हवा में नया खतरा | 23 Apr 2018

चर्चा में क्यों ?
एक नए अध्ययन ने भारत में मलेरिया की घटनाओं के पैटर्न में बड़े बदलाव की पुष्टि की है जिसमें यह बताया गया है कि भारत में बड़े पैमाने पर दर्ज़ किये जाने वाले पी विवैक्स (मलेरिया का धीमा प्रकार) की बजाय पी फाल्सीपेरम (मलेरिया का एक विषाक्त रूप) के मामलों में वृद्धि दर्ज की जा रही है। इस अध्ययन को विज्ञान से संबंधित पत्रिका ‘पीएलओएस वन’ (PLOS ONE) में प्रकाशित किया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • मनुष्यों में मलेरिया मादा एनाफिलीज़ मच्छर के माध्यम से फैलता है।
  • यह प्लाज्मोडियम परजीवी की पी फाल्सीपेरम, पी मलेरिया, पी ओवल, पी विवैक्स नामक चार अलग-अलग प्रजातियों में से किसी भी एक प्रकार के कारण हो सकता है।
  • इन चारों प्रकारों में से पी फाल्सीफेरम जनित संक्रमण मलेरिया का सबसे घातक रूप होता है, जबकि पी विवैक्स जनित संक्रमण हल्के प्रकार का होता है।
  • मलेरिया के मामलों के वितरण में बदलावों को समझने के लिये आईसीएमआर-राष्ट्रीय जनजाति स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान, जबलपुर के वैज्ञानिकों और उनके सहयोगियों ने देश के भीतर मलेरिया संक्रमण के विभिन्न प्रकारों के भार का खाका तैयार किया।
  • उन्होंने 11 भौगोलिक स्थानों से मलेरिया जैसे लक्षणों वाले 2,300 से अधिक मरीज़ों के रक्त के नमूने एकत्रित किये। 
  • शोधकर्त्ताओं ने मिश्रित संक्रमणों एवं किसी एक ही मरीज़ में दो-या-दो से अधिक प्रजातियों द्वारा संक्रमण से संबंधित मामलों का उच्च अनुपात दर्ज किया।
  • शोधकर्त्ताओं ने मलेरिया परजीवियों के विभेदक संक्रमण का अध्ययन करने के लिये विभिन्न प्रकाशनों से  पिछले 13 वर्षों के आँकड़े एकत्रित किये।
  • भारत 2030 तक मलेरिया उन्मूलन की योजना बना रहा है, लेकिन मलेरिया की घटनाओं में यह  बदलाव लक्षित मलेरिया उन्मूलन के लिये चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
  • मलेरिया के कुल पॉज़िटिव संक्रमणों में से 13 प्रतिशत संक्रमण पी फाल्सीपेरम और पी विवैक्स के मिश्रित संक्रमण थे। ये मुख्यतः मध्य भारत और दक्षिण-पश्चिमी तटीय इलाकों में पाए गए।
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार मिश्रित संक्रमण एक बड़ी चुनौती है क्योंकि ऐसे संक्रमण गंभीर किस्म के  मलेरिया से संबंधित होते हैं और इनके लिये अभी भी समुचित उपचार प्रोटोकॉल परिभाषित नहीं किया गया है।

उभरती चुनौती 

  • पी मलेरिया अभी तक ओडिशा तक ही सीमित था, लेकिन हालिया अध्ययन से पता चला है कि यह पूरे भारत में फैल रहा है। चिंता की बात यह है कि इस प्रकार के संक्रमण के उपचार के लिये कोई भी परिभाषित दिशा-निर्देश उपलब्ध नहीं हैं।
  • मलेरिया के मिश्रित संक्रमण वाले मामलों में काफी इजाफा हो रहा है, लेकिन अभी भी तकनीकी और पद्धति संबंधित चुनौतियों के कारण इनकी वास्तविक संख्या का पता नहीं लग पा रहा है।

आगे की राह 

  • हालाँकि, इस चुनौती की बेहतर समझ के लिये बड़े स्तर पर अध्ययन की योजना बनाई गई है एवं पीसीआर निदान (PCR diagnosis) का उपयोग करके सभी मलेरिया स्थानिक क्षेत्रों को शामिल करने वाला एक बड़े पैमाने का अध्ययन किया जाना है। इससे मलेरिया की वास्तविक व्यापकता का पता लग पाएगा एवं इसके विभिन्न नियंत्रण उपायों के निर्धारण में सहायता प्राप्त होगी।
  • ध्यातव्य है कि 18 अप्रैल, 2018 को लंदन में मलेरिया पर आयोजित उच्च स्तरीय शिखर सम्मेलन में कॉमनवेल्थ देशों के राजनेताओं से मलेरिया के मामलों में अगले पाँच सालों में 50 प्रतिशत की कमी लाने की गुज़ारिश की गई है। इससे मलेरिया से संबंधित 350 मिलियन मामलों को रोका जा सकेगा और 650,000 जानें बचाई जा सकेंगी जिनमें अधिकांशतः महिलाएँ और बच्चे शामिल हैं।

राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम 

  • भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा मलेरिया उन्मूलन हेतु “राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन संरचना : 2016-2030” जारी की गई है। वर्ष 2030 तक देश से मलेरिया को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के उद्देश्य से तैयार किये गए इस कार्यक्रम में निम्नलिखित पक्षों को शामिल किया गया है।
  • इस कार्यक्रम का उद्देश्य, वर्ष 2022 तक देश के न्यूनतम अथवा मध्यम खतरे वाले राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों से मलेरिया को समाप्त कर, वर्ष 2024 तक देश के हर हिस्से से मलेरिया के संक्रमण संबंधी आँकड़ों को प्रत्येक 1000 व्यक्ति पर एक मामले के आँकड़े तक लाना है।
  • दूसरे चरण के रूप में इस कार्यक्रम का अगला उद्देश्य, देश के जिन क्षेत्रों से मलेरिया उन्मूलन कर दिया गया हो, उन क्षेत्रों में मलेरिया संक्रमण को दोबारा फैलने से रोकना तथा वर्ष 2030 तक पूरे देश को मलेरिया मुक्त बनाना होगा।
  • वस्तुतः इस संरचना का विकास देश से मलेरिया उन्मूलन के लक्ष्य तथा बेहतर स्वास्थ्य एवं जीवन स्तर और गरीबी उन्मूलन की दिशा में योगदान देने के लिये किया गया है।
  • इस कार्यक्रम के सही अनुपालन हेतु देश में मलेरिया की स्थिति के अनुरूप प्रत्येक राज्य/केंद्रशासित  प्रदेश में रणनीतियाँ एवं योजनाएँ आरंभ करने के लिये आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं।