पी ओवेल मलेरिया | 14 Dec 2020

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केरल में मलेरिया के एक प्रकार 'प्लास्मोडियम ओवेल' (Plasmodium Ovale) के लक्षणों की पहचान एक सैनिक में की गई है।

  • संभवतः यह सैनिक सूडान में इस रोग से प्रभावित हुआ था जो प्लास्मोडियम ओवेल का स्थानिक क्षेत्र माना जाता है।

प्रमुख बिंदु

प्लास्मोडियम ओवेल के बारे में:

  • प्लास्मोडियम ओवेल मलेरिया परजीवी के पाँच प्रकारों में से एक है। इसके अलावा अन्य चार इस प्रकार से हैं- प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम, प्लास्मोडियम विवैक्स-सबसे सामान्य, प्लास्मोडियम मलेरिया और प्लास्मोडियम नॉलेसी।
  • इसके लगभग 20% परजीवी कोशिका की तरह अंडाकार होते हैं, इसलिये इसे ओवेल कहा जाता है।
  • ये परजीवी व्यक्ति की प्लीहा या यकृत में लंबे समय तक रह सकते हैं।

लक्षण:

  • इसके लक्षणों में 48 घंटों तक बुखार, सिरदर्द और मतली की शिकायत शामिल है और शायद ही यह कभी गंभीर बीमारी का कारण बनता है।

पी विवैक्स से समानता:

  • पी ओवेल (P Ovale), पी विवैक्स (P Vivax) से बहुत मिलता-जुलता है और दोनों के उपचार का तरीका भी समान है।
  • हालाँकि पी विवैक्स और पी ओवेल के बीच भेद करना काफी मुश्किल होता है, लेकिन सावधानीपूर्वक जाँच करने पर इस अंतर का पता लग सकता है।

प्रसार:

  • पी ओवेल मलेरिया उष्णकटिबंधीय पश्चिमी अफ्रीका का स्थानिक रोग है। अफ्रीका के बाहर इस रोग के लक्षणों का पाया जाना असामान्य घटना है।
  • हालाँकि यह रोग फिलीपींस, इंडोनेशिया और पापुआ न्यू गिनी में भी पाया गया है लेकिन इन क्षेत्रों में इसकी स्थिति अभी भी दुर्लभ मानी जाती है।

भारत में संचरण:

  • नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मलेरिया रिसर्च (National Institute of Malaria Research) के अनुसार, केरल में पाया गया यह पहला मामला है क्योंकि स्थानीय स्तर पर इसका कोई दूसरा मामला दर्ज नहीं हुआ है।
  • इससे पहले गुजरात, कोलकाता, ओडिशा और दिल्ली में भी इसके मामले पाए जाने की पुष्टि की गई है। हालाँकि इन सब में स्थानीय स्तर पर संचरण का मामला दर्ज नहीं किया गया है, जिसका अर्थ है कि ये सब लोग किसी और स्थान पर प्रभावित हुए थे।
  • वर्ष  2019 में भारत के ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, मेघालय और मध्य प्रदेश राज्यों में पाए गए कुल 1.57 लाख मलेरिया के मामलों में से 1.1 लाख मामले (70%) केवल फाल्सीपेरम मलेरिया के थे।
  • हालिया विश्व मलेरिया रिपोर्ट 2020 के अनुसार, भारत में मलेरिया के मामले वर्ष 2000 के 20 मिलियन से घटकर वर्ष 2019 में लगभग 5.6 मिलियन रह गए हैं।

मलेरिया

  • यह प्लास्मोडियम परजीवियों (Plasmodium Parasites) के कारण होने वाला मच्छर जनित रोग है।
  • प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम के कारण होने वाला मलेरिया सबसे गंभीर माना है और यह जानलेवा भी हो सकता है।

 प्लास्मोडियम का जीवन चक्र:

  • RBC के टूटने से एक विषाक्त पदार्थ ‘हेमोज़ोइन’ का निर्माण होता है जो हर तीन से चार दिन में ठंड लगने की शिकायत और तेज़ बुखार के लिये ज़िम्मेदार होता है।
  • संक्रमित मादा एनाफिलीज मच्छर के काटने से प्लास्मोडियम मानव शरीर में स्पोरोज़ोइट्स (संक्रामक रोग) के रूप में प्रवेश करता है।
  • परजीवी शुरू में यकृत कोशिकाओं के भीतर वृद्धि करते हैं और फिर लाल रक्त कोशिकाओं (RBCs) पर हमला करते हैं जिसके परिणामस्वरूप RBC टूटने लगते हैं।
  • मादा एनाफिलीज़ मच्छर द्वारा किसी संक्रमित व्यक्ति को काटे जाने से ये परजीवी मच्छर के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और इस प्रकार ऐसे मच्छर के काटने से अन्य लोगों में फैलता है।
  • परजीवी उनकी लार ग्रंथियों में जमा होने वाले स्पोरोज़ोइट्स के निर्माण के लिये स्वयं में वृद्धि करते हैं। जब ये मच्छर किसी इंसान को काटते हैं तो स्पोरोज़ोइट्स उस व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं, जिसके कारण ऐसी घटनाओं में वृद्धि होती है।

Plasmodium

नोट:

  • मलेरिया परजीवी को अपने जीवन चक्र को पूरा करने के लिये दो मेज़बानों (मानव और मच्छर) की आवश्यकता होती है।
  • मादा एनाफिलीज़ मच्छर रोगवाहक (Transmitting Agent) भी है।
  • विश्व मलेरिया दिवस 25 अप्रैल को मनाया जाता है।
    • ध्यातव्य है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) आधिकारिक तौर पर केवल चार बीमारियों (HIV-एड्स, टीबी, मलेरिया और हेपेटाइटिस) के संदर्भ में रोग-विशिष्ट 'विश्व दिवस' मनाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस