राजनीतिक लोक-लुभावनवाद के कारण किसानों की बिगढ़ती हालत | 07 Jun 2017

संदर्भ
नीति आयोग ने कहा है कि भारत में राजनेताओं के द्वारा किसानों को ‘लोन माफी’ जैसे लोक-लुभावने उपायों के द्वारा गलत दिशा दिखाई जा रही है, जो कृषि क्षेत्र पर लंबे समय तक प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • नीति आयोग का कहना है कि इस प्रकार के लोक-लुभावने उपायों से किसानों की मांगे और अधिक अनुचित होती जा रही हैं।
  • दरअसल, किसान नि:शुल्क पानी, मुफ्त उर्वरक, ऋण में छूट के अलावा चाहते हैं कि सरकार कृषि उत्पादन की लागत का 50 प्रतिशत मूल्य का भुगतान करे। इस प्रकार की अतार्किक मांगों को कोई भी देश पूरा नहीं कर सकता है। 
  • आज किसान कृषि उत्पादन को बढ़ाने के बारे में उतने उत्साहित नहीं हैं, जितने वे हरित क्रांति के समय थे।
  • नीति आयोग के अनुमानों के अनुसार, भारत में खेती की आय प्रति किसान 9,761 रुपए  है और अगर किसी किसान के पास आय का कोई अन्य स्रोत नहीं है तो 53 फीसदी किसान गरीबी रेखा से नीचे चले जाएंगे।
  • 1991 के बाद हुए सुधारों के कारण कृषि क्षेत्र और अन्य क्षेत्रों के बीच आय में असमानता बढ़ गई है। वस्तुत: इन सुधारों ने कृषि क्षेत्र से ज़्यादा लाभ नहीं पहुँचाया। उदाहरणस्वरूप, 1991 के सुधारों के बाद गैर-कृषि क्षेत्र का विकास तेज़ी से हुआ, जबकि  कृषि क्षेत्र का विकास लगभग 2.8 प्रतिशत पर ही सिमट गया।
  • गैर-कृषि क्षेत्र में तेज़ी से सुधार किये गए थे लेकिन कृषि में नहीं। नतीजतन, इस क्षेत्र में कोई आधुनिक पूंजी या नवाचार नहीं आ पाया तथा किसान और उपभोक्ताओं के बीच बिचौलियों की संख्या बढ़ती चली गई, जिन्होंने किसानों से ज़्यादा लाभ अर्जित किया।
  • इस प्रकार की समस्या से निपटने के लिये नीति आयोग ने ज़ोर देकर कहा है कि राज्यों द्वारा कृषि क्षेत्र में तुरंत उदारीकृत सुधार करने चाहियें, ताकि किसानों की आय और कृषि में सुधार को तीव्र गति प्रदान की जा सके।