भारत में संसदीय विशेषाधिकार | 23 Dec 2025

प्रिलिम्स के लिये: संसदीय विशेषाधिकार, विकसित भारत- रोज़गार और आजीविका के लिये गारंटी मिशन (ग्रामीण) विधेयक, 2025, संसद, अनुच्छेद 105, अनुच्छेद 122, अनुच्छेद 194, अनुच्छेद 212, संसद सदस्य (सांसद), 44वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1978

मेन्स के लिये: संसदीय विशेषाधिकारों से संबंधित प्रमुख प्रावधान, विशेषाधिकार का उल्लंघन। संसदीय विशेषाधिकारों से संबंधित चिंताएँ और उस पर न्यायिक रुख। संसदीय विशेषाधिकारों में सुधार की आगे की राह।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

लोकसभा अध्यक्ष विकसित भारत- रोज़गार और आजीविका के लिये गारंटी मिशन (ग्रामीण) विधेयक, 2025 पर बहस के दौरान कथित अव्यवस्थित आचरण पर संसदीय विशेषाधिकार उल्लंघन और सदन की अवमानना के आरोपों पर प्राप्त सूचना की जाँच कर रहे हैं।

  • नोटिस में इन कार्यों को सदन की उपस्थिति में कदाचार, अध्यक्ष के प्राधिकार की अवहेलना और सदन के अधिकारियों के कार्य में बाधा के रूप में उद्धृत किया गया है, जो सांसदों के विशेषाधिकारों का सामूहिक उल्लंघन माना जाता है।

सारांश 

  • संसदीय विशेषाधिकार विधायी स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं, जिसमें वाक-स्वातंत्र्य, गिरफ्तारी से प्रतिरक्षा और कार्यवाही को विनियमित करने का प्राधिकार शामिल है।
  • विशेषाधिकार का उल्लंघन और अवमानना भिन्न है, जिनका नोटिस, जाँच और दंड की प्रक्रियाएँ संसदीय नियमों द्वारा परिभाषित हैं।
  • चुनौतियों में दुरुपयोग, अधिकारों के साथ संघर्ष और पारदर्शिता की कमी शामिल है; सुधार वैधानिक ढाँचे, नैतिकता प्रवर्तन और मौलिक अधिकारों के साथ समन्वय का सुझाव देते हैं।

संसदीय विशेषाधिकार क्या हैं?

