एनजीटी ने बन्नी घास के मैदानों में चरवाहों के अधिकारों को बरकरार रखा | 26 May 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) ने छह महीने के भीतर गुजरात के बन्नी घास के मैदानों (Banni Grassland) से सभी अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया है।

  • इस अधिकरण ने यह भी कहा कि मालधारी (Maldhari- पशुपालक) वन अधिकार अधिनियम (Forest Rights Act), 2006 की धारा 3 के प्रावधानों के अनुसार इस क्षेत्र में सामुदायिक वनों के संरक्षण का अधिकार जारी रखेंगे।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण

  • यह पर्यावरण संरक्षण और वनों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी एवं शीघ्र निपटान के लिये राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम (National Green Tribunal Act), 2010 के अंतर्गत स्थापित एक विशेष निकाय है।
  • एनजीटी के लिये यह अनिवार्य है कि उसके पास आने वाले पर्यावरण संबंधी मुद्दों का निपटारा 6 महीनों के भीतर हो जाए।
  • इसका मुख्यालय दिल्ली में है, जबकि अन्य चार क्षेत्रीय कार्यालय भोपाल, पुणे, कोलकाता एवं चेन्नई में स्थित हैं।
  • एक वैधानिक निकाय होने के कारण एनजीटी के पास अपीलीय क्षेत्राधिकार है और जिसके तहत वह सुनवाई कर सकता है।

प्रमुख बिंदु

बन्नी घास के मैदान के विषय में:

  • अवस्थिति:
    • यह मैदान गुजरात में कच्छ के रण के पास स्थित एशिया का सबसे बड़ा घास का मैदान है।
    • यह 2,618 किलोमीटर में फैला हुआ है, जिसके अंतर्गत गुजरात का लगभग 45% चरागाह क्षेत्र आता है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र और वनस्पति:
    • बन्नी में दो पारिस्थितिकी तंत्र (आर्द्रभूमि और घास के मैदान) एक साथ पाए जाते हैं।
    • बन्नी में वनस्पति कम सघन रूप में मिलती है और यह वर्षा पर अत्यधिक निर्भर होती है।
      • बन्नी घास के मैदान परंपरागत रूप से चक्रीय चराई (Rotational Grazing) की एक प्रणाली के बाद प्रबंधित किये गए थे।
    • बन्नी में कम उगने वाले पौधों (फोर्ब्स और ग्रामीनोइड्स) का प्रभुत्व है, जिनमें से कई हेलो फाइल (नमक सहिष्णु) हैं, साथ ही यहाँ पेड़ों और झाड़ियों का आवरण भी है।
    • यह क्षेत्र वनस्पतियों और जीवों से समृद्ध है, जिसमें पौधों की 192 प्रजातियाँ, पक्षियों की 262 प्रजातियाँ और स्तनधारियों, सरीसृप तथा उभयचरों की कई प्रजातियाँ रहती हैं।
  • आरक्षित वन:
    •  न्यायालय ने वर्ष 1955 में अधिसूचित किया कि घास का मैदान एक आरक्षित वन होगा (भारतीय वन अधिनियम, 1927 के अनुसार वर्गीकृत सबसे प्रतिबंधित वन)।
    • राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने वर्ष 2019 में ने बन्नी घास के मैदान की सीमाओं का सीमांकन करने और गैर-वन गतिविधियों को प्रतिबंधित करने का आदेश दिया।
    • इस घास के मैदान को भारतीय वन्यजीव संस्थान (Wildlife Institute of India- WII) ने भारत में चीता (Cheetah) के अंतिम शेष आवासों में से एक और इन प्रजातियों के लिये संभावित पुनरुत्पादन स्थल के रूप में पहचाना है।

Banni-Area

मालधारी के विषय में:

  • मालधारी बन्नी में रहने वाला एक आदिवासी चरवाहा समुदाय है।
  • मूल रूप से इस खानाबदोश जनजाति को जूनागढ़ (मुख्य रूप से गिर वन) में बसने के बाद से मालधारी के रूप में जाना जाने लगा।
  • मालधारी का शाब्दिक अर्थ पशु भंडार (माल) का रखवाला (धारी) होता है।
    • इनके पालतू पशुओं में भेड़, बकरी, गाय, भैंस और ऊंट शामिल हैं।
  • गिर वन राष्ट्रीय उद्यान (Gir Forest National Park) लगभग 8,400 मालधारियों का घर है।

वन अधिकार अधिनियम, 2006:

  • इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत वनवासियों को तब तक विस्थापित नहीं किया जा सकता जब तक कि उनके दूसरे स्थान पर बसाने की प्रक्रिया संबंधित अधिकार को सुनिश्चित नहीं किया जाता।
  • इसके अलावा अधिनियम में प्रजातियों के संरक्षण के लिये 'महत्त्वपूर्ण वन्यजीव आवास’ (Critical Wildlife Habitat) स्थापित करने हेतु एक विशेष प्रावधान है।
  • यह वन में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों (Forest Dwelling Scheduled Tribe- FDST) और अन्य पारंपरिक वनवासियों (Other Traditional Forest Dweller- OTFD) की आजीविका तथा खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए वनों के प्रबंधकीय शासन को मज़बूत करता है।
  • यह अधिनियम चार प्रकार के अधिकारों को मान्यता देता है:
    • शीर्षक अधिकार: यह एफडीएसटी और ओटीएफडी द्वारा की जा रही खेती वाली भूमि पर इन्हें स्वामित्व का अधिकार देता है लेकिन यह सीमा  अधिकतम 4 हेक्टेयर तक ही होगी।
    • उपयोग संबंधी अधिकार: गौण वन उत्पादों, चरागाह क्षेत्रों, चरागाही मार्गों आदि के उपयोग का अधिकार प्रदान किया गया है।
    • राहत और विकास संबंधी अधिकार: वन संरक्षण हेतु प्रतिबंधों के अध्ययन, अवैध ढंग से उन्हें हटाने या बलपूर्वक विस्थापित करने के मामले में पुनर्वास और बुनियादी सुविधाओं का अधिकार प्रदान किया गया है।
    • वन प्रबंधन संबंधी अधिकार: इसमें वन संसाधन की रक्षा, पुनरुत्पादन, संरक्षण और प्रबंधन का अधिकार शामिल है, जिसे वे परंपरागत रूप से संरक्षित करते रहे हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