बिम्सटेक का चौथा शिखर सम्मेलन नेपाल में | 27 Aug 2018

चर्चा में क्यों?

दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिये एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय आर्थिक समूह के सदस्य राष्ट्रों द्वारा मुक्त व्यापार समझौते और बेहतर कनेक्टिविटी जैसे उपायों के माध्यम से इसके उच्चतर रूपरेखा और पुनरुत्थान की मांग की जा रही है।

प्रमुख बिंदु:

  • नेपाल द्वारा चौथे बिम्सटेक (BIMSTEC) शिखर सम्मलेन की मेजबानी 30-31 अगस्त, 2018 को की जाएगी। इस सम्मलेन में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के भाग लेने कि उम्मीद है।
  • उल्लेखनीय है कि पिछले सप्ताह नई दिल्ली में एक सम्मलेन के दौरान बांग्लादेश, थाईलैंड और श्रीलंका द्वारा बंगाल की खाड़ी पहल के लिये बहु क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (BIMSTEC) की ‘स्पष्टता’ बढ़ाने की मांग की गई। साथ ही इसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिये एक जीवंत और संभावना से भरे हुए क्षेत्र के रूप में देखा।

बिम्सटेक के बारे में

  • बिम्सटेक का गठन 1997 में हुआ था।
  • इसके सात सदस्य देश हैं- बांग्लादेश, भूटान, भारत, म्याँमार, नेपाल, थाईलैंड और श्रीलंका।
  • यहाँ विश्व की लगभग 22% आबादी या 1.6 अरब लोग निवास करते हैं जिनका  संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद 2.8 खरब डॉलर है।
  • उपर्युक्त प्रभावशाली आँकड़ों के बावजूद संगठन के पास पिछले इक्कीस वर्षों को उपलब्धि के रूप में अभिव्यक्त करने के लिये कुछ भी नहीं है।
  • इस क्षेत्रीय मंच को आगे बढ़ाने के लिये इन सात देशों के नेताओं ने शिखर वार्ता के स्तर पर केवल तीन बार- 2004, 2008 और 2014 में बैठक आयोजित की ।
  • गौरतलब है कि वर्ष 2016 में ब्रिक्स आउटरीच फोरम में सदस्यों को आमंत्रित किये जाने से इसे काफी प्रोत्साहन प्राप्त हुआ था।
  • भारत द्वारा आमंत्रण को एक संकेत के रूप में देखा गया कि वह दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) के बदले इस समूह को वरीयता दे रहा है जिसकी प्रगति भारत – पाकिस्तान के बीच तनाव के कारण बाधित है।
  • उल्लेखनीय है कि भारत ने अपने सैन्य प्रतिष्ठान पर आतंकवादी हमले के बाद वर्ष 2016 में पाकिस्तान में होने वाले सार्क सम्मलेन से स्वयं को अलग कर लिया था।

बिम्सटेक के समक्ष चुनौतियाँ:

  • इसके समूहीकरण से पूर्व वर्तमान वैश्वीकरण के युग में इसके अंतर्क्रियात्मक सहयोग को गति प्रदान करने की आवश्यकता है।
  • 2014 में ढाका में बिम्सटेक के सचिवालय की स्थापना की गई है लेकिन इसकी पहुँच को सार्क, आसियान जैसे अन्य संगठनों की तरह बढ़ाने की ज़रूरत है।
  • समूह के बीच व्यापार और निवेश को भी बढ़ाने की आवश्यकता है। इसके लिये भारत को चीन और अमेरिका की नीतियों का पालन करना चाहिये जिन्होंने अपने पड़ोसी देशों में व्यापार और निवेश परियोजनाओं पर काफी निवेश किया है।