  • परिचय: संसदीय विशेषाधिकार वे विशेष अधिकार, प्रतिरक्षा और छूट हैं जो संसद के प्रत्येक सदन, इसकी समितियों और इसके सदस्यों को प्राप्त हैं।
  • उद्देश्य: ये संसदीय कार्यों के प्रभावी निर्वहन के लिये आवश्यक हैं और अन्य निकायों या व्यक्तियों के पास मौजूद अधिकारों से अधिक होते हैं।
  • विशेषाधिकारों के प्रकार:
    • सामूहिक विशेषाधिकार: सदन को सामूहिक रूप से प्राप्त अधिकार (जैसे, कार्यवाही को विनियमित करने का अधिकार, अवमानना के लिये दंडित करने का अधिकार, अजनबियों को बाहर रखने का अधिकार)।
    • व्यक्तिगत विशेषाधिकार: सदस्यों के अधिकार (जैसे, संसद में वाक-स्वातंत्र्य, सिविल मामलों में गिरफ्तारी से छूट)।
  • संसदीय विशेषाधिकारों के स्रोत:
    • संवैधानिक आधार: अनुच्छेद 105, अनुच्छेद 122, अनुच्छेद 194 और अनुच्छेद 212 संसद सदस्यों (सांसदों) और विधान सभा सदस्यों (विधायकों) को विभिन्न प्रकार के विशेषाधिकार प्रदान करते हैं।
    • वैधानिक आधार: अनुच्छेद 105(3) के अनुसार, जब तक संसद कानून द्वारा परिभाषित नहीं किया जाता, तब तक विशेषाधिकार 1950 की ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स के विशेषाधिकार होंगे। कोई व्यापक कानून अधिनियमित नहीं किया गया है, इसलिये ब्रिटिश मिसालों की भूमिका अब भी प्रमुख बनी हुई है।
    • संसदीय परंपराएँ: ब्रिटिश संसदीय प्रथाओं पर आधारित।
    • संसदीय प्रक्रिया: कार्य संचालन और व्यवसाय नियम (लोकसभा और राज्यसभा)।
    • न्यायिक व्याख्याएँ: सर्चलाइट केस, 1958, JMM रिश्वत मामला, 1998, आदि।
  • विशेषाधिकार का उल्लंघन: विशेषाधिकार का उल्लंघन तब होता है जब किसी व्यक्तिगत या सामूहिक संसदीय विशेषाधिकार का उल्लंघन या अवहेलना की जाती है।
  • विशेषाधिकार प्रस्ताव: यह किसी मंत्री द्वारा संसदीय विशेषाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित है। इसे एक सदस्य द्वारा तब लाया जाता है जब उसे लगता है कि किसी मंत्री ने किसी मामले के तथ्यों को छिपाकर या गलत या विकृत तथ्य देकर सदन या उसके एक या अधिक सदस्यों के विशेषाधिकारों का उल्लंघन किया है। इसका उद्देश्य संबंधित मंत्री की निंदा करना है।
    • एक विशेषाधिकार नोटिस एक सांसद द्वारा कथित संसदीय विशेषाधिकार भंग के लिये किसी अन्य सदस्य या बाहरी संस्था के विरुद्ध दायर एक औपचारिक शिकायत है, उदाहरण के लिये, सांसदों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियाँ।
  • विशेषाधिकार समिति: इस समिति के कार्य अर्द्ध-न्यायिक प्रकृति के होते हैं। यह सदन और उसके सदस्यों के विशेषाधिकार के उल्लंघन के मामलों की जाँच करती है और उचित कार्रवाई की सिफारिश करती है। लोकसभा समिति में 15 सदस्य होते हैं, जबकि राज्यसभा समिति में 10 सदस्य होते हैं।

सदन की अवमानना (CoH)

  • सदन की अवमानना (CoH) विशेषाधिकार के उल्लंघन की तुलना में एक व्यापक अवधारणा है।
    • यह किसी भी ऐसे कार्य या चूक को संदर्भित करती है जो संसद के किसी भी सदन, उसके सदस्यों या उसके अधिकारियों के कार्यों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बाधित या अवरुद्ध करती है या सदन के प्राधिकार को कम करती है।
    • सभी विशेषाधिकार के उल्लंघन (BoP) सदन की अवमानना के अंतर्गत आते हैं, लेकिन सदन की अवमानना किसी विशिष्ट विशेषाधिकार के के उल्लंघन के बिना भी हो सकती है।
    • उदाहरण के लिये, किसी समिति के समक्ष उपस्थित होने के आदेश की अवहेलना करना या किसी सदस्य की उनकी आधिकारिक क्षमता में अपमानजनक टिप्पणियाँ प्रकाशित करना सदन की अवमानना का गठन कर सकता है।

सांसदों को प्राप्त संसदीय विशेषाधिकार क्या हैं?

