पश्चिमी घाट पर याचिका | 15 Sep 2022

प्रिलिम्स के लिये: 

पश्चिमी घाट, पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ईएसए), गाडगिल समिति, पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल (डब्ल्यूजीईईपी), कस्तूरीरंगन समिति।

मेन्स के लिये:

पश्चिमी घाटों का महत्त्व, पश्चिमी घाटों के समक्ष आने वाले खतरे।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका (Public Interest Litigation-PIL) को खारिज कर दिया है, जिसने पश्चिमी घाट पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (Ecologically Sensitive Areas-ESA) पर गाडगिल और कस्तूरीरंगन समितियों को चुनौती दी थी।

पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ESA):

  • ESA पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत संरक्षित क्षेत्रों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा अधिसूचित क्षेत्र हैं।
  • इसका मूल उद्देश्य राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास कुछ गतिविधियों को विनियमित करना है ताकि संरक्षित क्षेत्रों को शामिल करने वाले नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र पर ऐसी गतिविधियों के नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सके।

जनहित याचिका द्वारा की गई मांग:

  • याचिकाकर्त्ता ने सर्वोच्च न्यायालय से पश्चिमी घाट में विशेषज्ञ पैनल (गाडगिल समिति रिपोर्ट) और उच्च स्तरीय कार्य समूह (कस्तूरीरंगन समिति रिपोर्ट) की सिफारिशों को लागू नहीं करने का अनुरोध किया था।
  • याचिकाकर्त्ता ने न्यायालय से केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF & CC) द्वारा वर्ष 2018 के मसौदा अधिसूचना को अल्ट्रा वायर्स (इसकी कानूनी शक्ति या अधिकार से परे) घोषित करने के लिये कहा क्योंकि इससे नागरिकों के जीवन के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है।
  • याचिकाकर्त्ता ने केरल के पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति की वर्ष 2014 की रिपोर्ट को लागू करने पर जोर दिया।
    • रिपोर्ट ने पश्चिमी घाटों में पर्यावरणीय रूप से भंगुर भूमि (Environmentally Fragile Land-EFL) के खंडों में परिवर्तन को लागू करने की सिफारिश की, जिसमें EFL क्षेत्रों को निर्धारित करने में हुई चूक को बताया गया है।

सर्वोच्च न्यायालय का पक्ष:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वर्ष 2018 में जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF & CC) मसौदा अधिसूचना को चुनौती दी गई थी, जिसके बाद जुलाई 2022 में पाँचवी मसौदा अधिसूचना जारी की गई थी।
    • जुलाई में जारी मसौदा अधिसूचना खनन, थर्मल पावर प्लांट और सभी 'रेड' श्रेणी के उद्योगों को ESA में आने से रोकती है।
  • न्यायालय को भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने का कोई कारण नहीं मिला।

समितियों के अनुसार

  • गाडगिल समिति:
    • पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल (Western Ghats Ecology Expert Panel-WGEEP) के रूप में भी जाना जाता है, इसने सिफारिश की कि पश्चिमी घाटों को पारिस्थितिक संवेदनशील क्षेत्रों (Ecological Sensitive Areas-ESA) के रूप में घोषित किया जाए, केवल सीमित क्षेत्रों में सीमित विकास की अनुमति दी जाए।
    • इसने छह राज्यों में फैले पूरे पश्चिमी घाट को पारिस्थितिक संवेदनशील क्षेत्रों (ESZ) के रूप में वर्गीकृत किया, जिसमें 44 ज़िले और 142 तालुका शामिल हैं।
  • कस्तूरीरंगन समिति:
    • इसने गाडगिल रिपोर्ट द्वारा प्रस्तावित प्रणाली के विपरीत विकास और पर्यावरण संरक्षण को संतुलित करने की मांग की।
    • कस्तूरीरंगन समिति ने सिफारिश की कि पश्चिमी घाट के कुल क्षेत्रफल के बजाय, कुल क्षेत्रफल का केवल 37% ही ESA के तहत लाया जाना चाहिये और ESA में खनन, उत्खनन और रेत खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाना चाहिये।

