OECD रिपोर्ट : डिजिटलीकरण की वज़ह से उपजी कर चुनौतियाँ | 24 Mar 2018

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ब्यूनस आयर्स (अर्जेंटीना) में G-20 देशों के वित्त मंत्रियों की बैठक के दौरान ऑर्गेनाइज़ेशन फार इकॉनमिक को-ऑपरेशन ऐंड डेवलपमेंट (OECD) द्वारा 'डिजिटलीकरण की वजह से उपजी कर चुनौतियाँ' शीर्षक वाली एक अंतरिम रिपोर्ट जारी की गई है।

  • यह अंतरिम रिपोर्ट 2015 में आधार क्षरण और लाभ अंतरण (BEPS) पर OECD/G-20 इंक्लूसिव फ्रेमवर्क के तहत तय किये गए डिजिटल अर्थव्यवस्था से संबंधित कर चुनौतियों के समाधान खोजने की दिशा में एक कदम है।
  • यह रिपोर्ट 2020 तक डिजिटलीकरण और अंतर्राष्ट्रीय कर नियमों पर समावेशी ढाँचे के निर्माण हेतु कार्य करने के लिये निर्देशों को निर्धारित करने का प्रयास करती है। 

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु 

  • इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जब तक दीर्घावधि बहुपक्षीय समाधान नहीं निकल जाता है तब तक अंतरिम उपाय के तौर पर इंटरनेट कंपनियों पर देशों को इक्वलाइज़ेशन लेवी लगाना चाहिये क्योंकि दीर्घावधि के लिये कदम उठाए जाने को लेकर अभी तक आम सहमति नहीं बन पाई है।
  • इए रिपोर्ट में भारत द्वारा इक्वलाइज़ेशन लेवी लगाए जाने के निर्णय को ध्यान में रखा गया है और इस बात की भी संभावना है कि जल्द ही यूरोपीय संघ के देश इसका कार्यान्वयन कर सकते हैं।
  • भारत सरकार द्वारा डिजिटल कंपनियों पर कर लगाए जाने के संदर्भ में बहुपक्षीय उपाय या स्थायी कदम के लिये कार्य किया जा रहा है जिसके लिये 2020 तक मुनाफा आवंटन और अन्य नियमों का विस्तार किया जाएगा।

क्या है इक्वलाइज़ेशन  लेवी?

  • इक्वलाइज़ेशन लेवी डिजिटलीकरण से कर व्यवस्था में उत्पन्न समस्याओं के समाधान का एक उपाय है, जो सरकारों को डिजिटल अर्थव्यवस्था पर कर लगाने में सक्षम बनाता है।
  • वर्तमान में कंपनियों पर कर उनकी भौतिक उपस्थिति वाले अधिकार क्षेत्रों में लगाया जाता है।
  • लेकिन फेसबुक, गूगल, नेटफ्लिक्स जैसी इंटरनेट कंपनियाँ विज्ञापन सेवाओं द्वारा उन देशों से भी मुनाफा कमाती हैं जहाँ पर इनकी भौतिक उपस्थिति नहीं होती।
  • अत: इन कंपनियों द्वारा जिन देशों के उपभोक्ताओं से मुनाफा कमाया जाता है वहाँ पर कर का भुगतान नहीं किया जाता है।
  • इस समस्या के समाधान हेतु OECD ने वर्ष 2015 में BEPS प्रोजेक्ट के तहत एक कार्ययोजना पेश की थी। 

भारत में इक्वलाइज़ेशन  लेवी

  • भारत दुनिया का पहला देश है जिसने OECD द्वारा जारी कार्ययोजना को लागू करने के लिये इक्वलाइज़ेशन लेवी का प्रावधान लागू किया है।
  • भारत सरकार द्वारा बजट 2016-17 में देश में गैर-निवासी (Non-Resident) इंटरनेट कंपनियों द्वारा प्रदान कराए जाने वाले ऑनलाइन विज्ञापन और संबंधित सेवाओं के लिये 6% इक्वलाइज़ेशन लेवी लगाने का प्रावधान किया गया था।
  • इसे केवल बिज़नेस-टू-बिज़नेस (B2B) ई-कॉमर्स मंचों पर होने वाले लेन-देनों पर ही लागू किया गया था। इस कर को गूगल टैक्स भी कहा जाता है।
  • इस निर्णय को लागू करते समय देश में स्थायी भौतिक उपस्थिति वाली विदेशी कंपनियों को इक्वलाइज़ेशन लेवी से छूट दी गई थी।

वर्तमान स्थिति 

  • फेसबुक, गूगल या नेटफ्लिक्स द्वारा दिये जाने वाले विज्ञापन सेवाओं पर दो वर्ष पूर्व इक्वलाइज़ेशन  लेवी की वैश्विक मान्यता के बाद अब भारत द्वारा इन कंपनियों पर कर लगाने को लेकर अंतर्राष्ट्रीय कर के ढाँचे को तैयार करने पर कार्य किया जा रहा है।
  • इस ढाँचे को तकनीकी रूप से मल्टीलेटरल इंस्ट्रूमेंट टू इंप्लीमेंट टैक्स रिलेटेड मीज़र्स (MLI) कहा गया है जो आधार क्षरण और लाभ अंतरण (BEPS) का समाधान करेगा और इसमें व्यक्तिगत द्विपक्षीय संधियों में संशोधन की आवश्यकता नहीं होगी। 
  • अब तक OECD के सदस्यों के बीच इस मुद्दे पर आम सहमति नहीं बन पाई है कि इन डिजिटल कंपनियों पर उपभोक्ता आधार के अनुसार कर किस तरह लगाया जाए। डिजिटल कराधान पर बने कार्यबल की समिति की अंतिम रिपोर्ट 2020 तक आ सकती है। 
  • इस बात की संभावना जताई जा रही है कि संयुक्त राज्य अमेरिका अंतिम उपभोक्ता के आधार पर कंपनियों पर कर लगाने का सैद्धांतिक विरोध कर सकता है। इसके बदले वह व्यापक अर्थव्यवस्था का समर्थक है।
  • वहीं, अमेरिका द्वारा स्टील और एल्युमिनियम के आयात पर ड्यूटी लगाए जाने के निर्णय की प्रतिक्रिया में यूरोपीय संघ द्वारा गूगल, फेसबुक, अमेज़न और एप्पल जैसी बड़ी कंपनियों पर कर लगाने पर विचार किया जा रहा है। ब्रिटेन, ब्राज़ील जैसे देश इन कंपनियों पर उपभोक्ता आधार के हिसाब से कर लगाने के समर्थन में है।

आधार क्षरण और लाभ अंतरण (Base erosion and profit shifting-BEPS)

  • BEPS एक तकनीकी शब्दावली है जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा कर भुगतान से बचने के लिये प्रयुक्त किये जाने वाले उपायों का राष्ट्रीय कराधार पर नकारात्मक प्रभाव दर्शाती है।
  • ये कंपनियाँ टैक्स अवॉयडेंस (कर परिहार) के लिये अपने अर्जित लाभ को अधिक कर वाले देशों से कर की कम दरों वाले देशों (टैक्स हेवन्स) में स्थांतरित कर देती है। इससे मेज़बान देश को कर राजस्व का नुकसान होता है।

आर्थिक सहयोग और विकास संगठन
(Organisation for Economic Co-operation and Development -OECD)

  • OECD की स्थापना 1961 में हुई थी। वर्तमान में इसके सदस्य देशों की संख्या 35 है।
  • इसका मुख्यालय पेरिस (फ़्राँस) में है।
  • दुनिया भर में लोगों के आर्थिक और सामाजिक कल्याण में सुधार लाने वाली नीतियों को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देना OECD का प्रमुख उद्देश्य है।
  • इसके सदस्य देश इस प्रकार हैं- ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, कनाडा, चिली, चेक गणतंत्र, डेनमार्क, एस्तोनिया, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, ग्रीस, हंगरी, आइसलैंड, आयरलैंड, इज़रायल, इटली, जापान, दक्षिण कोरिया, लक्जमबर्ग, लातविया, मेक्सिको, नीदरलैंड, न्यूज़ीलैंड, नॉर्वे, पोलैंड, पुर्तगाल, स्लोवाक गणराज्य, स्लोवेनिया, स्पेन, स्वीडन, स्विट्ज़रलैंड, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका।