पीएम प्रणाम (PM PRANAM) योजना | 19 Sep 2022

प्रिलिम्स के लिये:

पीएम प्रणाम (कृषि प्रबंधन के लिये वैकल्पिक पोषक तत्त्वों को प्रोत्साहन योज़ना), IFMS (एकीकृत उर्वरक प्रबंधन प्रणाली), यूरिया, DAP (डाय-अमोनियम फॉस्फेट), MOP (पोटाश का म्यूरेट), NPKS (नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम), यूरिया की नीम कोटिंग, नई यूरिया नीति (NUP) 2015

मेन्स के लिये:

उर्वरकों पर सब्सिडी का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को कम करने के लिये सरकार पीएम प्रणाम यानी कृषि प्रबंधन हेतु वैकल्पिक पोषक तत्त्वों का संवर्द्धन (Promotion of Alternate Nutrients for Agriculture Management Yojana- PM PRANAM) योजना शुरू करने की योजना बना रही है।

योजना के बारे में:

  • उद्देश्य:
    • जैव उर्वरकों और जैविक उर्वरकों के संयोजन के साथ उर्वरकों के संतुलित उपयोग को प्रोत्साहित करना।
  • लक्ष्य:
    • रासायनिक उर्वरकों पर सब्सिडी के बोझ को कम करना, जो 2022-23 में 2.25 लाख करोड़ रुपए तक पहुँचने का अनुमान है – 2021 के 1.62 लाख करोड़ रुपए के आँकड़े से 39% अधिक है।
  • प्रस्तावित योजना की विशेषताएँ:
    • इस योजना का कोई अलग बजट नहीं होगा और उर्वरक विभाग द्वारा संचालित योजनाओं के तहत "मौजूदा उर्वरक सब्सिडी की बचत" के माध्यम से वित्तपोषित किया जाएगा।
    • सब्सिडी बचत का 50% उस राज्य को अनुदान के रूप में दिया जाएगा जो पैसा बचाता है।
      • योजना के तहत प्रदान किये गए अनुदान का 70% गाँव, ब्लॉक और ज़िला स्तर पर वैकल्पिक उर्वरकों और वैकल्पिक उर्वरक उत्पादन इकाइयों के तकनीकी अपनाने से संबंधित परिसंपत्ति सृजन के लिये उपयोग किया जा सकता है।
      • शेष 30% अनुदान राशि का उपयोग किसानों, पंचायतों, किसान उत्पादक संगठनों और स्वयं सहायता समूहों को पुरस्कृत करने तथा प्रोत्साहित करने के लिये किया जा सकता है जो उर्वरक उपयोग को कम करने व जागरूकता पैदा करने में शामिल हैं।
    • एक वर्ष में यूरिया के रासायनिक उर्वरक उपयोग को कम करने की गणना की तुलना पिछले तीन वर्षों के दौरान यूरिया की औसत खपत से की जाएगी।
      • इस उद्देश्य के लिये, उर्वरक मंत्रालय के डैशबोर्ड, एकीकृत उर्वरक प्रबंधन प्रणाली (Integrated Fertilizer Management System-IFMS) पर उपलब्ध डेटा का उपयोग किया जाएगा।

योजना की आवश्यकता:

  • सरकार पर सब्सिडी का बोझ:
    • किसान अपनी सामान्य आपूर्ति-और-मांग-आधारित बाज़ार दरों या उनके उत्पादन/आयात की लागत से कम अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) पर उर्वरक खरीदते हैं।
      • उदाहरण के लिये, नीम लेपित यूरिया की MRP सरकार द्वारा 5,922.22 रुपए प्रति टन तय की गई है, जबकि घरेलू निर्माताओं और आयातकों को देय इसकी औसत लागत-प्लस कीमत क्रमशः लगभग 17,000 रुपए और 23,000 रुपए प्रति टन है।
    • शेष भाग, जो संयंत्र-वार उत्पादन लागत और आयात मूल्य के अनुसार भिन्न होता है, केंद्र द्वारा सब्सिडी के रूप में रखा जाता है, यह अंततः कंपनियों को जाता है।
    • गैर-यूरिया उर्वरकों का अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) कंपनियों द्वारा नियंत्रित या तय किया जाता है। हालांकि उचित मूल्य सुनिश्चित करने के लिये केंद्र इन पोषक तत्त्वों पर एक समान प्रति टन सब्सिडी का भुगतान करता है।
      • विभिन्न प्रकार के उर्वरकों के लिये प्रति टन सब्सिडी 10,231 से 24,000 रूपए है। ।
    • केंद्र सरकार प्रत्येक संयंत्र में उत्पादन लागत के आधार पर उर्वरक निर्माताओं को यूरिया पर सब्सिडी का भुगतान करती है और इकाइयों को सरकार द्वारा निर्धारित अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) पर उर्वरक बेचना आवश्यक है।

भारत में उर्वरक उपयोग की वर्तमान स्थिति:

  • वर्ष 2020-21 में उर्वरक सब्सिडी पर व्यय 1.62 लाख करोड़ रुपए था और वर्ष 2022 के दौरान यह 2.25 लाख करोड़ रुपए के आँकड़े को पार कर सकता है।
  • वर्ष 2020-21 के दौरान देश में चार उर्वरकों- यूरिया, DAP (डाई-अमोनियम फॉस्फेट), MOP (म्यूरिएट ऑफ पोटाश), NPKS (नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम) की कुल आवश्यकता 21% बढ़कर 640.27 लाख मीट्रिक टन (LMT) हो गई जो वर्ष 2017-18 में 528.86 लाख मीट्रिक टन थी।
    • अधिकतम 25.44% की वृद्धि DAP की आवश्यकता में दर्ज की गई है। यह वर्ष 2017-18 के 98.77 LMT से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 123.9 LMT के स्तर पर पहुँच गई।
    • देश में सबसे अधिक इस्तेमाल किये जाने वाले रासायनिक उर्वरक यूरिया ने पिछले पाँच वर्षों में 19.64 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। इसकी आवश्यकता 2017-18 के 298 LMT से बढ़कर 2021-22 में 356.53 LMT हो गई।

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सरकार द्वारा शुरू की गई अन्य संबंधित पहलें क्या हैं?

