पेगासस | 25 May 2019

चर्चा में क्यों?

तकनीकी दस्तावेज़ ‘पेगासस’ यानी Phycomorph European Guidelines for a Sustainable Aquaculture of Seaweeds (PEGASUS), यूरोपीय समुद्री शैवाल उत्पादन की वर्तमान स्थिति की विशेषताओं और चुनौतियों पर प्रकाश डालता है। साथ ही यह इस श्रृंखला के विभिन्न स्तरों के संदर्भ में अल्पकालिक और दीर्घकालिक सुधारों की सिफारिशों को भी प्रस्तुत करता है।

  • फियोमॉर्फ़ (Phycomorph) अंतर्राष्ट्रीय शैक्षणिक प्रयोगशालाओं का एक नेटवर्क है, जो वृहद् विकास से संबंधित एक या कई मुद्दों को संबोधित करता है। नेटवर्क की गतिशीलता यूरोप में स्थायी समुद्री शैवालों की जलीय कृषि के लिये दिशा-निर्देश तैयार करने हेतु तकनीकी कौशल में हुई हालिया प्रगति और अनुभव को साझा करने के लिये नियमित बैठकों और छात्र एक्सचेंज कार्यक्रमों पर आधारित है।
  • PHYCOMORPH का मुख्य उद्देश्य सूक्ष्म शैवालों के प्रजनन और विकास के बुनियादी ज्ञान में यूरोपीय अनुसंधान परिदृश्य को एकजुट कर सक्षम बनाना है।
  • समुद्री शैवाल, बहुकोशिकीय जीव होते हैं जो मुख्य रूप से समुद्री या मीठे पानी में पाए जाते हैं (कुछ स्थायी रूप से पानी से बाहर रहते हैं)।
  • समुद्री शैवाल पौधों की तरह वे जीव होते हैं जो तटीय पारिस्थितिक तंत्र में महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकीय भूमिका निभाते हैं। ये भविष्य के लिये संभावनापूर्ण जैव संसाधन हैं क्योंकि दुनिया भर में उच्च मूल्य वाले समुद्री शैवाल-व्युत्पन्न यौगिकों (सौंदर्य प्रसाधन, भोजन) की मांग में निरंतर इज़ाफा हो रहा है।
  • पौधों की तरह ये पानी में घुली वायुमंडलीय कार्बन के विघटन हेतु प्रकाश का उपयोग करते हैं। सूक्ष्म शैवाल पृथ्वी पर पाए जाने वाले सबसे शक्तिशाली कार्बन-स्थिरीकरण वाले जीवों में से हैं। इनका आकार कुछ मिलीमीटर से लेकर 50 मीटर तक होता है।

समुद्री शैवालों की जलीय कृषि का महत्त्व

  • खाद्य सुरक्षा: वर्ष 2050 तक खाद्य जैव संसाधनों पर 9 अरब लोगों की खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने का भार होगा।
  • समुद्री शैवालों की जलीय कृषि पोषण, स्वास्थ्य और स्थायी जैव अर्थव्यवस्था से संबंधित वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने में सहायक साबित हो सकती है।
  • पर्यावरण संरक्षण: यह खाद्य श्रृंखला, तटों की अपरदन से संरक्षण, नाइट्रोजन या फॉस्फेट और CO2 प्रच्छादन जैसे संभावित प्रदूषकों को नष्ट करने में सहायता करेगी।

दवा और चिकित्सकीय अनुप्रयोग:

  • विभिन्न सूक्ष्म शैवालों के जीवाणुरोधी (Antibacterial) और कवकरोधी (Antifungal) प्रभावों को चिह्नित किया गया है।
  • इसमें कैंसर के संभावित इलाज हेतु संभावनाजनक यौगिक पाए जाते हैं। यह मानव की कैंसर श्रृंखला के विरुद्ध एक शक्तिशाली साइटोटोक्सिक (Cytotoxic) गतिविधि (सेल के विकास और गुणन में अवरोध) को दर्शाता है।
  • यह वयस्क टी-सेल ल्यूकेमिया (Adult T-cell leukaemia-ATL) के विरुद्ध चिकित्सा संबंधी उपकरणों के रूप में भी उपयोगी हो सकता है।
  • इसका उपयोग एंटी-ऑक्सीडेंट (Anti-Oxidant) और एंटी-इंफ्लेमेटरी (Anti-Inflammatory) एजेंट के रूप में भी किया जा सकता है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत: स्थलीय मूल के ईंधनों की तुलना में शैवाल जैव ईंधन के तौर पर एक बेहतर विकल्प साबित हो सकते हैं, इनमें उच्च ऊर्जा, तेज़ी से विकसित होने की क्षमता और स्थलीय जैव ईंधन के प्रतिस्पर्द्धी होने के बजाय उनके पूरक के रूप में व्यवहार करने की क्षमता अंतर्निहित होती है।
  • प्रसाधन उत्पाद: शैवालों में पाई जाने वाली वसा (lipid) के कारण इनका उपयोग तेलों के उत्पादन हेतु किया जा सकता है, ये कॉस्मेटिक उत्पादों के निर्माण हेतु उत्कृष्ट विकल्प हैं।
  • रोज़गार सृजन: शैवाल उद्योग अनुसंधान से लेकर इंजीनियरिंग तक, विनिर्माण से लेकर कृषि और विपणन से लेकर वित्तीय सेवाओं तक कई प्रकार के रोज़गार के अवसरों का सृजन करने में सक्षम हैं।

भारत में समुद्री शैवाल का निर्माण

  • सेंट्रल मरीन फिशरीज़ रिसर्च इंस्टीट्यूट (Central Marine Fisheries Research Institute-CMFRI) की एक रिपोर्ट के अनुसार, हर साल केवल 30 मिलियन टन समुद्री शैवाल (जिनका बाज़ार मूल्य €8 बिलियन है) का उपयोग किया जाता है।
  • भारत में  तमिलनाडु, गुजरात के तटों और लक्षद्वीप, अंडमान एवं निकोबार द्वीपों के आसपास बहुतायत में समुद्री शैवाल पाए जाते हैं।
  • भारतीय तट के अंतर-ज्वारीय और गहरे जल क्षेत्रों में समुद्री शैवाल की लगभग 700  प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से लगभग 60 प्रजातियाँ व्यावसायिक रूप से महत्त्वपूर्ण हैं।