पर्माफ्रॉस्ट व जलवायु परिवर्तन | 16 Jun 2020

प्रीलिम्स के लिये 

पर्माफ्रॉस्ट से तात्पर्य

मेन्स के लिये

जलवायु पर पड़ने वाला प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रूस के आर्कटिक क्षेत्र में स्थित विद्युत संयंत्र से हुए लगभग 20,000 टन तेल रिसाव (Oil Spil) का मुख्य कारण पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने को माना जा रहा है

प्रमुख बिंदु

  • मॉस्को से 3,000 किमी उत्तर-पूर्व में स्थित नॉरिल्स्क (Norilsk) शहर में भू-तापीय विद्युत संयंत्र पूरी तरह से पर्माफ्रॉस्ट पर निर्मित किया गया था
  • कई वर्षों में जलवायु परिवर्तन और अन्य मौसमी घटनाओं के कारण पर्माफ्रॉस्ट कमज़ोर हो गया था, परिणामस्वरूप पर्माफ्रॉस्ट पर बने भू-तापीय विद्युत संयंत्र के स्तंभ गिर गए, जिससे संयंत्र से तेल का रिसाव प्रारंभ हो गया
  • इस तेल के रिसाव के कारण आर्कटिक क्षेत्र से बहने वाली अंबरनाया नदी व्यापक रूप से प्रदूषित हो गई जिससे सूक्ष्म जीवों को व्यापक हानि पहुँचने की आशंका व्यक्त की गई है
  • यह दुर्घटना रूस के इतिहास की दूसरी बड़ी तेल रिसाव की घटना है। इससे पूर्व ऐसी दुर्घटना वर्ष 1994 में कच्चे तेल के रिसाव के कारण हुई थी।

क्या है पर्माफ्रॉस्ट?

  • पर्माफ्रॉस्ट अथवा स्थायी तुषार-भूमि वह मिट्टी है जो 2 वर्षों से अधिक अवधि से शून्य डिग्री सेल्सियस (32 डिग्री F) से कम तापमान पर जमी हुई अवस्था में है।
  • पर्माफ्रॉस्ट मिट्टी में पत्तियाँ, टूटे हुए वृक्ष आदि के बिना क्षय हुए पड़े रहते है। इस कारण यह जैविक कार्बन से समृद्ध होती है।
  • जब मिट्टी जमी हुई होती है, तो कार्बन काफी हद तक निष्क्रिय होता है, लेकिन जब पर्माफ्रॉस्ट का ताप बढ़ता है तो सूक्ष्मजीवों की गतिविधियों के कारण कार्बनिक पदार्थ का अपघटन तेज़ी से बढ़ने लगता है। फलस्वरूप वातावरण में कार्बन की सांद्रता बढ़ने लगती है।
  • ऐसा ध्रुवीय क्षेत्रों, अलास्का, कनाडा और साइबेरिया जैसे उच्च अक्षांशीय अथवा पर्वतीय क्षेत्रों में होता है जहाँ ऊष्मा पूर्णतया मिट्टी की सतह को गर्म नहीं कर पाती है। 

पर्माफ्रॉस्ट पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव 

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  • आर्कटिक में वायु के बढ़ते तापमान से पर्माफ्रॉस्ट का गलन प्रारंभ होने से कार्बनिक पदार्थ विघटित होकर कार्बन को ग्रीनहाउस गैसों कार्बन-डाइऑक्साइड और मीथेन के रूप में वायुमंडल में उत्सर्जित कर देते है।
  • जलवायु परिवर्तन के कारण पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्रों में वैश्विक तापमान की दर 20वीं सदी के तापमान से 3.5 प्रतिशत अधिक है, जिससे बर्फ पिघलने की गति में वृद्धि हो रही है। 
  • उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित कई स्थान पर्माफ्रॉस्ट पर बसे हुए हैं। पर्माफ्रॉस्ट जमी अवस्था में एक मज़बूत आधार के रूप में कार्य करता है परंतु वैश्विक तापन से इसके पिघलने के कारण घरों, सड़कों तथा अन्य बुनियादी ढाँचे के नष्ट होने का खतरा बढ़ गया है।
  • जब पर्माफ्रॉस्ट जमी अवस्था में होता है तो मृदा में मौजूद जैविक कार्बन का विघटन नहीं हो पाता है परंतु जब पर्माफ्रॉस्ट पिघलता है तो सूक्ष्म जीवाणु इस सामग्री को विघटित करना शुरू कर देते हैं। जिससे कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसें वायुमंडल में मुक्त होती हैं।

अवसंरचना के लिये हानिकारक 

  • पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से न केवल प्राकृतिक बल्कि मानव-निर्मित अवसंरचना के भी अस्थिर होने का खतरा बना रहता है।
  • सतह के अस्थिर होने से भूस्खलन, भूकंप तथा बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएँ आ सकती हैं जिससे सड़कें, रेलवे लाइनों, भवनों, विद्युत संयंत्रों और गैस पाइपलाइन जैसे प्रमुख बुनियादी ढाँचों को नुकसान होता है।
  • इससे स्थानीय लोगों के घरों के साथ-साथ आर्कटिक जानवरों के निवास स्थल और उनके अस्तित्त्व पर भी खतरा मंडराने लगता है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस