हाथी कॉरिडोर को अधिसूचित करने की ज़रूरत | 18 Sep 2017

चर्चा में क्यों?

  • ‘नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल’ (एनजीटी) ने ओडिशा में ‘हाथी कॉरिडोर’ को अधिसूचित करने की सुस्त गति के प्रति अत्यधिक निराशा व्यक्त की है। विदित हो कि 2010 में राज्य सरकार ने 14 हाथी कॉरिडोर की पहचान की थी।
  • हाथी कॉरिडोर न केवल उनके व्यवधान-रहित आवाजाही को सुनिश्चित करेगा, बल्कि आनुवंशिक विविधता विनिमय के आदान-प्रदान को भी बढ़ावा देगा।
  • उसके बाद अन्य 9 कॉरिडोर की पहचान की गई, लेकिन राज्य सरकार उन गलियारों को सूचित करने के लिये आवश्यक कानूनी पात्रताओं को पूरी करने में लगातार देरी कर रही है।
  • यही कारण है कि एनजीटी ने सरकार को इसके प्रति आगाह करते हुए शीघ्रता से कार्रवाई करने को कहा है।

क्या है हाथी कॉरिडोर?

  • यह भूमि का वह सँकरा गलियारा या रास्ता होता है जो हाथियों को एक वृहद् पर्यावास से जोड़ता है। यह जानवरों के आवागमन के लिये एक पाइपलाइन का कार्य करता है।
  • वर्ष 2005 में 88 हाथी गलियारे चिन्हित किये गए थे, जो आगे बढ़कर 101 हो गये। हालाँकि कई कारणों से ये कॉरिडोर खतरे में हैं।
  • विकास कार्यों के कारण हाथियों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं। कोयला खनन तथा लौह अयस्क का खनन हाथी गलियारे को नुकसान पहुँचाने वाले दो प्रमुख कारक हैं।
  • ओडिशा, झारखंड, और छतीसगढ़ जहाँ हाथी गलियारे की संख्या अधिक हैं वहीं यहाँ खनन गतिविधियाँ भी व्यापक रूप में होती हैं। अतः यहाँ हाथी कॉरिडोर को लेकर विकासात्मक गतिविधियों और इनके सरंक्षण के बीच सर्वाधिक संघर्ष देखने को मिलता है।

इस कॉरिडोर की आवश्यकता क्यों?

  • हाथियों को चरने के लिये एक वृहद् मैदान की आवश्यकता होती है, किन्तु अधिकांश रिज़र्व इस आवश्यकता की पूर्ति नहीं कर पाते हैं। यही कारण है कि हाथी अपने आवास से बाहर से निकल आते हैं, जिससे से मनुष्य के साथ हाथियों का संघर्ष बढ़ जाता है।
  • यही कारण है कि हाथी कॉरिडोर की आवश्यकता है, ताकि इन कॉरिडोर के माध्यम से उन्हें उनके प्राकृतिक आवास से जोड़ा जा सके, लेकिन इनको अधिसूचित करने में की जा रही देरी चिंताजनक है।

यह विलंब चिंताजनक क्यों? 

  • कॉरिडोर को अधिसूचित करने में की जा रही हर एक दिन की देरी चिंतित करने वाली है, क्योंकि ऐसा करने में हर दिन की देरी, आगे की जटिलताओं को जन्म देगी।
  • एक यह स्थिति भी सामने आ सकती है जब पारंपरिक हाथी गलियारे ही खत्म हो जायेंगे जो क्रमशः विलुप्त होने की ओर अग्रसर हैं।
  • अतः एनजीटी की इस चेतावनी की गंभीरता से लेते हुए तुरंत कार्रवाई की जानी चाहिये।