यमन पर नया शांति समझौता | 21 Dec 2018

चर्चा में क्यों?


हाल ही में यमन के हुती विद्रोहियों (Houthi rebels) और राष्ट्रपति अब्द्राबुह मंसूर हादी (Mansur Hadi) के प्रति वफादार सैन्य बलों के बीच होदेदा बंदरगाह शहर (port city of Hodeida) में युद्धविराम पर समझौता हो गया है। गौरतलब है कि स्टॉकहोम (Stockholm) में आयोजित संयुक्त राष्ट्र मध्यस्थ वार्ता (mediated talks) में यह समझौता हुआ।

हालिया परिस्थिति

  • वार्ता के समय, शहर लगभग पूरी तरह सऊदी नेतृत्त्व वाले गठबंधन के हाथों में था।
  • गठबंधन ने यमन में मानवीय सहायता को रोकने के लिये कई महीनों से बंदरगाह को अवरुद्ध किया हुआ था और ज़्यादातर संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के सैनिक लड़ाके ही विद्रोहियों से जूझ रहे थे।
  • इस्तांबुल में वाणिज्य दूतावास के अंदर पत्रकार जमाल खशोगी (Jamal Khashoggi) की हत्या के बाद सऊदी अरब को वैश्विक दबाव में आकर यमन में युद्धविराम करना पड़ा।

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  • खशोगी मामले के बाद यमन और इसकी खराब मानवीय स्थिति पर पूरी दुनिया की निगाह इतनी मज़बूत रही है कि संयुक्त अरब का समर्थन करने वाले अमेरिका ने भी गठबंधन ताकतों में अपनी भागीदारी कम करनी शुरू कर दी।
  • संयुक्त राष्ट्र के दबाव के बाद, सऊदी अरब समर्थित यमन सरकार ने भी वार्ता के लिये हरी झंडी दे दी।

यमन में मानवीय हालात?

  • WHO (World Health Organisation) के अनुसार, 2015 में सऊदी हस्तक्षेप के बाद से यमन में कम से कम 10,000 लोग मारे गए हैं।
  • गठबंधन ताकतों द्वारा किये गए हवाई हमले ने बुनियादी अवसंरचना को तबाह कर दिया, खाद्य पदार्थों और दवाइयों की आपूर्ति में कमी ला दी, जिससे यमन को व्यापक नुकसान झेलना पड़ा है।
  • अगर यमन को सहायता नहीं पहुँचाई गई तो लगभग 12 मिलियन लोग भुखमरी के शिकार हो सकते हैं। इस समय पूरा देश कोलेरा (cholera) के प्रकोप से भी प्रभावित है। यूनिसेफ (United Nations International Children's Emergency Fund-UNICEF) द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, यमन में हर 10 मिनट में एक बच्चे की मृत्यु हो जाती है।

यमन में सऊदी अरब का हस्तक्षेप क्यों?

  • जब शिया हुती विद्रोहियों ने यमन की राजधानी सना (Sana’a) पर कब्जा कर लिया और राष्ट्रपति हादी की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सरकार को दक्षिणी हिस्से में सिमटना पड़ा, तब सऊदी अरब ने यमन में हस्तक्षेप करना शुरू किया।
  • सऊदी अरब ने ईरान पर अरब प्रायद्वीप में अस्थिरता लाने और शिया हुती विद्रोहियों को आर्थिक सहायता देने का आरोप लगाया था। वस्तुतः इस प्रायद्वीप में स्थिरता स्थापित करना सऊदी अरब की योजना थी।
  • किंतु सऊदी अरब के चार वर्षों के अथक प्रयासों के बावजूद हुती विद्रोहियों ने राजधानी सना पर कब्जा जमाने के साथ-साथ उत्तरी यमन के ज़्यादातर हिस्सों पर नियंत्रण कायम किया हुआ है। यही बात सऊदी अरब के लिये परेशानी का सबब बनी हुई है।

क्या युद्ध विराम टिकेगा?

  • कुछ छोटे-मोटे उल्लंघनों को छोड़कर युद्धविराम अब तक बरकरार है और दोनों तरफ दबाव बना हुआ है।
  • हाल के महीनों में जहाँ एक ओर हुती के नियंत्रण से कई इलाके बाहर हुए हैं, वहीं दूसरी ओर सऊदी गठबंधन ताकतों पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ रहा है।
  • समझौते के अनुसार, युद्ध के सभी भागीदारों को 21 दिनों के भीतर होदेदा से वापस लौटना होगा।
  • संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षक, सरकार और विद्रोही प्रतिनिधियों की निगरानी हेतु एक टीम गठित करेंगे ताकि युद्धविराम संधि की निगरानी की जा सके। गौर करने वाली बात यह है कि स्टॉकहोम समझौता मुख्य रूप से यमन की मानवीय स्थितियों पर केंद्रित है।
  • यही कारण है कि केवल होदेदा में युद्धविराम पर सहमति बनी है। सवाल यह है कि क्या युद्ध करने वाले दल संघर्ष के अन्य क्षेत्रों में भी युद्धविराम को लागू करेंगे।
  • यमन के बिखरते राजनीतिक परिदृश्य में दोनों दल अच्छी तरह से फैले हुए हैं। इस आमानवीय संघर्ष का समाधान केवल तभी मिल सकता है जब विद्रोही और सरकार दोनों एक दूसरे के प्रति कुछ राजनीतिक रियायतें बरतें।

स्रोत- द हिंदू