बांग्लादेश सीमा : एक गुलाबी गोली बनी मौत का खेल | 04 Jun 2018

चर्चा में क्यों?

बांग्लादेश में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें बांग्लादेश के इकरामुल हक की हत्या की घटना को कैद किया गया है। यह वीडियो इकरामुल हक की पत्नी आयशा बेगम द्वारा जारी किया गया है, आयशा बेगम ने दावा किया है कि म्याँमार, बांग्लादेश और भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में अवैध दवाओं के प्रवाह के कारण शुरू हुई हिंसा की वज़ह से पुलिस ने उनके पति की हत्या की। इस ऑपरेशन के केंद्र में एक गुलाबी मेथेम्फेटामाइन-कैफीन गोली (pink methamphetamine-caffeine pill) है जिसे याबा (Yaba) के नाम से जाना जाता है। याबा बांग्लादेश में व्यापक रूप से उपलब्ध है।

  • रमजान का महीना शुरू होने के बाद बांग्लादेश सरकार द्वारा ड्रग उत्पादक संघों (drug cartels) और नशीली दवाओं के मालिकों पर लगातार हमले किये जा रहे हैं, जिसमें सिर्फ दो हफ्तों में 120 संदिग्ध अपराधियों की मौत हो गई है। भारतीय सीमा से सीमा सुरक्षा बल द्वारा भी जवाबी कार्यवाही की जा रही है।
  • भारतीय खुफिया विभाग द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, भारत में पूर्वोत्तर क्षेत्र के रास्ते बड़ी मात्रा में इसकी तस्करी की जाती है।
  • हालाँकि भारत में इसके संदर्भ में कड़े नियम होने के कारण यहाँ इसका प्रभाव उतना नहीं है, लेकिन पूर्वोत्तर क्षेत्र में बांग्लादेश इसका एक बड़ा बाज़ार है।

याबा क्या है?

  • याबा को थाई भाषा में 'पागलपन की दवा' (madness drug) के नाम से जाना जाता है. इसकी उत्पत्ति पूर्वी म्याँमार के शान, काचिन और दो अन्य राज्यों से होती है, यहाँ से यह लाओस-थाईलैंड-म्याँमार गोल्डन त्रिकोण से दक्षिण-पूर्व बांग्लादेश में पहुँचती है।
  • इस गोली में मेथेम्फेटामाइन और कैफिन मिला होता है।
  • याबा टैबलेट के रूप में एक दवा होती है। यह अक्सर लाल रंग की होती है तथा इसके कवर पर WY अक्षर लिखे होते हैं।
  • याबा थाईलैंड में सबसे खराब श्रेणी की दवा होती है और जो लोग इसका इस्तेमाल करते हैं या तो उन्हें 20 साल तक के कारावास का सामना करना पड़ता है या उन्हें बहुत भारी जुर्माना देना पड़ता है।
  • वे लोग जो 20 ग्राम से अधिक याबा के साथ पकड़े जाते हैं, उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा का सामना करना पड़ता है और कभी-कभी यह मौत की सज़ा के रुप में सामने आती है। वस्तुतः कानून के अनुसार सज़ा का प्रावधान किया जाता है।
  • शान राज्य में यह दवा घोड़ों को पहाड़ी क्षेत्रों की चढ़ाई अथवा भारी कामों के दौरान दी जाती थी। 

इसके लिये इस्तेमाल होने वाले नाम

  • भारत में कभी-कभी याबा को "भूल भुलैया" कहा जाता है। फिलीपींस और इंडोनेशिया में आमतौर पर इसे शाबू कहा जाता है।
  • उत्तरी थाईलैंड में इसे अक्सर "चोकली" के रूप में जाना जाता है क्योंकि मुँह में जाने के बाद कुछ हद तक इसका स्वाद मीठा और इसकी गंध चॉकलेट जैसी स्ट्राँग होती है।
  • चीन में इसके लिये आमतौर पर "मा-गुओ" या "मा-गु" नाम का इस्तेमाल किया जाता है। बांग्लादेश में इसे "बाबा", गुट्टी, लाल, जिनीश, खवन, नैशोकोटा, लोपी, गारी, बिची इत्यादि के रूप में जाना जाता है।

किस रूप में इसका सेवन किया जाता है?

  • आमतौर पर इन गोलियाँ को निगला जाता है। इसके सेवन की एक अन्य विधि है जिसे "ड्रैगन का पीछा करना" कहा जाता है। इस विधि के अंतर्गत उपयोगकर्त्ता याबा टैबलेट को एल्युमीनियम पन्नी पर रखकर इसे नीचे से गर्म करते हैं। जैसे ही टैबलेट पिघलती है, यह वाष्पीकृत होने लगती है, इसप्रकार उपयोगकर्त्ता इसका सेवन करता है।
  • दवा को पाउडर के रूप में पीसकर भी इसका सेवन किया जा सकता है, इसके बाद इसे सॉल्वेंट के साथ मिलाकर इंजेक्शन के माध्यम से लिया जाता है।

बांग्लादेश के संबंध में

  • बांग्लादेश में याबा का प्रभाव बहुत गंभीर परिणाम वाला रहा है। 
  • यह गोली "आनंद की भावना" (sense of pleasure) को बढ़ाती है। बांग्लादेश के समृद्ध उच्च मध्यवर्गों में इसका प्रभाव सबसे अधिक है।
  • वर्ष 2017 में बांग्लादेश में 4.60 करोड़ याबा गोलियाँ ज़ब्त की गई थीं। इस साल के शुरुआती तीन महीनों में ही यह आँकड़ा 2.60 करोड़ तक पहुँच गया है।
  • द हिंदू समाचार पत्र द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, एक दशक पहले इस दवा ने बांग्लादेश में प्रवेश किया था, उस समय याबा के निर्माताओं पर थाईलैंड में गंभीर दबाव हुआ करता था।
  • इसके बाद इस दवा की तस्करी के लिये दो प्रमुख मार्गों को चुना गया। पहला मार्ग, उत्तरी म्याँमार से नफ नदी को पार करके और दूसरा मार्ग बंगाल की खाड़ी के माध्यम से बरिशल (Barishal) या खुल्ना (Khulna) ज़िले में इसके प्रवेश के रूप में तय किया गया। उन्होंने कहा, भारत के माध्यम से एक "संभव" तीसरा मार्ग है।

याबा व्यापारियों के संबंध में

  • श्री लिंटनर Lintner, जिन्होंने मेथेम्फेटामाइन methamphetamines पर ‘पागलपन के व्यापारी' नाम से एक पुस्तक लिखी है, के अनुसार याबा के निर्माण के लिये म्याँमार के मिलिशिया लोग ज़िम्मेदार हैं।
  • श्री लिंटनर के अनुसार, इन मिलिशिया लोगों में से कुछ सैन्य-समर्थित संघ सॉलिडेरिटी और डेवलपमेंट पार्टी से चुने गए संसद सदस्य भी रहे हैं। ऐसे सैकड़ों मिलिशियाई लोग हैं, जो इस काम से जुड़े हुए है।