नेमाटोड्स | 13 Aug 2019

चर्चा में क्यों? 

नेमाटोड (Nematodes) पर किये गए पहले वैश्विक विश्लेषण के अनुसार, बहुत थोड़ी सी मृदा (लगभग एक चुटकी) में 100 से भी अधिक नेमाटोड्स पाए जाते हैं।

नेमाटोड्स (Nematodes): 

  • ये राउंडवॉर्म होते हैं इनका आकार 0.2 मिलीमीटर से लेकर कुछ मीटर तक (भिन्न-भिन्न) हो सकता है।
  • नेमाटोड्स (सूत्रकृमि) की लगभग 15 प्रतिशत प्रजातियाँ पादप परजीवी होती हैं, जो भारत सहित विश्व के अधिकांश देशों में विभिन्न फसलों को गंभीर हानि पहुँचाती हैं और पूरे विश्व को पादप परजीवी सूत्र कृमियों के कारण लगभग 4500 करोड़ रुपए की हानि होती है। 
  • ये चीड़, साइट्रस ट्री, नारियल, धान, मकई, मूँगफली, सोयाबीन, शकरकंद, चुकन्दर, आलू, केला इत्यादि को विशेष रूप से प्रभावित करते हैं। 
  • नेमाटोड्स मृदा से पौधों की जड़ों में प्रवेश कर पौधों की जड़ तने, पत्ती, फूल व बीज को संक्रमित करते हैं। 
  • पौधों में इनका संक्रमण नेमाटोड्स की द्वितीय डिम्भक (लार्वा) अवस्था (2nd Juvenile Larval Stage) द्वारा होता है।
  • नेमाटोड्स एक स्थान से दूसरे स्थान तक संक्रमित मृदा लगे खेती के औज़ारों, हल, जूतों, पानी के प्रवाह, संक्रमित पौधों व कृषि उत्पादों के द्वारा फैलते हैं। इनका नियंत्रण मृदा के धूम्रीकरण, रसायनों व नेमाटोड्स परभक्षियों द्वारा किया जा सकता है।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, पृथ्वी पर प्रत्येक इंसान के सापेक्ष लगभग 57 बिलियन नेमाटोड्स पाए जाते हैं।50 से अधिक शोधकर्त्ताओं की एक टीम ने दुनिया के सभी सात महाद्वीपों से मिट्टी के 6,500 से अधिक नमूने एकत्र किये और उसका विश्लेषण किया। 
  • नेचर में प्रकाशित जर्नल के अनुसार, वर्तमान में नेमाटोड के कारण मिट्टी से होने वाला कार्बन उत्सर्जन लगभग 2.2% है, अतः जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये वैश्विक कार्बन और पोषक चक्रों को समझना अत्यंत आवश्यक है। 
  • वर्तमान में हमारे पृथ्वी की भौतिकी एवं रसायन विज्ञान के बारे में हमारी बहुत अच्छी समझ है, लेकिन इन चक्रों को चलाने वाले जैविक जीवों के बारे में बहुत कम जानकारी प्राप्त की गई है। अतः जलवायु परिवर्तन को समझने एवं उसका समाधान करने के लिये इन जीवों के बारे में अध्ययन करना आवश्यक है। 
  • अध्ययन के अनुसार, कुल नेमेटोड्स का 38% उप-आर्कटिक क्षेत्रों में पाया जाता है। उसके बाद समशीतोष्ण क्षेत्र में इनकी प्रचुरता है। ठंडे क्षेत्रों में इनकी प्रचुरता का प्रमुख कारण यह है कि ठंडे प्रदेशों की मिट्टी के कार्बनिक पदार्थ नेमाटोड के लिये अनुकूल होते है। 
  • उप-आर्कटिक क्षेत्रों में कम तापमान एवं उच्च नमी कार्बनिक पदार्थों के अपघटन दर को कम करती है। इससे कार्बनिक पदार्थ जमा होते हैं जो नेमेटोड के विकास के लिये उचित वातावरण का निर्माण करते हैं। 

भारतीय मृदा 

  • इस अध्ययन के लिये भारत के पश्चिमी एवं पूर्वी घाट तथा हिमालयी मिट्टी का इस्तेमाल किया गया था।
  • हालाँकि भारत में वर्ष 1992 के पृथ्वी शिखर सम्मेलन के बाद से ही जैव विविधता पर ध्यान देना शुरू कर दिया गया था लेकिन यहाँ भूमि के उपर की जैव विविधता पर फोकस किया गया था नीचे की जैव विविधता पर नहीं।
  • अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में जूलॉजी विभाग के प्रोफेसर के अनुसार, नेमाटोड पर्यावरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि वे मिट्टी के लगभग 19% अमोनिया के उत्पादन के लिये ज़िम्मेदार हैं। यह मृदा पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य की महत्त्वपूर्ण जैवसूचक भी है।
  • विभिन्न प्रकार के बैक्टीरिया, कवक, आर्थ्रोपॉड और नेमाटोड मिट्टी में उपस्थित रहते हैं जो मिट्टी में संपूर्ण खाद्य जाल का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं।

स्रोत: द हिंदू