प्रमुख बंदरगाहों के संरचनात्मक पुनर्गठन के लिये नया कानून तैयार | 02 Jun 2018

चर्चा में क्यों?

जहाज़रानी मंत्रालय ने देश के बंदरगाहों के लिये एक शताब्दी पुराने बहुप्रयोजन वाले कानून को फिर से लिखने के लिये भारतीय बंदरगाह विधेयक 2018 का मसौदा तैयार किया है। भारतीय बंदरगाह अधिनियम, 1908 को फिर से लिखने का कदम इस बात का प्रतीक है कि केंद्र एक कानून के माध्यम से ट्रस्ट के रूप में चलने वाले 12 बंदरगाहों के संवैधानिक ढाँचे को परिवर्तित करने के लिये प्लान B तैयार करा रहा था।

क्या है संशोधन?

  • संसदीय स्थायी समिति की सिफारिशों के आधार पर मंत्रिमंडल की सहमति का अनुसरण करते हुए जहाज़रानी मंत्रालय ने प्रमुख बंदरगाह प्राधिकरण विधेयक के कुछ खंडों में संशोधन किया है, यह उन 11 प्रमुख बंदरगाहों को प्राधिकरण बनाने की मांग करता है, जो कि वर्तमान में ट्रस्ट के रूप में संचालित हो रहे हैं।
  • प्रमुख बंदरगाह प्राधिकरण विधेयक में प्रमुख बंदरगाहों के निगमीकरण या निजीकरण के प्रावधान नहीं हैं।

कर्मचारियों की नाराज़गी

  • हालाँकि इन परिवर्तनों ने उन कर्मचारी संगठनों का शमन नहीं किया है जो मंत्रालय द्वारा प्रायोजित ढाँचागत सुधार के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे और इस संशोधन को ‘कॉस्मेटिक तथा फर्जी’ कहते हुए विधेयक को वापिस लेने की मांग कर रहे थे।
  • अन्य बातों के अलावा, इन कर्मचारी संगठनों को डर है कि सरकार 'बंदरगाह प्राधिकरण' को 'कंपनी' में बदलने के लिये नीतिगत निर्देश जारी करने हेतु अपनी शक्तियों का उपयोग कर सकती है तथा यह भी संभव है कि बाद में इन बंदरगाहों के निजीकरण की ओर अग्रसर हो सकती है।

समिति की शर्तें

  • कमेटी, जिसने इस विधेयक का प्रारूपण किया है, के अनुमोदन की शर्तों में अप्रचलित खंडों को निरस्त करने और अपने प्रशासन में व्यावसायिकता लाने के लिये एक नई धारा को शामिल करने हेतु जनादेश शामिल था। 
  • समिति ने भारतीय बंदरगाह अधिनियम, 1908 को फिर से लिखते समय लगभग 20 खंडों को समाप्त कर दिया जिसमें आलोचकों के अनुसार प्रमुख बंदरगाहों के राजस्व उत्पादन को क्षति पहुँचाने की क्षमता थी।
  • अधिक गंभीर बात यह है कि भारतीय बंदरगाह विधेयक, 2018 में एक नया खंड जोड़ा गया है जो सरकार को "विशेष मामलों में बंदरगाह के परिवर्तनों संबंधी पूरे या किसी भी हिस्से को मुक्त करने" के लिये शक्ति प्रदान करता है।
  • इससे केवल जहाज़ उत्पादक संघों को लाभ होगा।

विधेयकों का विवादास्पद विलय

  • अपने मौजूदा रूप में भारत बंदरगाह अधिनियम का प्रयोग गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, ओडिशा और केरल जैसे बंदरगाहों का निजीकरण (केंद्र सरकार के नियंत्रण के बाहर) करने के लिये तटवर्ती राज्यों द्वारा किया गया है।
  • सरकार के अंतर्गत ही एक वर्ग का मानना है कि श्रमिक संघों की चिंताओं पर ध्यान दिये बिना बंदरगाहों के निगमीकरण के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये दोनों कानूनों का विलय यह एक "आदर्श" सिद्ध होगा।
  • प्रमुख बंदरगाहों के प्रबंधन को इस नए अधिनियम में एक अध्याय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
  • लेकिन सरकार ने पहले प्रमुख बंदरगाह प्राधिकरण विधेयक को स्थानांतरित कर दिया, जो अब संसद की संपत्ति है।

निष्कर्ष

भारतीय बंदरगाह विधेयक वर्तमान में विभिन्न हितधारकों के साथ परामर्श प्रक्रिया से गुज़र रहा है। एक बार इसकी पुष्टि हो जाने के बाद यह एक नीति निर्णय बन जाएगा।