ग्रामीण भारत के विकास हेतु प्रमुख निर्णय | 04 Jun 2020

प्रीलिम्स के लिये

सरकार द्वारा लिये गए विभिन्न निर्णयों का विवरण

मेन्स के लिये

ग्रामीण भारत के विकास के संबंध में सरकार द्वारा लिये गए विभिन्न निर्णय और उनका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्‍यक्षता में ग्रामीण भारत और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार को लेकर केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक आयोजित की गई, जिसमें भारतीय ग्रामीण किसानों की मदद के साथ-साथ कृषि क्षेत्र में आमूलचूल बदलाव लाने हेतु कई महत्त्वपूर्ण और ऐतिहासिक निर्णय लिये गए। 

प्रमुख बिंदु

  • देश भर में COVID-19 महामारी के तीव्र प्रसार के कारण भारत समेत विश्व की तमाम अर्थव्यवस्थाएँ काफी तनाव का सामना कर रही हैं, पहले से ही सुस्त पड़ी भारतीय अर्थव्यवस्था अब और अधिक संकट की स्थिति में आ गई है।
  • उल्लेखनीय है कि COVID-19 महामारी से पूर्व भी भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था भारी तनाव का सामना कर रही थी और ग्रामीण मांग काफी न्यूनतम स्तर पर आ गई थी, इसके कारण न केवल भारतीय किसानों को नुकसान का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनः जीवित करना और भी चुनौतीपूर्ण हो गया है।
  • ऐसे में मंदी की स्थिति से निपटने के लिये सरकार द्वारा तमाम तरह के प्रयास किये जा रहे हैं, इन्ही प्रयासों की एक कड़ी के तौर पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने और किसानों की आय दोगुनी करने के उद्देश्य से सरकार द्वारा कुछ महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये गए हैं।

प्रमुख निर्णय

आवश्‍यक वस्‍तु अधिनियम में संशोधन

  • निर्णय: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आवश्‍यक वस्‍तु अधिनियम, 1955 में ऐतिहासिक संशोधन को मंज़ूरी दी है, जो कि कृषि क्षेत्र में आमूलचूल बदलाव लाने और किसानों की आय में बढ़ोतरी करने की दिशा में एक दूरदर्शी कदम है।
    • आवश्‍यक वस्‍तु अधिनियम में संशोधन के माध्यम से अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेलों, प्‍याज और आलू जैसी वस्‍तुओं को आवश्‍यक वस्‍तुओं की सूची से हटा दिया जाएगा। इस व्‍यवस्‍था से निजी निवेशक अत्‍यधिक नियामकीय हस्‍तक्षेप के भय से मुक्‍त हो जाएंगे।
    • वहीं सरकार ने नियामकीय व्‍यवस्‍था को उदार बनाने के साथ ही उपभोक्‍ताओं के हितों की रक्षा भी सुनिश्चित की है। संशोधन के तहत यह व्‍यवस्‍था की गई है कि अकाल, युद्ध, कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि और प्राकृतिक आपदा जैसी परिस्थितियों में इन कृषि‍ उपजों की कीमतों को नियंत्रित किया जा सकता है।
  • आवश्यकता: यद्यपि भारत में अधिकतर कृषि वस्तुओं के उत्पादन में अधिशेष की स्थिति है, किंतु इसके बावजूद कोल्‍ड स्‍टोरेज, प्रसंस्‍करण और निर्यात में निवेश के अभाव में किसान अपनी उपज की सही कीमत प्राप्त नहीं कर पाते हैं, क्योंकि आवश्यक वस्तु अधिनियम के भय के कारण उनकी उद्यमशीलता हतोत्‍साहित होती है। 
    • जब भी शीघ्र नष्‍ट हो जाने वाली कृषि उपज की अधिक पैदावार होती है, तो किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। ऐसे में यदि पर्याप्‍त प्रसंस्‍करण सुविधाएँ उपलब्‍ध हों तो व्यापक पैमाने पर इस प्रकार की बर्बादी को रोका जा सकता है।
  • लाभ: उत्‍पादन, भंडारण, ढुलाई, वितरण और आपूर्ति करने की आज़ादी से व्‍यापक स्‍तर पर उत्‍पादन करना संभव हो जाएगा और इसके साथ ही कृषि क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment-FDI) को आकर्षित किया जा सकेगा। इससे कोल्‍ड स्‍टोरेज में निवेश बढ़ाने और खाद्य आपूर्ति श्रृंखला (Supply Chain) के आधुनिकीकरण में मदद मिलेगी।
    • यह संशोधन किसानों और उपभोक्‍ताओं दोनों के लिये ही मददगार साबित होगा। इसके साथ ही भंडारण सुविधाओं के अभाव के कारण होने वाली कृषि उपज की बर्बादी को भी रोका जा सकेगा।

