दिल्ली में विधायी शक्तियों का टकराव | 02 May 2022

प्रिलिम्स के लिये:

भारत के संविधान में 69वाँ संशोधन।

मेन्स के लिये:

नई दिल्ली सरकार बनाम केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2021, सहकारी संघवाद, संवैधानिक संशोधन।

चर्चा में क्यों?

दिल्ली को राज्य का दर्जा प्राप्त न होने के कारण नई दिल्ली के क्षेत्रीय प्रशासन के लिये निर्वाचित सरकार और उपराज्यपाल (LG-केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त) के बीच शक्तियों को लेकर लंबे समय से टकराव रहा है।

  • दोनों के बीच कई अवसरों पर विवाद हुआ है, जिसमें भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो, सिविल सेवा और बिजली बोर्ड जैसी एजेंसियों पर नियंत्रण शामिल है। 
  • इसके अलावा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम, 1991 में  हुआ 2021 का संशोधन बताता है कि संघर्ष की संभावना खत्म नहीं हुई है। 

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नई दिल्ली का गवर्नेंस मॉडल:

  • संविधान की अनुसूची 1 के तहत दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश होने का दर्जा प्राप्त है जबकि संविधान के 69वें संशोधन अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 239AA के तहत 'राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र' का नाम दिया गया है।
  • 69वें संशोधन द्वारा भारत के संविधान में अनुच्छेद 239AA को सम्मिलित किया गया, जिसने केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली को एक उपराज्यपाल द्वारा प्रशासित करने की घोषणा की, जो निर्वाचित विधानसभा की सहायता एवं सलाह पर काम करता है।
    • हालाँकि 'सहायता और सलाह' खंड केवल उन मामलों से संबंधित है, जिन पर निर्वाचित विधानसभा के पास राज्यसमवर्ती सूचियों के तहत सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस तथा भूमि के अपवाद के साथ अधिकार प्राप्त हैं।
  • इसके अलावा अनुच्छेद 239AA यह भी कहता है कि उपराज्यपाल को या तो मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना होता है या वह राष्ट्रपति द्वारा किसी संदर्भ में लिये गए निर्णय को लागू करने के लिये बाध्य होता है।
  • साथ ही अनुच्छेद 239AA के अनुसार, उपराज्यपाल के पास मंत्रिपरिषद के निर्णय को राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित करने की विशेष शक्तियाँ हैं।
  • इस प्रकार उपराज्यपाल और निर्वाचित सरकार के बीच इस दोहरे नियंत्रण से सत्ता-संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होती है।

इस मामले में न्यायपालिका की राय:

  • दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा केंद्रशासित प्रदेश के रूप में दिल्ली की स्थिति को देखते हुए केंद्र सरकार के पक्ष में निर्णय किया गया।
  • हालांँकि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उपराज्यपाल  (Lieutenant Governor-LG) की तुलना में दिल्ली की चुनी हुई सरकार की शक्तियों से संबंधित कानून के महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर फैसला करने हेतु मामले को एक संविधान पीठ को संदर्भित कर दिया गया।
  • संवैधानिक पीठ को संदर्भित मामले को एनसीटी बनाम यूओआई मामला, 2018 (NCT vs UOI case, 2018) के रूप में जाना जाता है। पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने NCT के प्रशासन में एक नया न्यायशास्त्रीय अध्याय के मार्ग को प्रशस्त किया। 
    • उद्देश्यपूर्ण निर्माण: न्यायालय ने उद्देश्यपूर्ण निर्माण के नियम का हवाला देते हुए कहा कि संविधान (69वांँ संशोधन) अधिनियम के पीछे उद्देश्य अनुच्छेद 239AA की व्याख्या का मार्गदर्शन करना है।
      • अर्थात् अनुच्छेद 239AA में संघवाद और लोकतंत्र के सिद्धांत शामिल हैं, जिससे अन्य केंद्रशासित प्रदेशों से भिन्न स्थिति प्रदान करने की संसदीय मंशा का पता चलता है।
    • उपराज्यपाल द्वारा सहायता और सलाह पर कार्रवाई करना: न्यायालय ने घोषणा की कि उपराज्यपाल मंत्रिपरिषद की "सहायता और सलाह" के अधीन कार्य करता है, यह देखते हुए कि दिल्ली विधानसभा के पास राज्य सूची में शामिल तीन विषयों को छोड़कर समवर्ती सूची में शामिल सभी विषयों पर कानून बनाने की शक्ति है।
      • उपराज्यपाल को मंत्रिपरिषद की "सहायता और सलाह" पर कार्य करना चाहिये, सिवाय इसके कि वह किसी मामले को अंतिम निर्णय के लिये राष्ट्रपति को संदर्भित करे।
    • हर मामले में लागू नही: किसी भी मामले को राष्ट्रपति को संदर्भित करने के लिये उपराज्यपाल की शक्ति, जिस पर उपराज्यपाल और मंत्रिपरिषद के बीच मतभेद है, के बारे में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि "किसी भी मामले" का अर्थ "हर मामले" से नहीं लगाया जा सकता है,” और ऐसा संदर्भ केवल असाधारण परिस्थितियों में ही उत्पन्न होगा। 
    • सहायक के रूप में उपराज्यपाल: उपराज्यपाल स्वयं को निर्वाचित मंत्रिपरिषद के विरोधी के रूप में प्रस्तुत करने के बजाय एक सूत्रधार के रूप में कार्य करेगा।  
    • नई दिल्ली को राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता: साथ ही न्यायालय ने फैसला सुनाया कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली को संवैधानिक योजना के तहत राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है।

आगे की राह 

  • संवैधानिक विश्वास के माध्यम से कार्य करना:  शीर्ष अदालत ने सही निष्कर्ष निकाला था कि संविधान और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम,1991 में निर्धारित योजना एक सहयोगी संरचना की परिकल्पना करती है जिसे केवल संवैधानिक विश्वास के माध्यम से ही साकार किया जा सकता है।
  • सब्सिडियरी का सिद्धांत (Principle of Subsidiarity) सुनिश्चित करना: सब्सिडियरी (राजकोषीय संघवाद का संस्थापक) सिद्धांत आवश्यक रूप से उपराष्ट्रीय सरकारों को सशक्त बनाता है।
    • इसलिये केंद्र सरकार को शहरी सरकारों को अधिक-से-अधिक शक्तियाँ आवंटित करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिये।
    • इस संदर्भ में भारत को जकार्ता और सियोल से लेकर लंदन व पेरिस जैसे महानगरों का अनुसरण करना चाहिये जहाँ मज़बूत उप-राष्ट्रीय सरकारें कार्यरत हैं।

स्रोत: द हिंदू