गैर-सरकारी संगठनों की आवश्यकता | 07 Oct 2019

भूमिका

पिछली शताब्दी के 90 के दशक में यह विचार उभर कर आया कि सरकारी एजेंसियों के इतर कॉरपोरेट्स, सहकारी क्षेत्र और नागरिक साझे विकासात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये साझेदारी कर सकते हैं। इसी विचार से गैर-सरकारी संगठन की अवधारणा का उद्भव हुआ।

NGOs की प्रासंगिकता

  • विकास के लिये प्रौद्योगिकी, पूंजी और अन्य संसाधनों की आवश्यकता होती है।
  • लेकिन इन सबसे ऊपर न्यायसंगत और टिकाऊ तरीके से संसाधनों का उपयोग करने वाले लोगों की क्षमता और अभिप्रेरणा का प्रमुख स्थान है।
  • इस तरह की भागीदारी ही सतत् विकास का मूल तत्त्व है।
  • 90 के दशक में ग्रामीण विकास के तरीकों में क्रांतिकारी परिवर्तन देखे गए, विशेष रूप से ग्रामीण आबादी के कल्याण हेतु आवश्यक प्राकृतिक संसाधनों से संबंधित मामलो में।
  • ग्रामीण समुदायों को स्थानीय परिस्थितियों और ज़रूरतों के लिये उपयुक्त सूक्ष्म योजनाओं को तैयार करने तथा लागू करने की आवश्यकता है।
  • संयुक्त वन प्रबंधन (1990), वाटरशेड विकास (1995), सहभागी सिंचाई प्रबंधन (1997) और स्वजलधारा (2003) इसके अच्छे उदाहरण हैं।

NGOs के समक्ष चुनौतियाँ

  • NGOs की शुरुआत के साथ ही समस्याओं का पहला दौर उभरना शुरू हो गया था। सरकार और कॉरपोरेट संस्थाओं के साथ इन संगठनों का संघर्ष होने लगा।
  • इनके समक्ष भ्रष्टाचार आम समस्या थी और नेतृत्व करने वाला भी कोई नहीं था।
  • प्राकृतिक संसाधनों के सहभागी प्रबंधन के लिये काम करने वाले लोग दसवीं पंचवर्षीय योजना के निर्माण के समय (वर्ष 2000-2001) सहभागी दृष्टिकोण को प्रोत्साहित किये जाने की उम्मीद कर रहे थे।
  • लेकिन इसमें 90 के दशक में हुई प्रगति के विपरीत रूख अपनाया जा रहा था।
  • तब हितधारकों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन से संबंधित योजनाओं के निर्माण और संशोधन को निर्देशित करने वाले सिद्धांतों का मसौदा तैयार करने हेतु एक राष्ट्रीय विचार-विमर्श आयोजित करने का विचार आया।
  • इसी पृष्ठभूमि में 16 जनवरी, 2005 को अहमदाबाद के बोपल में राष्ट्रीय स्तर की बैठक हुई।

बोपल घोषणा

  • इस बैठक में भारत के विभिन्न हिस्सों से आए शिक्षाविदों और नीति निर्माताओं तथा NGO समुदाय के लगभग 30 नेताओं ने भाग लिया। इस बैठक में निम्नलिखित प्रस्तावित आठ सिद्धांतों के आधार पर घोषणाएँ तैयार कीं गई-
    • समुदाय आधारित संगठनों (Community-Based Organisations-CBOs) की प्रमुखता।
    • समानता।
    • विकेंद्रीकरण
    • एक सहायक एजेंसी की आवश्यकता।
    • मॉनीटरिंग और मूल्यांकन।
    • प्रशिक्षण और सॉफ्टवेयर।
    • विकास की सतत् गति।
    • संगठनात्मक पुनर्गठन।
  • प्रत्येक सिद्धांत की केंद्र प्रायोजित योजनाओं और अन्य परियोजनाओं के उदाहरणों के साथ व्याख्या की गई थी।
  • नियोजन की व्यवस्था समाप्त करने के बाद यदि हम बड़ी संख्या में नई योजनाओं के निर्माण का निर्णय लेते हैं, तो हमें इन सिद्धांतों को पुन: स्थापित करना होगा। तभी गैर-सरकारी संगठन अपेक्षित परिणाम दे पाएंगे।

स्रोत : द इंडियन एक्सप्रेस