पश्चिमी घाट

  • परिचय:
    • पश्चिमी घाट भारत के पश्चिमी तट के समानांतर और केरल, महाराष्ट्र, गोवा, गुजरात, तमिलनाडु और कर्नाटक राज्यों से गुज़रने वाले पहाड़ों की शृंखला से मिलकर बना है।
  • महत्त्व:
    • घाट भारतीय मानसून के मौसम के प्रतिरूप को प्रभावित करते हैं जो इस क्षेत्र की गर्म उष्णकटिबंधीय जलवायु में संतुलन स्थापित करते हैं।
    • वे दक्षिण-पश्चिम से आने वाली वर्षा से भरी मानसूनी हवाओं के लिये बाधा के रूप में कार्य करते हैं।
    • पश्चिमी घाट उष्णकटिबंधीय सदाबहार वनों के साथ-साथ विश्व स्तर पर संकटग्रस्त 325 प्रजातियों का घर है।

पश्चिमी घाट के लिये खतरा:

  • विकासात्मक दबाव:
    • कृषि विस्तार और पशुधन चराई के साथ शहरीकरण इस क्षेत्र के लिये गंभीर खतरा पैदा कर रहा है।
    • लगभग 50 मिलियन लोगों के पश्चिमी घाट क्षेत्र में रहने का अनुमान है, जिसके परिणामस्वरूप विकासात्मक दबाव दुनिया भर के कई संरक्षित क्षेत्रों की तुलना में अधिक है।
  • जैवविविधता संबंधित मुद्दे:
    • वन क्षरण, आवास विखंडन, आक्रामक पौधों की प्रजातियों द्वारा आवास क्षरण, अतिक्रमण और रूपांतरण भी घाटों को प्रभावित कर रहे हैं।
    • पश्चिमी घाट में विकास के दबाव के कारण होने वाले विखंडन से संरक्षित क्षेत्रों के बाहर वन्यजीव गलियारों और उपयुक्त आवासों की उपलब्धता कम हो रही है।
  • जलवायु परिवर्तन:
    • मध्यवर्ती वर्षों में जलवायु संकट ने गति पकड़ी है:
    • पिछले चार वर्षों (2018-21) में बाढ़ ने केरल के घाट क्षेत्रों को तीन बार तबाह किया है, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए और बुनियादी ढाँचे और आजीविका को भारी नुकशान हुआ है।
    • वर्ष 2021 में कोंकण के घाट क्षेत्रों में भूस्खलन और अचानक आई बाढ़ ने तबाही मचा दी थी।
    • अरब सागर के गर्म होने से चक्रवात भी तीव्रता से बढ़ रहे हैं, जिससे पश्चिमी तट विशेष रूप से संवेदनशील हो गया है।
  • औद्योगीकरण से खतरा:
    • पश्चिमी घाट में ESA नीति की अनुपस्थिति के कारण अधिक प्रदूषणकारी उद्योगों, खदानों, खानों, सड़कों और टाउनशिप की योजना बनाई जा सकती है।
    • इसका मतलब है कि भविष्य में इस क्षेत्र के संवेदनशील परिदृश्य को और अधिक नुकसान होगा।

आगे की राह

  • जलवायु परिवर्तन जो कि सभी लोगों की आजीविका को प्रभावित करेगा और देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचा सकता है, को ध्यान में रखते हुए ऐसे संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र का संरक्षण विवेकपूर्ण तरीके से किया जाना चाहिये।
  • वैज्ञानिक अध्ययन पर आधारित एक उचित विश्लेषण के बाद संबंधित चिंताओं को दूर करने के लिये विभिन्न हितधारकों के बीच आम सहमति की तत्काल आवश्यकता है।
  • वन भूमि, उत्पादों और सेवाओं पर खतरों तथा मांगों के बारे में समग्र दृष्टिकोण, शामिल अधिकारियों के लिये स्पष्ट रूप से बताए गए उद्देश्यों के साथ इनसे निपटने हेतु रणनीति तैयार होनी चाहिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:

Q कभी-कभी सामाचारों में आने वाली 'गाडमिल समिति रिपोर्ट' और 'कस्तूरीरंगन समिति रिपोर्ट' संबंधित हैं (2016):

(a) संवैधानिक सुधारों से
(b) गंगा कार्य-योजना
(c) नदियों को जोड़ने से
(d) पश्चिमी घाटों के संरक्षण से

उत्तर: (d)

  • पश्चिमी घाट पर जनसंख्या दबाव, जलवायु परिवर्तन और विकास गतिविधियों के प्रभाव का अध्ययन करने के लिये वर्ष 2010 में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा गाडगिल समिति का गठन किया गया था।
  • पश्चिमी घाट के सतत् एवं समावेशी विकास को बरकरार रखते हुए पश्चिमी घाट की जैवविविधता के संरक्षण एवं सुरक्षा हेतु भारत सरकार ने वर्ष 2012 में डॉ. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय कार्यदल का गठन किया था।
  • अतः विकल्प (d) सही उत्तर है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