  • व्यक्तिगत विशेषाधिकार: व्यक्तिगत विशेषाधिकार वे अधिकार व संरक्षण हैं जो सांसदों तथा राज्य विधायकों को दिये जाते हैं, ताकि वे स्वतंत्र रूप से और बिना किसी बाधा के अपने कर्त्तव्यों का पालन कर सकें। मुख्य विशेषाधिकार निम्नलिखित हैं:
    • वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: सांसदों को संसद में 'वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का विशेषाधिकार है, जो संविधान के अनुच्छेद 105(1) से संबंधित है।
    • कानूनी कार्यवाही से सुरक्षा: सांसद संसद या उसकी समितियों में दिये गए भाषण या डाले गए मत के लिये कानूनी कार्रवाई का सामना नहीं कर सकते (अनुच्छेद 105(2))
    • अनुमोदित प्रकाशनों के लिये सुरक्षा: संसद द्वारा अधिकृत किसी भी रिपोर्ट, पत्र, मत या कार्यवाही के प्रकाशन के लिये कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती (अनुच्छेद 105(2))
    • न्यायिक जाँच से छूट: अनुच्छेद 122(1) के तहत न्यायालयों को कथित प्रक्रिया संबंधी अनियमितताओं के आधार पर संसदीय कार्यवाहियों की वैधता की जाँच करने से रोका गया है।
    • गिरफ्तारी से स्वतंत्रता: सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 135A के अनुसार, संसद सदस्यों को संसदीय सत्र के दौरान तथा सत्र शुरू होने से 40 दिन पहले और समाप्ति के 40 दिन बाद तक, दीवानी मामलों में गिरफ्तारी से छूट प्राप्त होती है।
    • जूरी सेवा से छूट: सांसदों को जूरी सेवा से छूट प्राप्त है। जब संसद सत्र में हो, वे किसी मामले में गवाही देने या गवाह के रूप में पेश होने से इनकार कर सकते हैं।
  • सामूहिक विशेषाधिकार: यह उन सामूहिक अधिकारों व संरक्षणों को दर्शाता है जो भारतीय संसद और राज्य विधायिकाओं को, साथ ही उनके सदस्यों व अधिकारियों को उनके कार्य संचालन तथा अधिकारों की सुरक्षा के लिये प्रदान किये जाते हैं। प्रमुख विशेषाधिकार हैं:
    • प्रकाशन अधिकार: संसद को अपनी रिपोर्ट, बहस और कार्यवाहियों को प्रकाशित करने का विशेष अधिकार प्राप्त है। 44वें संशोधन अधिनियम, 1978 के तहत प्रेस को इन कार्यवाहियों की सही रिपोर्ट बिना पूर्व अनुमोदन के प्रकाशित करने की अनुमति है, सिवाय गोपनीय बैठकों के दौरान।
    • गोपनीय बैठकों का अधिकार: संसद महत्त्वपूर्ण मामलों पर विचार-विमर्श के लिये अनजान व्यक्तियों को बाहर रखकर गोपनीय बैठकें कर सकती है।
    • नियम बनाने और अनुशासनात्मक अधिकार: संसद अपने स्वयं के कार्यविधि नियम स्थापित कर सकती है और कार्य संचालन कर सकती है। इसके अलावा, विशेषाधिकार के उल्लंघन या अपमान के लिये यह सदस्यों या बाहरी व्यक्तियों को फटकार, कारावास, निलंबन या निष्कासन जैसे उपायों के माध्यम से दंडित करने का अधिकार भी रखती है।
    • सूचना का अधिकार: किसी भी सदस्य की गिरफ्तारी, हिरासत, दोषसिद्धि, कारावास या रिहाई के बारे में विधानमंडल को तुरंत सूचित किया जाना चाहिये।
    • जाँच और समन अधिकार: संसद के पास जाँच कराने, गवाहों को पेश करने का आदेश देना और संबंधित दस्तावेज़ों तथा अभिलेखों की मांग करने का अधिकार है।

