चार धाम हाईवे परियोजना को एनजीटी की मंज़ूरी | 21 Sep 2017

संदर्भ

उत्तराखंड के चार पावन नगरों के लिये सभी मौसमों में यात्रा के अनुकूल सड़कों के निर्माण की महत्त्वाकांक्षी ‘चारधाम हाईवे परियोजना’ को ‘नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल’ ने मंज़ूरी दे दी है। विदित हो कि 900 किमी लंबे राजमार्ग से जिन तीर्थस्थलों को जोड़ा जाएगा, उनमें केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री धाम शामिल हैं।

पृष्ठभूमि

  • एनजीटी में पहले एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें राष्ट्रीय राजमार्ग-34 के विस्तारीकरण से भागीरथी नदी घाटी में पहाड़ों को तोड़े जाने और हज़ारों पेड़ों के कटाव को लेकर चिंता व्यक्त की गई थी।
  • गौरतलब है कि हरित नियमों के उल्लंघन का अंदेशा व्यक्त करने वाली यह याचिका एनजीटी ने खारिज कर दी। साथ ही राज्य सरकार ने भरोसा दिलाया है कि वे ‘भागीरथी पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र’ अधिसूचना का पालन करते हुए इस परियोजना पर आगे बढ़ेंगे।
  • क्रियान्वयन के दौरान यह सुनिश्चित किया जाएगा कि किसी भी तरह का मलबा नदी और पहाड़ के नीचे के वन्य क्षेत्र में नहीं फेंका जाए। दरअसल, चारधाम हाईवे परियोजना रणनीतिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह चीन की सीमा के पास है।

चारधाम हाईवे परियोजना क्या है?

  • चारधाम यात्रा पर श्रद्धालुओं को सड़क हादसों एवं प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है, लेकिन इस चारधाम महामार्ग विकास परियोजना के सफल क्रियान्वयन से न सिर्फ चारधाम की यात्रा आसान होगी, बल्कि पहाड़ी क्षेत्र का विकास भी होगा। ऋषिकेश से शुरू होने वाली यह केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री तक जाएगी।
  • चारधाम प्रोजेक्ट के तहत उत्तराखंड में 900 किलोमीटर लंबे राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण किया जाना है। इस पर 12,000 करोड़ रुपए की लागत आने का अनुमान है। इन रास्तों पर कई पुल, बाईपास और विशेष टनल बनाए जाएंगे।
  • प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा इस परियोजना का उद्घाटन दिसम्बर 2016 में किया गया था।

एनजीटी क्या है?

  • एनजीटी की स्थापना 18 अक्टूबर 2010 को एनजीटी अधिनियम 2010 के तहत पर्यावरण बचाव, वन संरक्षण, प्राकृतिक संसाधनों सहित पर्यावरण से संबंधित किसी भी कानूनी अधिकार के प्रवर्तन, क्षतिग्रस्त व्यक्ति अथवा संपत्ति के लिये अनुतोष और क्षतिपूर्ति प्रदान करने एवं इससे जुडे़ हुए मामलों के प्रभावशाली और तीव्र गति से निपटारे के लिये की गई है।
  • यह एक विशिष्ट निकाय है, जो पर्यावरण विवादों एवं बहु-अनुशासनिक मामलों को सुविज्ञता से संचालित करने के लिये सभी आवश्यक तंत्रों से सुसज्जित है।
  • अधिकरण का उद्देश्य पर्यावरण के मामलों को द्रुत गति से निपटाना तथा उच्च न्यायालयों के मुकदमों के भार को कम करने में मदद करना है।