आर्कटिक पहुँचा न्यू डेल्ही सुपरबग जीन | 29 Jan 2019

चर्चा में क्यों?


हाल ही में पता चला है कि न्यू डेल्ही सुपरबग जीन अब आर्कटिक तक पहुँच गया है। गौरतलब है कि यह सुपरबग जीन लगभग एक दशक पहले दिल्ली के पानी में खोजा गया था।


प्रमुख बिंदु

  • अब तक न्यू डेल्ही सुपरबग जीन 100 से ज़्यादा देशों में देखा जा चुका है और कई जगहों पर इसके नए वैरिएंट भी देखने को मिले है।
  • आर्कटिक के स्वालबार्ड द्वीप (Svalbard) के आठ अलग-अलग स्थानों से जुटाए गए सैंपल में एंटीबायोटिक रज़िस्टेंट जीन (Antibiotic Resistance Genes-ARG) के रूप में NDM-1 की पहचान की गई है जिसे न्यू डेल्ही मैटलो-बीटा-लैक्टामेज़-1 (New Delhi Metallo-beta-lactamase-1) कहा जाता है।
  • इस तरह के एंटीबायोटिक रज़िस्टेंट जीन (ARG) विभिन्न सूक्ष्म जीवों में एक से ज़्यादा दवाओं के प्रति प्रतिरोधकता (Multidrug-resistant-MDR) पैदा करते हैं।
  • विभिन्न बैक्टीरिया में दवा प्रतिरोधकता पैदा करने में सक्षम प्रोटीन NDM-1 की पहचान सबसे पहले वर्ष 2008 में की गई थी। उस समय क्लीनिकल परीक्षण में इस प्रोटीन वाले जीन blaNDM-1 को देखा गया था।

आर्कटिक कैसे पहुँचा सुपरबग?

  • वैज्ञानिकों का मानना है कि विभिन्न जीवों और मनुष्यों के पेट में मिलने वाले blaNDM-1 व अन्य एंटीबायोटिक रज़िस्टेंट जीन (ARG) संभवतः आर्कटिक आने वाले पक्षियों और पर्यटकों के ज़रिये यहाँ पहुँचे होंगे।
  • ध्रुवीय क्षेत्र धरती के प्राचीनतम संरक्षित पारिस्थितिक तंत्र में शामिल हैं। इनसे प्री-एंटीबायोटिक काल को समझने में मदद मिलती है।

बहुत जटिल है दवा प्रतिरोधकता की समस्या

  • आर्कटिक जैसे क्षेत्र में सुपरबग का पहुँचना यह साबित करता है कि एंटीबायोटिक रज़िस्टेंट बहुत तेज़ी से फैल रहा है।
  • कुछ ही ऐसे एंटीबायोटिक हैं जो दवाओं के प्रति प्रतिरोधी हो चुके बैक्टीरिया से लड़ने में सक्षम हैं। ऐसे में blaNDM-1 और अन्य एंटीबायोटिक रज़िस्टेंट जीन (ARG) का दुनियाभर में फैलना चिंता का विषय बनता जा रहा है।

क्या है न्यू डेल्ही सुपरबग

  • न्यू डेल्ही मिटेलो बीटा लेक्टामेस-1 (New Delhi Metallo-beta-lactamase-1) एक ऐसा जीन है जो एक बैक्टीरिया के ज़रिये शरीर में प्रवेश करता है।
  • यह इतना शक्तिशाली होता है कि इसके चलते शरीर पर एंटीबायोटिक्स दवाएँ भी असर करना बंद कर देती हैं।

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  • NDM-1 आसानी से एक बैक्टीरिया से दूसरे में पहुँच जाता है। इसके बाद यह एक दूसरा बैक्टीरिया उत्पन्न करता है जो एंटीबायोटिक्स दवाओं का असर नहीं होने देता है।
  • यह कई प्रकार की बीमारियाँ पैदा कर सकता है जो बहुत ही तेज़ी के साथ लोगों में फैल सकती हैं। इस बैक्टीरिया से बच पाना अब तक संभव नहीं हो पाया है।

