नवीन सागरीय सेवाएँ | 28 Feb 2020

प्रीलिम्स के लिये:

INCOIS, इंडियन सुनामी अर्ली वार्निंग सेंटर, महातरंग महोर्मि

मेन्स के लिये:

आपदा प्रबंधन, सागरीय संसाधन तथा उनसे जुड़ी समस्याएँ

चर्चा में क्यों?

इंडियन नेशनल सेंटर फॉर ओशन इंफॉर्मेशन सर्विसेज (The Indian National Centre for Ocean Information Services-INCOIS), हैदराबाद ने अपने विविध उपयोगकर्त्ताओं को बेहतर ढंग से सागरीय सेवाएँ उपलब्ध कराने हेतु तीन नवीन सेवाएँ प्रारम्भ की है।

INCOIS:

  • वर्ष 1999 में स्थापित यह संस्थान, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ( Ministry of Earth Sciences)के तहत एक स्वायत्त संगठन है।

कार्य:

  • INCOIS सागरीय क्षेत्र में उपयोगकर्त्ताओं को कई प्रकार की निःशुल्क सेवाएँ प्रदान करता है। यह मछुआरों से लेकर अपतटीय तेल अन्वेषण उद्योगों जैसे विशिष्ठ उपयोगकर्ताओं को अपनी सेवाएँ प्रदान करता है।
  • यह भारतीय सुनामी प्रारंभिक चेतावनी केंद्र (Indian Tsunami Early Warning Centre- ITEWC) के माध्यम से सुनामी, तूफान की लहरों आदि पर तटीय आबादी के लिये निगरानी और चेतावनी सेवाएं प्रदान करता है।

ITEWC:

  • इंडियन सुनामी अर्ली वार्निंग सेंटर (ITEWC), INCOIS, हैदराबाद की एक इकाई है जो वैश्विक महासागरों में होने वाली सुनामी की घटनाओं में सलाह तथा पूर्वानुमान जारी करता है।
  • ITEWC प्रणाली में17 ब्रॉडबैंड भूकंपीय स्टेशनों का नेटवर्क ( जो वास्तविक समय में भूकंपीय निगरानी करता है), 4 बॉटम प्रेशर रिकार्डर (Bottom Pressure Recorders- BPR) और 25 ज्वार गेज (Tide Gauge)( जो विभिन्न तटीय स्थानों पर स्थापित हैं) शामिल हैं।
  • यह केंद्र पूरे हिंद महासागर क्षेत्र के साथ-साथ वैश्विक महासागरों में होने वाली सुनामी हेतु उत्तरदायी भूकंपों का पता लगाने में सक्षम है।

ITEWC

प्रारंभ की नवीन सेवाएँ:

  • लघु पोत सलाहकार और पूर्वानुमान सेवा प्रणाली (Small Vessel Advisory and Forecast Services System- SVAS):
    • इसे विशेष रूप से मछली पकड़ने वाले जहाजों के परिचालन में सुधार करने के लिए प्राम्भ किया गया
  • महातरंग महोर्मि पूर्वानुमान प्रणाली (Swell Surge Forecast System- SSFS):
    • यह भारत की विशाल तटीय आबादी के लिये तरंगों के संदर्भ में पूर्वानुमान सूचना जारी करेगा।
  • एल्गी ब्लूम सूचना सेवा (Algal Bloom Information Service- ABIS):
    • इस सेवा के द्वारा हानिकारक एल्गी प्रस्फुटन के संदर्भ में सूचना जारी की जाएगी।

सेवाओं की आवश्यकता:

SVAS:

  • छोटे मछली पालक जहाज दिशा की तथा सागरीय क्षेत्र के संबंध में उचित समय पर सही जानकारी के अभाव में अन्य देशों यथा- पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका आदि के सागरीय क्षेत्रों में चले जाते हैं जहाँ उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है।
  • SWAS प्रणाली भारतीय तटीय जल क्षेत्र में में काम करने वाले छोटे जहाजों के लिये सलाहकार और पूर्वानुमान सेवा उपलब्ध करायेगी। SWAS प्रणाली उपयोगकर्ताओं को संभावित क्षेत्रों के बारे में चेतावनी देती है ताकि जहाज पुन: लौट सके।