विशेषाधिकार उल्लंघन की शिकायत को सँभालने की प्रक्रिया

  • सूचना (Notice): कोई सदस्य अध्यक्ष (स्पीकर/चेयरमैन) को लिखित सूचना देता है।
  • अनुमति (Consent): अध्यक्ष इसकी जाँच करते हैं और सदन में इसे उठाने की अनुमति देने या अस्वीकार करने का निर्णय ले सकते हैं।
  • सदन की अनुमति (Leave of the House): यदि अनुमति दी जाती है तो सदस्य मुद्दा उठाने के लिये ‘सदन की अनुमति’ मांगता है। यदि 25 सदस्य इसका समर्थन करते हैं तो अनुमति प्रदान की जाती है।
  • कार्रवाई (Action): सदन स्वयं मामले का निपटारा कर सकता है या इसे विशेषाधिकार समिति को जाँच और रिपोर्ट के लिये भेज सकता है, जो सामान्य प्रथा है।
  • सजा (Punishment): सदन के निर्णय के आधार पर दोषी को निम्नलिखित दंड दिये जा सकते हैं:
    • कारावास (सदन के सत्रावसान तक)।
    • संसद के सदन में फटकारा गया या चेतावनी दी गई।
    • निलंबित या निष्कासित (यदि अपराधी सदस्य है)।

संसदीय विशेषाधिकारों के संबंध में प्रमुख न्यायिक निर्णय क्या हैं?

  • पंडित एम.एस.एम. शर्मा बनाम श्री श्रीकृष्ण सिन्हा, 1958 (सर्चलाइट केस): सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने निर्णय दिया कि अनुच्छेद 194(3) के तहत विधायी विशेषाधिकार अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रभावी होंगे यदि दोनों में टकराव हो। इससे राज्य विधायिकाओं को उनके कार्यवाहियों के प्रकाशन को नियंत्रित करने की अनुमति मिलती है, जैसा कि ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स में होता है।
  • पी.वी. नरसिम्हा राव बनाम राज्य, 1998 (JMM रिश्वतखोरी केस): SC ने यह निर्णय दिया कि यदि किसी विधायक ने रिश्वत समझौते के तहत सदन में मतदान किया या भाषण दिया तो उन्हें उस भ्रष्टाचार के लिये अभियुक्त नहीं ठहराया जा सकता।
  • राज्य केरल बनाम के. अजित और अन्य, 2021: SC ने स्पष्ट किया कि संसदीय विशेषाधिकार और सुरक्षा संरक्षण सदस्यों को सामान्य कानूनों से छूट नहीं देते, जिनमें सभी नागरिकों पर लागू होने वाले आपराधिक कानून शामिल हैं।
  • सीता सोरेन बनाम भारत संघ, 2024: एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में SC ने वर्ष 1998 के पी.वी. नरसिम्हा राव मामले में अपने पुराने निर्णय को उलट दिया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि संवैधानिक सुरक्षा रिश्वतखोरी तक लागू नहीं होती और रिश्वत लेना एक विशिष्ट आपराधिक अपराध है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को भ्रष्ट करता है और विधायक के संरक्षित कर्त्तव्यों के दायरे में नहीं आता।

विशेषाधिकारों से जुड़े मुख्य मुद्दे और बहस क्या हैं?

  • कोडिफिकेशन पर बहस: लंबे समय से यह बहस चल रही है कि क्या विशेषाधिकारों को एक एकल कानून में संहिताबद्ध किया जाना चाहिये। ऐसा करने से उनके दायरे को स्पष्ट किया जा सकता है, लेकिन निरंतर समितियों ने कोडिफिकेशन के खिलाफ सिफारिश की है (जैसे, लोकसभा की विशेषाधिकार समिति 2008), क्योंकि उन्हें भय है कि इससे सदन की नई प्रकार की अवमानना से निपटने की अंतर्निहित क्षमता सीमित हो सकती है।
  • अन्य अधिकारों के साथ तनाव: गलत रिपोर्टिंग के लिये दंडित करने की विधायिका की शक्ति और प्रेस की संवैधानिक स्वतंत्रता के बीच लगातार तनाव बना रहता है।
  • लोकतांत्रिक सिद्धांतों के साथ टकराव: कुछ विशेषाधिकार, जैसे कि गिरफ्तारी से छूट, विधि के समक्ष समानता के मूलभूत सिद्धांत के साथ टकराव उत्पन्न करते हैं। 
  • दुरुपयोग और विश्वास के क्षरण का जोखिम: विशेषाधिकारों का कभी-कभी कानूनी जवाबदेही से बचने या प्रतिरक्षा की आड़ में भड़काऊ, निराधार बयान देने के लिये दुरुपयोग किया जाता है।
    • अपर्याप्त नियामक तंत्र इस जोखिम को बढ़ा देते हैं, जिससे जनता का विश्वास कम होता है और विशेषाधिकार प्रस्तावों का उपयोग विधायी गरिमा को बनाए रखने के बजाय राजनीतिक प्रतिशोध के लिये किया जाने लगता है।
  • अपारदर्शिता और निगरानी का अभाव: विशेषाधिकारों का अक्सर गैर-पारदर्शी प्रक्रियाओं के माध्यम से उपयोग किया जाता है, जिससे सार्वजनिक जाँच गंभीर रूप से सीमित हो जाती है तथा विधायिका में विश्वास कम हो जाता है। 

