नई पर्यावरण हितैषी सीमेंट विकसित | 12 Sep 2017

चर्चा में क्यों ?

वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में निर्माण क्षेत्र का योगदान सबसे अधिक है। परंतु भारत जैसे विकासशील देशों के लिये निर्माण क्षेत्र महत्त्वपूर्ण है और यह इनके विकास के लिये आवश्यक भी है। अतः निर्माण गतिविधियों को रोकना फिलहाल संभव नहीं है, परंतु अच्छी तकनीक के इस्तेमाल से इस क्षेत्र द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। इसी दिशा में पिछले दस वर्षों के आपसी सहयोग से भारत और स्विटज़रलैंड ने एक ऐसे सीमेंट निर्माण की सामग्री विकसित की है, जिसके उपयोग से कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। 

सीमेंट निर्माण का पारंपरिक तरीका 

  • पारंपरिक तरीके में सीमेंट को क्लिंकर-चूना पत्थर (clinker-limestone) या क्लिंकर-कैल्साइंड मिट्टी (clinker-calcined clay) के संयोजन से तैयार किया जाता है।  
  • पोर्टलैंड सीमेंट में चूना और मिट्टी को लगभग 1,450 डिग्री सेंटीग्रेड जैसे उच्च तापमान पर तैयार किया जाता है। इस दौरान सबसे अधिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न होती है।  
  • अतः कार्बन डाइऑक्साइड गहन क्लिंकर को किसी स्वच्छ विकल्प से हटाने की आवश्यकता महसूस की गई। भारत में अब तक इसके लिये फ्लाई ऐश (Fly Ash) का इस्तेमाल किया जाता है, परंतु यह भी सर्व सुलभ नहीं होती।

नई तकनीक और इसके लाभ 

  • भारत और स्विटज़रलैंड के शोधकर्त्ताओं ने चूना पत्थर कैल्साइंड क्ले सीमेंट (Limestone Calcined Clay Cement) या एलसी-3 प्रौद्योगिकी (LC-3 technology) का विकास किया है, जिसके प्रयोग से सीमेंट उद्योग में कार्बन का उत्सर्जन 30 फीसदी कम हो सकता है। 
  • एलसी-3 प्रौद्योगिकी में 50% क्लिंकर, 30% कैल्साइंड मिट्टी, 15% पिसा हुआ चूना पत्थर और 5% जिप्सम को मिलाकर नई सीमेंट तैयार की गई। 
  • नई सीमेंट पारंपरिक सीमेंट से मज़बूत पाई गई है।
  • इसके अलावा इसकी एक और खासियत है। समुद्र तटीय इलाकों में क्लोराइड फैलने के कारण प्रबलित कंक्रीट क्षतिग्रस्त हो जाता है, परंतु नई सीमेंट में सरंध्रता (porosity) कम होने के कारण इसमें क्लोराइड प्रवेश नहीं कर पाता है, जिसके कारण यह सुरक्षित रह सकता है। इससे नई सीमेंट को लंबी जीवन अवधि प्राप्त होती है।