कृषि उपज का बाधा मुक्त व्यापार

  • निर्णय: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘कृषि उपज वाणिज्य एवं व्यापार (संवर्द्धन एवं सुविधा) अध्यादेश 2020’ को मंज़ूरी दी है। इस अध्‍यादेश का मूल उद्देश्य ‘कृषि उत्पाद विपणन समिति’ (APMC) की सीमाओं से बाहर किसानों को कारोबार के अतिरिक्‍त अवसर मुहैया कराना है जिससे कि उन्हें प्रतिस्पर्द्धात्मक माहौल में अपने उत्पादों की अच्‍छी कीमतें मिल सकें।
  • आवश्यकता: कई प्रकार के नियामक प्रतिबंधों के कारण देश के किसानों को अपने उत्पाद बेचने में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अधिसूचित कृषि उत्पाद विपणन समिति (APMC) वाले बाज़ार क्षेत्र के बाहर किसानों पर उत्पाद बेचने पर कई तरह के प्रतिबंध हैं। उन्हें अपने उत्पाद सरकार द्वारा लाइसेंस प्राप्त खरीदारों को ही बेचने की बाध्यता है।
  • लाभ: अध्यादेश के लागू होने से किसानों के लिये एक सुगम और मुक्त व्यापार वातावरण निर्मित हो सकेगा जिसमें उन्हें अपनी सुविधा के अनुसार कृषि उत्पाद खरीदने और बेचने की स्वतंत्रता होगी। 

    • इससे किसानों को अधिक विकल्प मिल सकेंगे, बाज़ार की लागत कम होगी और किसानों को अपनी उपज की बेहतर कीमत मिल सकेगी। इसके अलावा अतिरिक्त उपज वाले क्षेत्रों में भी किसानों को उनके उत्पाद का सही मूल्य मिल सकेगा और साथ ही कम उपज वाले क्षेत्रों में उपभोक्ताओं को भी अधिक कीमतें नहीं चुकानी पड़ेंगी।
    • अध्यादेश में कृषि उत्पादों का सुगम व्यापार सुनिश्चित करने के लिये एक ई-प्लेटफॉर्म निर्मित किये जाने का भी प्रस्ताव है।
    • यह अध्यादेश निश्चित रूप से भारत में ‘एक देश, एक कृषि बाज़ार’ के निर्माण का मार्ग प्रशस्‍त करेगा और कठोर परिश्रम करने वाले हमारे किसानों के लिये सही कीमत सुनिश्चित करेगा।

