भारत में कुपोषण की स्थिति | 31 Dec 2019

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय पोषण मिशन, कुपोषण

मेन्स के लिये:

भारत में कुपोषण की समस्या, भारत में स्वास्थ्य चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हॉवर्ड और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की एक टीम ने कुपोषण के प्रसार में धन असमानता के प्रभाव का आकलन ज़िला-स्तरीय रुझानों के आधार पर किया है।

  • ध्यातव्य है कि यह आकलन कुपोषण के पाँचों संकेतकों {स्टंटिंग (Stunting), कम वज़न (Underweight), वेस्टिंग (Wasting), जन्म के समय कम वज़न और एनीमिया} और धन असमानता के संदर्भ में किया गया है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • टीम ने प्रत्येक ज़िले को समग्र भार और धन असमानता पर आधारित चार श्रेणियों- असमानता (Disparity), ख़तरा (Pitfall), तीव्रता (Intensity) या समृद्धि (Prosperity) के अंतर्गत वर्गीकृत किया था।
  • शोधकर्ताओं ने वर्ष 2015-16 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 4 (National Family Health Survey- NFHS 4) के डाटा का विश्लेषण किया और पाया कि चार संकेतकों में राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और तेलंगाना में गरीबों में एनीमिया के सर्वाधिक 54.6% मामले पाये गए थे।
  • गुजरात, झारखंड और बिहार के सभी ज़िलों में कम वज़न वाले बच्चों के संदर्भ में धन संबंधी असमानताएँ सबसे अधिक जबकि मिज़ोरम, नगालैंड तथा मणिपुर में सबसे कम थीं।
  • भारत के उत्तर और मध्य क्षेत्र जिसमें उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड शामिल हैं; मुख्य रूप से स्टंटिंग एवं अंडरवेट के मामलों में अधिकतर ‘ख़तरा’ तथा ‘तीव्रता’ वाले ज़िलों की श्रेणी में शामिल हैं।
  • शोध के अनुसार यद्यपि भारत सरकार की नई पहल राष्ट्रीय पोषण मिशन (National Nutrition Mission) से बाल कुपोषण में एक प्रगतिशील गिरावट आई है किंतु यह गिरावट धीमी रही है और सुधारों के संपूर्ण जनसंख्या में समान रूप से वितरण का अभाव है।
  • विश्व स्तर पर मध्यम और निम्न-आय वाले देशों में पाँच वर्ष से कम उम्र के 200 मिलियन से अधिक बच्चों का कुपोषित होना एक बड़ी समस्या है। हालाँकि भारत के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, देश में बाल कुपोषण की संख्या में गिरावट आई है किंतु विभिन्न अध्ययनों के अनुसार गिरावट की दर बहुत धीमी है और भारत अभी भी कुपोषण के खिलाफ संघर्ष कर रहा है।

क्या है कुपोषण?

  • कुपोषण (Malnutrition) वह अवस्था है जिसमें पौष्टिक पदार्थ और भोजन, अव्यवस्थित रूप से ग्रहण करने के कारण शरीर को पूरा पोषण नहीं मिल पाता है। चूँकि हम स्वस्थ रहने के लिये भोजन के ज़रिये ऊर्जा और पोषक तत्त्व प्राप्त करते हैं, लेकिन यदि भोजन में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन तथा खनिजों सहित पर्याप्त पोषक तत्त्व नहीं मिलते हैं तो हम कुपोषण के शिकार हो सकते हैं।
  • कुपोषण तब भी होता है जब किसी व्यक्ति के आहार में पोषक तत्त्वों की सही मात्रा उपलब्ध नहीं होती है।

भारत में कुपोषण के कारण

  • क्रय शक्ति कम होने के कारण गरीब परिवारों को आवश्यक मात्रा में पौष्टिक आहार क्रय करना मुश्किल हो जाता है और जिसके कारण वे कुपोषण का शिकार होते हैं। परिणामस्वरूप उनकी उत्पादन क्षमता में कमी आती है और निर्धनता तथा कुपोषण का चक्र इसी प्रकार चलता रहता है।
  • देश में पौष्टिक और गुणवत्तापूर्ण आहार के संबंध में जागरूकता की कमी स्पष्ट दिखाई देती है फलतः पोषण के प्रति जागरूकता के अभाव के कारण पूरा परिवार कुपोषण का शिकार होता है।
  • पोषण की कमी और बीमारियाँ कुपोषण के प्रमुख कारण हैं। अशिक्षा और गरीबी के चलते भारतीयों के भोजन में आवश्यक पोषक तत्त्वों की कमी पाई जाती है जिसके कारण कई प्रकार के रोग, जैसे- एनीमिया, घेंघा व बच्चों की हड्डियाँ कमज़ोर हो जाती हैं। साथ ही पारिवारिक खाद्य असुरक्षा तथा जागरूकता की कमी भी कुपोषण का एक बड़ा कारण माना जा सकता है।
  • देश में स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता भी इसका एक मुख्य कारण माना जा सकता है। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक, भारत में लगभग 1700 मरीज़ों पर एक डॉक्टर उपलब्ध हो पाता है, जबकि वैश्विक स्तर पर 1000 मरीज़ों पर 1.5 डॉक्टर होते हैं।
  • कुपोषण का बड़ा कारण लैंगिक असमानता भी है। भारतीय महिला के निम्न सामाजिक स्तर के कारण उसके भोजन की मात्रा और गुणवत्ता में पुरुष के भोजन की अपेक्षा कहीं अधिक अंतर होता है।
  • स्वच्छ पेयजल की अनुपलब्धता तथा गंदगी भी कुपोषण का एक बहुत बड़ा कारण है।

कुपोषण से निपटने की महत्त्वपूर्ण रणनीतियाँ:

  • जिन ज़िलों में कुपोषण का प्रसार समान रूप से अधिक है, उन ज़िलों में हस्तक्षेप की एक अलग रणनीति की अपनाने आवश्यकता है।
  • बाल पोषण (Child Nutrition) की प्रगति प्रभावी और समान रूप से सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
  • कृषि को अधिक उत्पादक एवं विविधतापूर्ण बनाना ताकि बेहतर पोषण उपलब्ध हो सके।
  • आय में वृद्धि से संबंधित कार्यक्रमों को गरीबों एवं कुपोषितों के लिये और अधिक लक्षित करना।
  • खाद्य असुरक्षा की सतत् निगरानी करना।
  • स्वास्थ्य सेवाओं के साथ पोषण को भी सम्मिलित करना।

सरकारी प्रयास-

एकीकृत बाल विकास सेवा

(Integrated Child Development Service- ICDS)

  • एकीकृत बाल विकास योजना 6 वर्ष तक के उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाओं तथा स्तनपान कराने वाली महिलाओं को स्वास्थ्य, पोषण एवं शैक्षणिक सेवाओं का एकीकृत पैकेज़ प्रदान करने की योजना है।
  • महिला और बाल विकास मंत्रालय के द्वारा वर्ष 1975 में यह योजना प्रारंभ की गई थी।

स्त्रोत: द हिंदू