बथिनैलसियन (Bathynllaceans) | 28 May 2019

चर्चा में क्यों?

बथिनैलसियन (Bathynllaceans) क्रस्टेशियाई परिवार (Crustaceans Family) की सबसे छोटी इकाई है जो झरनों के किनारे स्थित सरंध्र/छिद्रयुक्त (Porous) स्थानों पर निवास करते हैं। ये आकार में 0.5 मिलीमीटर (0.5mm)  तक लंबे होते हैं और इन्हें नग्न आँखों से देखा जा सकता है। दुनिया भर में इसकी केवल आठ प्रजातियाँ हैं जिनमें से सात प्रजातियाँ भारत में पाई जाती हैं।

  • पेन्ना नदी (River Penna) और वामशधारा नदी (River Vamshadhara) के कुछ तटों पर अंधाधुंध बालू खनन के कारण ये प्रजातियाँ प्रभावित हुई हैं।

वर्ष 2000 से किया जा रहा है सर्वेक्षण

  • इस प्रजाति को संरक्षित करने के उद्देश्य से वर्ष 2000 में आंध्र प्रदेश और दक्षिण पूर्वी भारत में विशेष रूप से प्रभावित कृष्णा और गोदावरी नदियों के तटीय डेल्टा क्षेत्रों में नियमित सर्वेक्षण शुरू किया गया था।
  • अब तक 90 नए क्रस्टेशियाई वर्गों की  पहचान की जा चुकी है। इनमें से 74 नई प्रजातियों को औपचारिक रूप से वर्णित किया गया है। इनमें 34 बथिनैलसिया (Bathynellacea), 31 कॉपिपोडा  (Copepoda), 6 एम्फीपोडा (Amphipoda), 2 आइसोपोडा (Isopoda) और एक ऑस्ट्राकोडा (Ostracoda) प्रजाति शामिल है।

प्रजातियों की विलुप्ति का कारण

  • शोधकर्त्ताओं का मानना है कि राज्य में अंधाधुंध बालू खनन के कारण 31 में से 13 बाथिनलाइड प्रजातियाँ लुप्त होने की कगार पहुँच गई हैं।
  • गुफा पर्यटन और गुफा संबंधी अन्य गतिविधियों जैसे-उन गुफाओं में किसी खजाने/निधि की खोज करना, मनोरंजन के लिये कन्दरान्वेषण (Caving) करना आदि के कारण इन जीवों का पारिस्थितिक तंत्र प्रभावित हुआ है और ये प्रजातियाँ विलुप्त होने की कगार पर पहुँच गईं।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, सरकार द्वारा नई प्रजातियों के संरक्षण के लिये किसी नियम या कानून का निर्माण नहीं किया गया है।

क्रस्टेशियाई जीवों के लिये हॉटस्पॉट

  • शोधकर्त्ताओं द्वारा गोदावरी नदी के तट पर देवलेश्वरम्, कपिलेश्वरपुरम, रावुलपलेम और कृष्णा नदी के तट पर जग्गय्यापेटा (Jaggayyapetta) को इन सूक्ष्म क्रस्टेशियाई जीवों के लिये हॉटस्पॉट के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।

आगे की राह

  • भू-विज्ञान विभाग एवं अन्य अधीनस्थ विभागों द्वारा गुफाओं का पता लगाने और उनकी सुरक्षा करने के लिये प्रयास किया जाना चाहिये।
  • गुफा संरक्षण के अंतर्गत स्थानीय जानकारी, वैज्ञानिक अध्ययन और पर्यटकों के बीच जागरूकता फैलाने के लिये मार्गदर्शकों को प्रशिक्षित करने के साथ ही इन प्रजातियों को संरक्षित करने के लिये नियम एवं कानून बनाए जाने चाहिये।