किसानों को विभिन्न हितधारकों से जोड़कर सशक्त बनाना

  • निर्णय: प्रधानमंत्री नरेंद्र की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश, 2020’ को भी स्वीकृति दी है। यह अध्यादेश किसानों की उपज की वैश्विक बाज़ारों में आपूर्ति के लिये आवश्यक आपूर्ति श्रृंखला तैयार करने का कार्य करेगा। किसानों की ऊँचे मूल्य वाली कृषि हेतु तकनीक और परामर्श तक पहुँच सुनिश्चित होगी, साथ ही उन्हें ऐसी फसलों के लिये तैयार बाज़ार भी मिलेगा।
  • आवश्यकता: भारतीय कृषि को खेतों के छोटे आकार के कारण विखंडित खेती के रूप में वर्गीकृत किया जाता है तथा मौसम पर निर्भरता, उत्पादन की अनिश्चितता और बाज़ार अनिश्चितता इसकी कुछ प्रमुख समस्याएँ हैं। इसके चलते कृषि में काफी अधिक जोखिम है और इनपुट (Input) तथा आउटपुट (Output) प्रबंधन के मामले में कृषि काफी अप्रभावी है।
  • लाभ: यह अध्यादेश ग्रामीण किसानों को शोषण के भय के बिना समानता के आधार पर प्रसंस्करणकर्त्ताओं, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा कारोबारियों, निर्यातकों आदि के साथ जुड़ने में सक्षम बनाएगा। इससे किसानों की आधुनिक तकनीक और बेहतर इनपुट्स (Inputs) तक पहुँच भी सुनिश्चित होगी। इससे विपणन की लागत में कमी आएगी और किसानों की आय भी सुधरेगी।
    • किसान प्रत्यक्ष रूप से विपणन से जुड़ सकेंगे, जिससे मध्यस्थों की भूमिका समाप्त होगी और उन्हें अपनी फसल का बेहतर मूल्य मिलेगा।

किसानों के कल्याण के लिये सरकार की प्रतिबद्धता 

  • सरकार द्वारा कृषि और संबद्ध गतिविधियों में संलग्न लोगों को बढ़ावा देने के लिये ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ के हिस्से के तौर पर कई कदमों की घोषणा की गई हैं।
  • इनमें किसान क्रेडिट कार्ड (Kisan Credit Card) के ज़रिये रिआयती ऋण देना, कृषि-ढाँचा संबंधी परियोजनाओं के लिये वित्तीय सुविधा, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना और मछलीपालन को मज़बूत करने हेतु उपाय, विभिन्न बिमारियों के विरुद्ध टीकाकरण अभियान, हर्बल खेती (Herbal Cultivation) को प्रोत्साहन, मधुमक्खी पालन को बढ़ावा और ऑपरेशन ग्रीन (Operation Green) आदि शामिल हैं।
  • प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (Pradhan Mantri Kisan Samman Nidhi-PM-KISAN) योजना के माध्यम से 9.54 करोड़ से अधिक किसान परिवारों को लाभ हुआ है और लॉकडाउन अवधि के दौरान अब तक 19,515 करोड़ रुपए वितरित किये गए हैं। लॉकडाउन अवधि के दौरान प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana-PMFBY) के तहत 8,090 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया है। 

COVID-19 और भारतीय अर्थव्यवस्था

  • देश में कोरोना वायरस (COVID-19) के प्रकोप को रोकने के लिये देशव्यापी लॉकडाउन लागू किया गया है, ऐसे में सभी प्रकार की विनिर्माण और गैर-विनिर्माण गतिविधियाँ रुक गई हैं।
  • COVID-19 ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को काफी गंभीर रूप से प्रभावित किया है और भारत इसका कोई अपवाद नहीं है।
  • पहले से ही संकट का सामना कर रही भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था और अधिक संकट की स्थिति में आ गई है। विभिन्न विशेषज्ञों का मानना है कि लॉकडाउन का भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर काफी अधिक प्रभाव पड़ेगा।
  • ग्रामीण क्षेत्र में COVID-19 का सबसे अधिक प्रभाव कृषि आपूर्ति-श्रृंखला पर देखने को मिला है, यद्यपि सरकार ने परमिट व्यवस्था के माध्यम से आवश्यक फल ​​और अनाज के आवागमन को सुनिश्चित करने का प्रयास किया है, किंतु इस व्यवस्था का सफल कार्यान्वयन नहीं हो सका और अधिकांश लोगों को इस प्रकार का परमिट नहीं मिल सका।
    • इससे राज्यों के कई किसानों को राजस्व का भारी नुकसान हो रहा है। 
  • लॉकडाउन के कारण देश का कृषि निर्यात पूरी तरह से बंद हो गया है, जिससे किसानों को नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। आँकड़ों के अनुसार, भारत फसलों का एक प्रमुख निर्यातक है और वित्तीय वर्ष 2018-19 में भारत का कुल कृषि निर्यात 685 अरब रुपए था।

स्रोत: पी.आई.बी.