  • प्रत्यक्ष लाभ अंतरण: केंद्र ने अक्तूबर 2016 से उर्वरकों में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण प्रणाली की शुरुआत की, जिसके तहत विभिन्न उर्वरक ग्रेड पर उर्वरक कंपनियों को खुदरा विक्रेताओं द्वारा लाभार्थियों को की गई वास्तविक बिक्री के आधार पर 100% सब्सिडी जारी की जाती है।
  • नए पोषक तत्त्वों का समावेश: सरकार ने उर्वरक नियंत्रण आदेश-1985 (FCO) में नैनो यूरिया और "जैव-उत्तेजक" जैसे नए पोषक तत्त्वों को शामिल किया था।
  • यूरिया की नीम कोटिंग: उर्वरक विभाग (DOF) ने सभी घरेलू उत्पादकों के लिये नीम लेपित यूरिया (NCU) के रूप में 100% यूरिया का उत्पादन करना अनिवार्य कर दिया है।
    • NCU के उपयोग के लाभ निम्नानुसार हैं:-
      • मृदा स्वास्थ्य में सुधार।
      • पादप संरक्षण रसायनों के उपयोग में कमी।
      • कीट हमले और रोग में कमी।
      • धान, गन्ना, मक्का, सोयाबीन, अरहर/लाल चना की उपज में वृद्धि।
  • नई यूरिया नीति (NUP) 2015 के उद्देश्य हैं:
    • स्वदेशी यूरिया उत्पादन को अधिकतम करना।
    • यूरिया इकाइयों में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना।
    • भारत सरकार पर सब्सिडी के बोझ को तर्कसंगत बनाना।
  • उर्वरक क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग: DoF ने भूवैज्ञानिक के सहयोग से इसरो के तहत राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र द्वारा "रॉक फॉस्फेट का रिफ्लेक्सेंस स्पेक्ट्रोस्कोपी और पृथ्वी अवलोकन डेटा का उपयोग करके" तीन साल का पायलट अध्ययन शुरू किया।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:  

प्रश्न: भारत सरकार कृषि में 'नीम-लेपित यूरिया (नीम कोटेड यूरिया)' के उपयोग को क्यों बढ़ावा देती है? (2016)

(a) मृदा में नीम के तेल के प्रयोग से मृदा के सूक्ष्मजीवों द्वारा नाइट्रोजन स्थिरीकरण बढ़ जाता है।
(b) नीम कोटिंग मिट्टी में यूरिया के विघटन की दर को धीमा कर देती है।
(c) नाइट्रस ऑक्साइड जो एक ग्रीनहाउस गैस है, फसल के खेतों द्वारा वातावरण में बिल्कुल भी नहीं छोड़ा जाता है।
(d) यह विशेष फसलों के लिये खरपतवार और उर्वरक का संयोजन है।

उत्तर: b

व्याख्या:

  • साधारण यूरिया: यह एक उर्वरक है जो मृदा को नाइट्रोजन प्रदान करने के लिये प्रयोग किया जाता है, जो पौधों के विकास के लिये आवश्यक है। यूरिया में मौजूद नाइट्रोजन का केवल 30-40% ही फसलों द्वारा उपयोग किया जाता है। बाकी व्यर्थ हो जाता है। साधारण यूरिया अमोनियम कार्बामेट में परिवर्तित हो जाता है। इसमें से कुछ अमोनिया वाष्पीकरण नामक प्रक्रिया में अमोनिया गैस में परिवर्तित हो जाता है, जबकि शेष अमोनियम कार्बामेट एक रासायनिक परिवर्तन से गुजरता है और नाइट्रेट बनते हैं। इनमें से कुछ पौधों द्वारा अवशोषित कर लिये जाते हैं। शेष को या तो भूमिगत जल में निक्षालित किया जाता है या अवायवीय परिस्थितियों (ऑक्सीजन की अनुपस्थिति) के तहत गैसीय नाइट्रोजन और नाइट्रस ऑक्साइड में परिवर्तित कर दिया जाता है।
  • नीम कोटेड यूरिया: नीम में ऐसे गुण होते हैं जो प्रत्येक चरण में नाइट्रोजन की कमी को रोकते हैं। यह नाइट्रेट बनने की प्रक्रिया को धीमा कर देता है और इसलिये अनाइट्रीकरण के लिये अतिरिक्त नाइट्रेट उपलब्ध नहीं होता है। इस प्रकार यह मृदा में यूरिया के विघटन की दर को धीमा करके मृदा और भूमिगत जल के क्षरण और किसी भी बाद के वायु प्रदूषण का मुकाबला करने में मदद करता है।

अतः विकल्प (b) सही है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस