नीलगिरी हाथी कॉरिडोर | 16 Oct 2020

प्रिलिम्स के लिये: 

प्रोजेक्ट एलीफेंट, अनुच्छेद 51A (G), मुदुमलाई राष्ट्रीय उद्यान  

मेन्स के लिये

पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में बढ़ती विकासात्मक गतिविधियाँ

चर्चा में क्यों?

14 अक्तूबर, 2020 को उच्चतम न्यायालय ने नीलगिरी हाथी कॉरिडोर (Nilgiris Elephant Corridor) पर मद्रास उच्च न्यायालय के वर्ष 2011 के एक आदेश को बरकरार रखा जो हाथियों से संबंधित 'राइट ऑफ पैसेज' (Right of Passage) और क्षेत्र में होटल/रिसॉर्ट्स को बंद करने की पुष्टि करता है।

प्रमुख बिंदु: 

  • मद्रास उच्च न्यायालय ने जुलाई, 2011 में घोषित किया था कि तमिलनाडु सरकार को केंद्र सरकार के 'प्रोजेक्ट एलीफेंट' (Project Elephant) के साथ-साथ राज्य के नीलगिरी ज़िले में हाथी कॉरिडोर को अधिसूचित करने के लिये भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51A (G) के तहत पूरी तरह से अधिकार प्राप्त है। 
    • यह हाथी कॉरिडोर नीलगिरी ज़िले में मुदुमलाई राष्ट्रीय उद्यान (Mudumalai National Park) के पास मसिनागुड़ी (Masinagudi) क्षेत्र में अवस्थित है।

हाथी कॉरिडोर:

  • यह भूमि का वह सँकरा गलियारा या रास्ता होता है जो हाथियों को एक वृहद् पर्यावास से जोड़ता है। यह जानवरों के आवागमन के लिये एक पाइपलाइन का कार्य करता है।
  • वर्ष 2005 में 88 हाथी गलियारे चिन्हित किये गए थे, जो आगे बढ़कर 101 हो गए। हालाँकि कई कारणों से ये कॉरिडोर खतरे में हैं।
  • विकास कार्यों के कारण हाथियों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं। कोयला खनन तथा लौह अयस्क का खनन हाथी गलियारे को नुकसान पहुँचाने वाले दो प्रमुख कारक हैं।

हाथी कॉरिडोर की आवश्यकता क्यों?

  • हाथियों को चरने के लिये एक वृहद् मैदान की आवश्यकता होती है किंतु अधिकांश रिज़र्व इस आवश्यकता की पूर्ति नहीं कर पाते हैं। यही कारण है कि हाथी अपने आवास से बाहर से निकल आते हैं, जिससे मनुष्य के साथ हाथियों का संघर्ष बढ़ जाता है।
  • उच्चतम न्यायालय की एक बेंच ने ‘हॉस्पिटेलिटी एसोसिएशन ऑफ मुदुमलाई एवं अन्य (Hospitality Association of Mudumalai and Others) द्वारा मद्रास उच्च न्यायालय के वर्ष 2011 के फैसले के खिलाफ दायर याचिका को खारिज़ कर दिया है। 
    • उच्चतम न्यायालय ने हाथी कॉरिडोर के संदर्भ में रिसॉर्ट मालिकों एवं निजी भूमि मालिकों की व्यक्तिगत आपत्तियों पर सुनवाई के लिये एक समिति के गठन की भी अनुमति दी जिसमें उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश एवं दो अन्य व्यक्ति शामिल होंगे।
    • कई याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि उनके पास अपने रिसॉर्ट्स को संचालित करने के लिये उचित अनुमति थी जो आवासीय स्थानों पर अवस्थित थे।
      • तब उच्च न्यायालय ने सभी याचिकाकर्त्ताओं की शिकायतों को देखने के लिये एक तीन-सदस्यीय जाँच समिति नियुक्त करने का निर्णय लिया जिससे यह पता लगाया जा सके किन प्रतिष्ठानों को ध्वस्त किया जाए और किसे स्थानांतरित किया जाए।

वर्ष 2018 में उच्चतम न्यायालय का आदेश:  

  • उच्चतम न्यायालय ने अगस्त, 2018 में तमिलनाडु सरकार को 48 घंटों के भीतर नीलगिरी पहाड़ी क्षेत्र में हाथी कॉरिडोर पर बने 11 होटलों एवं रिसॉर्ट्स को सील करने या बंद करने का निर्देश दिया था।
    • न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह भी निर्देश दिया था कि वैध परमिट वाले रिसॉर्ट एवं होटल को 24 घंटे के भीतर ज़िला कलेक्टर को अपने दस्तावेज़ पेश करने होंगे।
      • कलेक्टर दस्तावेज़ों को सत्यापित करेगा और यदि वह इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि पूर्व अनुमोदन के बिना एक रिसॉर्ट या होटल का निर्माण किया गया है तो उसे 48 घंटे के भीतर बंद किया जाएगा।
  • गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने जनवरी, 2020 में नीलगिरी ज़िले में हाथी कॉरिडोर से संबंधित मामले की अंतिम सुनवाई के दौरान कहा था कि ‘नीलगिरी ज़िले का मसिनागुड़ी (Masinagudi) क्षेत्र एक संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र है जहाँ हाथियों को रास्ता दिया जाना चाहिये।’

भारत में हाथी कॉरिडोर की स्थिति एवं इससे संबंधित समझौते:

  • वर्ष 2019 में एशियाई हाथी समझौते के तहत पाँच गैर-सरकारी संगठनों द्वारा एक अंब्रेला पहल (Umbrella Initiative) की शुरुआत की गई है जिसमें भारत के 12 राज्यों में हाथियों के लिये मौजूदा 101 गलियारों में से 96 गलियारों को एक साथ सुरक्षित किये जाने का प्रावधान किया गया है। 
    • एक सर्वेक्षण के दौरान देश में सात हाथी गलियारों की स्थिति बहुत खराब पाई गई है।   

    • इस समझौते के तहत गलियारों के लिये आवश्यक भूमि (Land) प्राप्त करने में आने वाली बाधाओं हेतु धन जुटाने का प्रयास किया जा रहा है।
    • इस समझौते में वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के साथ ‘NGO एलीफेंट फैमिली’ (NGOs Elephant Family), इंटरनेशनल फंड फॉर एनिमल वेलफेयर (International Fund for Animal Welfare), IUCN नीदरलैंड और वर्ल्ड लैंड ट्रस्ट (World Land Trust) शामिल हैं।

मुदुमलाई राष्ट्रीय उद्यान (Mudumalai National Park):

Mudumalai-National-Park

  • ‘मुदुमलाई’ नाम का अर्थ है ‘प्राचीन पहाड़ी श्रृंखला’। वास्तव में यह 65 मिलियन वर्ष पुराना है जब पश्चिमी घाट का निर्माण हुआ था।
  • मुदुमलाई राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्यजीव अभयारण्य को एक टाइगर रिज़र्व भी घोषित किया गया है जो तमिलनाडु राज्य के नीलगिरी ज़िले में तीन राज्यों कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के ट्राई-जंक्शन पर अवस्थित है।
  • इस अभयारण्य को पाँच श्रेणियों में विभाजित किया गया है- मसिनागुड़ी, थेपकाडु, मुदुमलाई, करगुडी और नेल्लोटा।
  • यह नीलगिर बायोस्फीयर रिज़र्व (भारत में प्रथम बायोस्फीयर रिज़र्व) का एक हिस्सा है जिसके पश्चिम में वायनाड वन्यजीव अभयारण्य (केरल), उत्तर में बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान (कर्नाटक), दक्षिण में मुकुर्थी राष्ट्रीय उद्यान एवं साइलेंट वैली अवस्थित है।
  • यहाँ लंबी घास की मौजूदगी है जिसे आमतौर पर 'एलीफेंट ग्रास' (Elephant Grass) कहा जाता है।

'प्रोजेक्ट एलीफेंट' (Project Elephant):

  • प्रोजेक्ट एलिफेंट एक केंद्र प्रायोजित योजना है और इसे फरवरी, 1992 में हाथियों के आवास एवं गलियारों की सुरक्षा के लिये लॉन्च किया गया था।
  • यह मानव-वन्यजीव संघर्ष और घरेलू हाथियों के कल्याण जैसे मुद्दों का समाधान करने के उद्देश्य से शुरू की गई है।
  • केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, प्रोजेक्ट एलिफेंट के माध्यम से देश में प्रमुख हाथी रेंज वाले राज्यों को वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान करता है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51A (g):

  • अनुच्छेद 51A(g) में कहा गया है कि भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य होगा कि वह वनों, झीलों, नदियों और वन्य जीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार कार्य करेगा तथा जीवित प्राणियों के प्रति दया का भाव रखेगा।

स्रोत: डाउन टू अर्थ