसके जरिये बौद्ध धर्म में रुचि रखने वाले समुदायों और देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध भी विकसित होते हैं।
  • इस सम्मेलन में धार्मिक/आध्यात्मिक,अकादमिक और राजनयिक व व्यापारिक आयाम शामिल हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन में इन 29 देशों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं - ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, भूटान, ब्राज़ील, कंबोडिया, कनाडा, चीन, फ्राँस, जर्मनी, हॉन्गकॉन्ग, इंडोनेशिया, जापान, लाओ पीडीआर, मलेशिया, मंगोलिया, म्याँमार, नेपाल, नॉर्वे, रूस, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, स्लोवाक गणराज्य, स्पेन, श्रीलंका, ताइवान, थाईलैंड, इंग्लैंड, अमेरिका और वियतनाम।

पृष्ठभूमि

  • पर्यटन मंत्रालय प्रत्येक दो वर्ष में अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन आयोजित करता है। पिछला सम्मेलन (अक्टूबर, 2016) सारनाथ/वाराणसी और बोधगया में आयोजित किया गया था। 
  • पर्यटन मंत्रालय ने उन देशों को भी आमंत्रित किया है, जहाँ बड़ी संख्या में बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं। इसमें आसियान देश और जापान शामिल है। आसियान, आईबीसी-2016 का विशिष्ट अतिथि था, जबकि जापान आईबीसी – 2018 का ‘सहयोगी देश’ है।

खो-खो को एशियाई ओलंपिक परिषद की मान्यता

हाल ही में एशियाई ओलंपिक परिषद (ओसीए) ने भारत के पारंपरिक खेल खो-खो को मान्यता प्रदान की है. इस निर्णय के प्रभाव में आने के बाद खो-खो को एशियन इंडोर गेम्स में प्रदर्शनी खेल के तौर पर शामिल किया जाएगा|

एशियाई ओलंपिक परिषद

  • यह एशिया में खेलों की सर्वोच्च संस्था है और एशिया के 45 देशों की राष्ट्रीय ओलंपिक समितियाँ इसकी सदस्य हैं|
  • इसका मुख्यालय कुवैत में है|
  • इसके वर्तमान अध्यक्ष शेख फहद अल-सबा हैं|

खो-खो खेल

  • खो-खो मैदानी खेलों के सबसे प्राचीनतम रूपों में से एक है जिसका शुरुआत प्रागैतिहासिक भारत में हुई मानी जाती है। मुख्य रूप से आत्मरक्षा, आक्रमण व प्रत्याक्रमण के कौशल को विकसित करने के लिए इसकी खोज हुई थी।
  • सन् 1914 में डेक्कन जिमखाना पूना द्वारा इस खेल में प्रारंभिक नियमों का प्रतिपादन किया गया था। ऐसी मान्यता है कि इसकी उत्पत्ति महाराष्ट्र से हुई|

विश्व बैंक ने विश्व का पहला ब्लॉकचेन बॉण्ड लॉन्च किया

विश्व बैंक ने डिजिटल अर्थव्यवस्था की दुनिया में सबसे क्रांतिकारी कदम उठाते हुए पहली बार ब्लॉकचेन जारी किये हैं। पब्लिक के लिये जारी होने वाला यह अपनी तरह का पहला बॉण्ड है, जिसका पूरा संचालन ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारित होगा। 

  • योजना का प्रबंधन करने वाले कॉमनवेल्थ बैंक ऑफ ऑस्ट्रेलिया के मुताबिक इन बॉण्ड को दो वर्षों के लिये जारी किया जाएगा।
  • विश्व बैंक ने इस डिजिटल बॉण्ड को ‘बॉन्डी’ नाम दिया है।

 क्रिप्टोकरेंसी (बिटकॉइन) की तरह होगी ब्लॉकचेन बॉण्ड तकनीक

  • ब्लॉकचेन बॉण्ड की तकनीक काफी हद तक क्रिप्टोकरेंसी (बिटकॉइन) से मिलती जुलती है । 
  • लेकिन ऑस्ट्रेलिया के केंद्रीय बैंक की मदद से जारी होने वाला ब्लॉकचेन बॉण्ड बाकायदा असली मुद्रा ऑस्ट्रेलियन डॉलर का होगा।
  • पूरी तरह विकसित वित्तीय ढ़ाँचे वाले ऑस्ट्रेलियाई बाज़ार में इस बॉण्ड का परीक्षण सबसे मुफीद माना जा रहा है। 
  • यहाँ विदेशी निवेशक पैसे लगाने में सहज भी महसूस करते हैं और ऑस्ट्रेलियन डॉलर में खरीद-फरोख्त पर भरोसा भी रखते हैं, जो दुनिया की सबसे ज़्यादा व्यापार की जाने वाली करेंसी में से एक है।
  • वैसे तो इस बॉण्ड को ब्लॉकचेन तकनीक पर जारी किया गया है, लेकिन इसके लिये भुगतान अभी चल रहे स्विफ्ट सिस्टम से भी किया जा सकता है।

यूरोप का नया वायु मानचित्रण उपग्रह एओलस लॉन्च

यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) एओलस (aeolus) उपग्रह दुनिया भर में वायु की निगरानी के लिये तीन साल के मिशन हेतु 22 अगस्त को अंतरिक्ष में भेजा गया।

  • एओलस दुनिया का पहला पवन मानचित्रण उपग्रह है और फ्रेंच गुयाना के कोरू में गुयाना स्पेस सेंटर से वेगा रॉकेट द्वारा लॉन्च किया गया।
  • कक्षा में एओलस शक्तिशाली लिडार प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए समताप मंडल तक पृथ्वी की सतह से हवाओं की माप करेगा, जो वैश्विक स्तर पर होगा।
  • एओलस द्वारा एकत्रित आँकड़ों से मौसम पूर्वानुमान में सुधार और जलवायु परिवर्तन अनुसंधान के लिये मूल्यवान जानकारी प्रदान करने में मदद मिलेगी।
  • ESA ने 1999 में एओलस मिशन को मंज़ूरी दे दी थी, लेकिन उपग्रह के उपकरणों के विकास में अपेक्षाकृत अधिक समय लगा क्योंकि एक शक्तिशाली पराबैंगनी लेज़र बनाने की जटिलता जो वैक्यूम में काम कर सकती है, मुख्य समस्या बनी हुई थी।