SSFS:

  • महातरंग महोर्मि (विशाल तरंगे) के कारण तटीय इलाकों में फ्लैश-बाढ़ (अचानक तेज बारिश या तटीय तरंगों के कारण बाढ़) की घटनाएँ होती हैं, जिससे तटीय इलाकों में विशाल जन-धन की हानि होती है।
  • SSFS प्रणाली के माध्यम से महातरंग महोर्मि की पूर्व सूचना दी जा सकेगी।
  • इस प्रकार की तरंगे मुख्यतया भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमी तट पर उत्पन्न होती है।

महातरंग महोर्मि (Swell Surge):

  • ये विशेष प्रकार की सागरीय तरंगे होती है जिनकी उत्पति सागर तट से काफी दूर होती है तथा ये लंबी दूरी तय करने के बाद तटीय क्षेत्रों में पहुँचती है।
  • इन तरंगों की उत्पत्ति के समय स्थानीय हवाओं या तटीय वातावरण में कोई बदलाव नहीं होता है अत: इनका पूर्वानुमान करना आसान नहीं होता।

भारतीय मौसम विभाग ने निम्नलिखित तरंग सुभेद्य क्षेत्रों की पहचान की है-

  • पूर्वी तटीय भाग
    • उत्तरी उड़ीसा एवं बंगाल तट
    • मछलीपट्नम (आंध्र प्रदेश)
    • नागपट्टनम (तमिलनाडु)
  • पश्चिमी तट
    • उत्तरी महाराष्ट्र तट
    • दक्षिणी गुजरात
    • मुंबई तट
    • कच्छ की खाड़ी (गुजरात)

ABIS:

  • ‘एल्गी प्रस्फुटन’ के कारण तटीय मत्स्य पालन, समुद्री जीवन और जल की गुणवत्ता बुरी तरह प्रभावित होती हैं अतः मछुआरों, पर्यावरण विशेषज्ञ आदि को इसके पूर्वानुमान की आवश्यकता पड़ती थी।
  • INCOIS-ABIS उत्तरी हिंद महासागर के ऊपर फाइटोप्लैंकटन प्रस्फुटन के अनुपात तथा सागरीय भौतिक दशाओं के आधार पर इन घटनाओं के बारे में वास्तविक समय की जानकारी प्रदान करेगा।
  • एल्गी प्रस्फुटन के ऐसे चार संभावित क्षेत्रों की पहचान ब्लूम हॉटस्पॉट्स (Bloom Hotspots) के रूप में की गई है।
    • उत्तर पूर्वी अरब सागर
    • केरल का तटीय जल
    • मन्नार की खाड़ी और
    • गोपालपुर (उड़ीसा) का तटीय जल

सेवाओं का महत्त्व:

  • पड़ोसी देशों से मत्स्यन की सागरीय सीमा से जुड़े विवादों को सुलझाने में मदद मिलेगी।
  • मत्स्य पालन उद्योग को बढ़ावा मिलने से ‘नीली अर्थव्यवस्था’ (Blue economy)के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।
  • “सागर हमारे गृह के सीमांत संसाधन है।” ( Oceans are the Frontier Resource of our Earth) अत: इन सेवाओं से गहन सागरीय अर्थव्यवस्था (Deep sea economy) पर भारत की समझ को बढ़ावा मिलेगा।

के.एम.पणिक्कर ने ‘भारतीय इतिहास पर समुद्री शक्ति के प्रभाव’ निबंध में हिन्द महासागर के महत्त्व को उजागर करते हुए लिखा है कि भारत को सागरीय संसाधनों का अधिकतम दोहन करना चाहिये। अत: हाल ही में प्रारंभ की गयी सेवाएँ उनके इस अभिकथन की पुष्टि करते हैं।

स्रोत: PIB