संसदीय विशेषाधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रथाएँ

  • यूनाइटेड किंगडम: विशेषाधिकार, जिनमें बोलने की स्वतंत्रता, गिरफ्तारी से छूट और स्वनियमन शामिल हैं, कानूनों, सामान्य कानून और पूर्व उदाहरणों से प्राप्त होते हैं।
  • कनाडा: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, गिरफ्तारी से छूट और उल्लंघन पर अधिकार जैसे विशेषाधिकार संविधान अधिनियम, 1867 और कनाडा की संसद अधिनियम, 1985 में परिभाषित हैं।
  • ऑस्ट्रेलिया: संविधान में ब्रिटेन और कनाडा के समान विशेषाधिकार निहित हैं, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, गिरफ्तारी से प्रतिरक्षा और कार्यवाही को विनियमित करने के अधिकार की गारंटी देते हैं।

भारत में संसदीय विशेषाधिकारों में सुधार हेतु कौन-कौन से सुधार किये जा सकते हैं?

  • संतुलित वैधानिक ढाँचा: कठोर संहिताकरण के बजाय, एक व्यापक वैधानिक ढाँचे में मुख्य विशेषाधिकारों को परिभाषित किया जाना चाहिये और उनके उपयोग हेतु स्पष्ट सिद्धांत निर्धारित किये जाने चाहिये। इसमें प्रमुख न्यायिक निर्णयों को शामिल किया जाएगा और सीमाएँ निर्धारित की जाऍंगी, साथ ही संसद को अपनी प्रक्रियाओं के माध्यम से अवमानना ​​के नए रूपों से निपटने के लिये विवेकाधिकार भी सुरक्षित रखा जाएगा।
  • विशेषाधिकार मामलों के लिये पारदर्शी प्रक्रियाएँ: विशेषाधिकार उल्लंघन से जुड़ी शिकायतों के समाधान के लिये नोटिस जारी करने से लेकर अंतिम निर्णय तक स्पष्ट, मानकीकृत और सार्वजनिक रूप से सुलभ प्रक्रियाएँ विकसित की जाएँ, ताकि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों—जैसे सुनवाई का अधिकार और प्रतिनिधित्व का अधिकार—का पूर्ण रूप से पालन सुनिश्चित हो सके।
  • आंतरिक नैतिकता को मज़बूत करना: सदस्यों के लिये आचार संहिता को मज़बूत करना और इसे विशेषाधिकारों के ज़िम्मेदार उपयोग, विशेष रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में स्पष्ट रूप शामिल किया जाए।
    • नीतिशास्त्र समितियों को अधिक सशक्त किया जाए ताकि वे विशेषाधिकार संबंधी दावों के सार्वजनिक हित या नैतिक मानकों से टकराने की स्थिति में सदस्यों को सक्रिय रूप से मार्गदर्शन और परामर्श दे सकें, जिससे संयम और उत्तरदायित्व की संस्कृति को प्रोत्साहन मिल सके।
  • विशेषाधिकार-मौलिक अधिकार के बीच अंतर स्पष्ट करना: प्रक्रिया नियमों में सर्वोच्च न्यायालय के सामंजस्यपूर्ण व्याख्या के सिद्धांत का औपचारिक रूप से समर्थन करना, जो सदनों को अपने विशेषाधिकारों की व्याख्या इस तरह से करने के लिये मार्गदर्शन करता है जो भाषण की स्वतंत्रता और विधि के समक्ष समानता जैसे संवैधानिक रूप से गारंटीकृत अधिकारों का सम्मान करता है।

निष्कर्ष:

संसदीय विशेषाधिकार विधायी स्वायत्तता के लिये आवश्यक हैं, लेकिन स्वतंत्रता और उत्तरदायित्व के बीच संतुलन बनाए रखने के लिये उनका ज़िम्मेदार उपयोग अनिवार्य है। हालिया विशेषाधिकार उल्लंघन नोटिस स्पष्ट, पारदर्शी प्रक्रियाओं और नैतिक आत्म-नियमन की आवश्यकता को रेखांकित करता है, ताकि संस्था के प्रति जनविश्वास बना रह सके।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: संसदीय विशेषाधिकार विधायी स्वतंत्रता के लिये आवश्यक होने के बावजूद प्रायः लोकतांत्रिक मूल्यों और मौलिक अधिकारों से टकराते हैं। इस कथन का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. संसदीय विशेषाधिकार क्या हैं? 
संसद, राज्य विधानमंडलों और उनके सदस्यों को प्राप्त विशेष अधिकार, उन्मुक्तियाँ और छूटें, जो स्वतंत्र और प्रभावी कामकाज सुनिश्चित करने के लिये प्रदान की जाती हैं।

2. संविधान के कौन-से अनुच्छेद संसदीय विशेषाधिकारों का प्रावधान करते हैं? 
अनुच्छेद 105, 122, 194 और 212 सांसदों और विधायकों के विशेषाधिकारों से संबंधित हैं।

3. विशेषाधिकार के हनन और सदन की अवमानना ​​में क्या अंतर है? 
विशेषाधिकार का हनन तब होता है जब किसी विशिष्ट विशेषाधिकार का उल्लंघन किया जाता है, अवमानना ​​में सदन के कामकाज में बाधा डालना या उसके अधिकार को कम करना शामिल है, भले ही इसमें किसी परिभाषित विशेषाधिकार का उल्लंघन न किया गया हो।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में, साइबर सुरक्षा घटनाओं पर रिपोर्ट करना निम्नलिखित में से किसके/किनके लिये विधितः अधिदेशात्मक है/हैं?  (2017)

सेवा प्रदाता (सर्विस प्रोवाइडर) 

डेटा सेंटर 

कॉर्पोरेट निकाय (बॉडी कॉर्पोरेट)

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1

(b) केवल 1 और 2

(c) केवल 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. भारत के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन से सिद्धांत संसदीय सरकार में संस्थागत रूप से निहित है/हैं?

1. मंत्रिमंडल के सदस्य संसद के सदस्य होते हैं।

2. मंत्री तब तक पद पर रहते हैं जब तक वे संसद के लिये उपयोगी पात्र होते हैं।

3. मंत्रिमंडल का मुखिया राज्य प्रमुख होता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 3

(c) केवल 2 और 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a) 


मेन्स:

प्रश्न. संसद और उसके सदस्यों की शक्तियाँ, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियाँ (इम्यूनिटीज़), जैसे कि वे संविधान की धारा 105 में परिकल्पित हैं, अनेकों असंहिताबद्ध (अन-कोडिफाइड) और अ-परिगणित विशेषाधिकारों के जारी रहने का स्थान खाली छोड़ देती हैं। संसदीय विशेषाधिकारों के विधिक संहिताकरण की अनुपस्थिति के कारणों का आकलन कीजिये। इस समस्या का क्या समाधान निकाला जा सकता है? (2014)