इस संबंध में भारत का रुख

  • अब तक भारत का एंटीबायोटिक प्रतिरोध अभियान अनावश्यक एंटीबायोटिक दवाओं की खपत में कटौती करने पर केंद्रित रहा है।
  • लेकिन ‘द 2017 नेशनल प्लान ऑन एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेंस’ (The 2017 National Action Plan on Antimicrobial Resistance) में पहली बार इन दवा निर्माताओं द्वारा वातावरण में एंटीबायोटिक दवाओं को डंप करने की बात कही गई।
  • विदित हो कि इस समस्या की गंभीरता की पहचान करते हुए वर्ष 2012 में ‘चेन्नई डिक्लरेशन’ (Chennai Declaration) में सुपरबग के बढ़ते खतरे से निपटने के लिये व्यापक योजना बनाई गई थी।
  • इस योजना में 30 ऐसी प्रयोगशालाओं की स्थापना की बात की गई थी जो एंटीबायोटिक दवाओं के अत्यधिक उपयोग से उत्पन्न समस्याओं के समाधान की दिशा में काम करेंगे।
  • एंटीबायोटिक दवाओं के अधिक प्रयोग को रोकने के लिये सरकार ने बिक्री योग्य दवाओं की नई सूची जारी कर उसके आधार पर ही दवा विक्रेताओं को दवा बेचने का निर्देश दिया है। लेकिन, कहीं भी आसानी से एंटीबायोटिक दवाओं का मिल जाना चिंताजनक है। अतः इस संबंध में निगरानी तंत्र को और अधिक चौकस बनाए जाने की आवश्यकता है।
  • हालाँकि, इसमें एक महत्त्वपूर्ण बिंदु संतुलन बनाए रखने का भी है। पूरे विश्व में अभी भी एंटीबायोटिक दवाओं समेत अन्य आवश्यक दवाओं की कमी से मरने वालों की संख्या एंटीबायोटिक प्रतिरोध से मरने वालों से कहीं ज़्यादा है। यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ हमें सावधानीपूर्वक आगे बढ़ना होगा।

क्या होता है सुपरबग?

  • वर्ष 1928 में जब अलेक्ज़ेंडर फ्लेमिंग ने पहली एंटीबायोटिक ‘पेन्सिसीन’ का अविष्कार किया तो यह खोज जीवाणुओं के संक्रमण से निपटने में जादू की छड़ी की तरह काम करने लगी।
  • समय के साथ एंटीबायोटिक दवाओं का धड़ल्ले से प्रयोग होने लगा। लेकिन, एंटीबायोटिक खा-खाकर बैक्टीरिया अब इतना ताकतवर हो गया है कि उस पर इसका असर न के बराबर हो गया है।
  • धीरे-धीरे यही प्रभाव अन्य सूक्ष्मजीवियों (Micro-Organism) के संदर्भ में भी देखने को मिलने लगा, यानी एंटीफंगल (Antifungal), एंटीवायरल (Antiviral) और एंटीमलेरियल (Antimalarial) दवाओं का भी असर कम होने लगा।
  • अतः एंटीबायोटिक प्रतिरोध (Antibiotic Resistance) ही नहीं बल्कि एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance) आज समस्त विश्व के लिये एक बड़ा खतरा है, क्योंकि इससे सामान्य से भी सामान्य बीमारियों के कारण मौत हो सकती है।
  • एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध विकसित करने वाले सूक्ष्मजीवों को ‘सुपरबग’ के नाम से जाना जाता है। सुपरबग एक ऐसा सूक्ष्मजीवी है, जिस पर एंटीमाइक्रोबियल दवाओं का प्रभाव नहीं पड़ता है।

स्रोत- द हिंदू