दिवालियापन कोड के महत्त्वपूर्ण प्रावधान | 19 Jun 2017

संदर्भ
पिछले हफ्ते, भारतीय रिजर्व बैंक की आंतरिक सलाहकार समिति (IAC) ने 12 खातों की पहचान की थी, जिनके पास बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) का 25% हिस्सा हैं। कमेटी ने कहा है कि दिवालियेपन संहिता (IBC) के तहत इस समस्या को तुरंत हल करने की आवश्यकता है। उल्लेखनीय है कि मार्च तक बैंकिंग प्रणाली में कुल एन.पी.ए. 7.11 लाख करोड़ रुपए था।

दिवालियेपन का मतलब क्या है?

  • एक कंपनी तब दिवालिया होती है, जब वह अपने लेनदारों (बैंक, आपूर्तिकर्ताओं आदि) का कर्ज़ चुकाने में असमर्थ हो। कुछ भारतीय कंपनियों के कर्ज़ चुकाने की अक्षमता के कारण बैंकिंग प्रणाली में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ बढ़ जाती हैं। इस प्रकार के ऋण के रूप में फंसे पैसे को मुक्त करने के लिये एक प्रणाली आवश्यक है। इसी दिशा में आई.बी.सी. बनाया गया है।

गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों की समस्या वाले क्षेत्र

  • हालाँकि, जिन 12 खातों का उल्लेख किया गया है, उन्हें सरकारी तौर पर सार्वजनिक  नहीं किया गया है। आर.बी.आई. ने पहले संकेत दिये थे कि बिजली, दूरसंचार, इस्पात, वस्त्र और विमानन जैसे क्षेत्रों में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ ज़्यादा हैं। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी कहा था कि अत्यधिक तनावग्रस्त खातों की संख्या लगभग 40-50 हो सकती है।

कुछ महत्त्वपूर्ण प्रावधान

  • बैंकों सहित कोई भी लेनदार नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) में एक याचिका दायर कर बकाएदारों के खिलाफ दिवालियेपन की कार्यवाही शुरू कर सकता है।
  • एक ‘दिवालिया पेशेवर’ की नियुक्ति की जाती है, ताकि वह चूक करने वाली कंपनी को नियंत्रण में ले सके और प्रक्रिया में सहायता कर सके।
  • एक ‘लेनदार समिति’ (Creditors Committee) का गठन किया जाता है, जो कि उधारदाताओं और किसी अन्य पार्टी के हितों का प्रितिनिधित्त्व करती है। समिति एक ‘संकल्प योजना’ (जिसमें डिफाल्ट ऋण को बेचने या कंपनी को पूर्ण रूप से समाप्त करना शामिल हो सकता है) बनाती है,  जिसमें 75% लेनदारों की मंज़ूरी आवश्यक है।
  • दिवालिया पेशेवर को 180 दिनों में डिफ़ॉल्ट समस्या का व्यावहारिक समाधान सुझाना होगा, लेकिन यह समय सीमा 90 दिनों तक के लिये और बढ़ायी जा सकती है।
  • यदि कोई समाधान 270 दिनों के भीतर नहीं निकलता तो एक ‘परिसमापक या ऋण शोधन करने वाले की नियुक्ति की जाएगी।
  • कंपनी सामान्य बैठक में विशेष समाधान के लिये स्वैच्छिक परिसमापन का विकल्प भी  चुन सकती है।
  • अत: केवल समय ही बताएगा की यह कानून कितना प्रभावी होगा, क्योंकि आई.बी.सी. के तहत कार्यवाही प्रणाली देश में अपने नए एवं शुरुवाती चरण में है।