किसान कारोबारियों की सुविधा हेतु नया मंडी कानून प्रस्तावित | 28 Feb 2017

सन्दर्भ 

केंद्र सरकार वर्ष 2003 के पुराने आदर्श कानून की जगह नया आदर्श मंडी कानून ला रही है, जिसके प्रावधानों के माध्यम से सरकार कृषि उपज विपणन समिति (Agricultural Produce Market Committees-APMC) कानून में भारी बदलाव लाने की तैयारी में है।

प्रमुख बिंदु 

  • नए आदर्श मंडी कानून में अधिसूचित बाजार क्षेत्र की अवधारणा को समाप्त करने और निजी मंडियों, किसान-उपभोक्ता बाजारों, इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म की स्थापना को बढ़ावा देने का प्रावधान है। 
  • साथ ही, वेयरहाउसों को छोटी मंडियों में बदला जाएगा ताकि किसानों को बेहतर सुविधाएँ और दाम मिल सके। 
  • इसमें सभी व्यापारियों को राज्य के भीतर सभी तरह  के कृषि बाजारों में कारोबार करने के लिए एकल लाइसेंस देने की वकालत की गई है। 
  • इसके अंतर्गत व्यापारी कुछ फीस देकर मंडियों, छोटी मंडियों, निजी मंडियों और ई-ट्रेडिंग प्लेटफार्म पर कारोबार कर सकते हैं। 
  • प्रस्तावित कानून में इलेक्ट्रॉनिक नैशनल एग्रीकल्चर मार्केट (ई-नाम) जैसे ई-ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म के लिए एकल राष्ट्रव्यापी लाइसेंस का प्रावधान है। 
  • ध्यातव्य है कि सभी मौजूदा कारोबारी लाइसेंसों को कानून लागू होने के छह महीने के भीतर अंतरराज्यीय या राज्य के भीतर कारोबार के लिए एकल लाइसेंस में बदला जाएगा। 
  • नए आदर्श कानून के मुताबिक सभी अधिसूचित कृषि जिंसों को मंडियों में और बाहर बेचा जा सकता है। 
  • इसके अतिरिक्त कृषि उपज प्रसंस्करण कंपनी, वालमार्ट और बिग बाजार जैसी खुदरा श्रंखलाएं, इनसे जुड़े किसान सहकारी संघ और किसान-उत्पादक कंपनियाँ सीधे किसानों और उत्पादकों से कृषि उत्पाद खरीद सकती हैं। 
  • वे एक लाइसेंस लेकर किसी मंडी या निजी बाजार की सीमा के बाहर ऐसा कर सकती हैं।
  • खरीददार अर्थात बड़ी खुदरा श्रंखलाएँ या प्रसंस्करण कंपनी , संग्रह या एकत्रीकरण केंद्र खोल सकती हैं लेकिन उन्हें सरकार को अपनी मासिक रिपोर्ट, खाता और दूसरी जानकारियाँ उपलब्ध करानी होंगी। 
  • बड़ी मात्रा में खरीद करने वाली कंपनियों पर आवश्यक वस्तु कानून के तहत भंडारण सीमा का नियम लागू नहीं होगा और उन्हें लाइसेंस फीस की 0.5 फीसदी राशि मार्केटिंग डेवलपमेंट फंड में देनी होगी। 

प्रस्तावित क़ानून में मंडी समितियों का स्वरूप

  • इस कानून में मंडी समितियों के ढांचे और संयोजन में आमूलचूल बदलाव करके उन्हें ज्यादा लोकतांत्रिक और पारदर्शी बनाने पर जोर दिया गया है। 
  • इसमें 15 सदस्यीय मंडी समिति बनाने की बात कही गई है जिनमें से 10 सदस्य किसान या खेती बाड़ी से जुड़े लोग, तीन राज्य कृषि विभाग के, एक सहकारी संस्था का और एक स्थानीय निकाय का होना चाहिए।
  • किसी भी मंडी, निजी बाजार या छोटी मंडी आदि का अध्यक्ष या उपाध्यक्ष अनिवार्य रूप से किसान होना चाहिए। 
  • एक ही व्यक्ति मंडी समिति के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्य का चुनाव नहीं लड़ सकता 
  • मंडी समिति के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्य का कार्यकाल पाँच वर्ष का होगा ।

नए आदर्श कानून का नियमन

  • कृषि विपणन राज्य का विषय है, इसलिए नए आदर्श कानून पर उनकी क्या प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण है। 
  • इस आदर्श कानून को राज्य/केंद्रशासित प्रदेश कृषि उपज विपणन (विकास एवं नियमन) कानून 2016 के नाम से जाना जाएगा। इसे सभी पक्षों के सुझाव के लिए सार्वजनिक किया गया है और इसके बारे में 15 मार्च तक सुझाव दिए जा सकते हैं। 
  • कृषि उपज विपणन समितियां राज्य सरकारों की देखरेख में काम करती हैं। उनके जुड़े नियम और कानून बनाने का अधिकार भी राज्य सरकारों को है।
  • आईआईएम-अहमदाबाद कृषि प्रबंधन केंद्र के अनुसार इसमें कोई संशय नहीं है कि किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए विकल्पों की जरूरत है और मंडियाँ अब प्रभावी नहीं हैं। लेकिन कृषि विपणन राज्य का विषय है और यह विचारणीय है कि इन सुधारों को राज्य कितना अपनाते हैं ।
  • यह कृषि बाजारों और व्यापार को स्थिर करने के लिए केंद्र की त्रिस्तरीय कानूनी रणनीति की हिस्सा है। 
  • इसके दो अन्य हिस्से आदर्श भूमि पट्टा कानून और आदर्श अनुबंध खेती कानून है।
  • आदर्श कानून में यह प्रावधान भी है कि किसान-विक्रेता से कोई भी मंडी फीस नहीं ली जाएगी और यह जल्दी खराब होने वाले उत्पादों की खरीद फरोख्त पर 1 फीसदी और दूसरे उत्पादों पर 2 फीसदी (मूल्य के अनुसार) से अधिक नहीं होना चाहिए। 
  • यह फीस एक बार ही वसूली जाएगी।
  • कानून में कहा गया है कि कमीशन एजेंट जल्दी खराब होने वाले उत्पादों पर 2 फीसदी और फल तथा सब्जियों पर 4 फीसदी से अधिक कमीशन नहीं वसूल सकते हैं। 
  • कानून का उल्लंघन करने वालों के लिए सामान्य सजा का प्रावधान है। इसे छह महीने की सजा या जुर्माना या फिर दोनों में बदला जा सकता है। 

ध्यातव्य है कि केंद्र सरकार द्वारा पहला आदर्श मंडी कानून वर्ष 2003 में बनाया गया था लेकिन राज्यों ने अपनी सुविधा के मुताबिक इसे टुकड़ों में लागू किया । इससे कृषि उत्पादों की मार्केटिंग में सुधार की पूरी अवधारणा ही पटरी से उतर गई । यही वजह है कि नई परिस्थितियों और बदले हालात में एक नए आदर्श मंडी कानून की आवश्यकता महसूस की जा रही थी । नया आदर्श मंडी कानून इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम सिद्ध हो सकता है।