राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति | 31 Jan 2023

प्रिलिम्स के लिये:

बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR), अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ, संबंधित पहल।  

मेन्स के लिये:

IPR की आवश्यकता, संधियाँ, IPR का विनियमन, IPR व्यवस्था से संबंधित मुद्दे। 

चर्चा में क्यों? 

राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) नीति के कार्यान्वयन के बाद से देश के IPR पारिस्थितिकी तंत्र में महत्त्वपूर्ण बदलाव देखे गए हैं। हालाँकि ऐसा लगता है कि देश का पेटेंट संबंधी प्रतिष्ठान यह प्रदर्शित करने में काफी समय दे रहा है कि यह पेटेंट-अनुकूल होने की तुलना में अधिक पेटेंट करने वाले के अनुकूल है।

  • IPR में संरचनात्मक और विधायी परिवर्तनों के अनुसार, वर्ष 2021 में बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड (IPAB) का विघटन हुआ था और मुद्दों को हल करने के लिये दिल्ली उच्च न्यायालय में समर्पित IP डिवीज़न स्थापित किये गए थे। 

राष्ट्रीय IPR नीति:

  • परिचय: 
    • वाणिज्य मंत्रालय के तहत उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) ने वर्ष 2016 में राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) नीति को अपनाया।
      • नीति का मुख्य लक्ष्य "क्रिएटिव इंडिया; इनोवेटिव इंडिया" है।   
    • यह पालिसी IP के सभी प्रारूपों को कवर करती है तथा उनके और अन्य एजेंसियों के मध्य तालमेल बनाने का प्रयास करती है तथा कार्यान्वयन एवं समीक्षा के लिये एक संस्थागत तंत्र स्थापित करती है।    
    • DPIIT भारत में IPR विकास के लिये नोडल विभाग है तथा DPIIT के तहत IPR संवर्द्धन और प्रबंधन सेल (CIPAM) की नीतियों को लागू करने के लिये एकल बिंदु है।
    • भारत की IPR व्यवस्था विश्व व्यापार संगठन (WTO) के बौद्धिक संपदा के व्यापार संबंधी पहलुओं (TRIPS) पर समझौते का अनुपालन करती है।
  • उद्देश्य:  
    • IPR जागरूकता: समाज के सभी वर्गों के बीच IPR के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक लाभों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता पैदा करने के लिये आउटरीच एवं संवर्द्धन महत्त्वपूर्ण हैं।  
    • बौद्धिक संपदा का सृजन: IPR सृजन को प्रोत्साहित करना।  
    • कानूनी और विधायी ढाँचा मज़बूत और प्रभावी IPR कानून होना चाहिये, जो बड़े सार्वजनिक हित के साथ मालिकों के अधिकार व हितों को संतुलित करते हैं।  
    • प्रशासन और प्रबंधन: सेवा उन्मुख IPR प्रशासन को आधुनिक और मज़बूत बनाना।  
    • IPR का व्यावसायीकरण: व्यावसायीकरण के माध्यम से IPR के लिये मूल्य प्राप्त करना।  
    • प्रवर्तन और अधिनिर्णयन: IPR उल्लंघनों का मुकाबला करने के लिये प्रवर्तन और अधिनिर्णयन तंत्र को मज़बूत करना।  
    • मानव पूंजी विकास: IPR में शिक्षण, प्रशिक्षण, अनुसंधान और कौशल निर्माण के लिये मानव संसाधनों, संस्थानों एवं क्षमताओं को मज़बूत व विस्तारित करना। 

बौद्धिक संपदा अधिकार: 

  • परिचय: 
    • व्यक्तियों को उनके बौद्धिक सृजन के परिप्रेक्ष्य में प्रदान किये जाने वाले अधिकार ही बौद्धिक संपदा अधिकार कहलाते हैं। वे आमतौर पर निर्माता को एक निश्चित अवधि के लिये अपनी रचना के उपयोग पर एक विशेष अधिकार देते हैं। 
    • मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद-27 में इन अधिकारों का उल्लेख किया गया है, जिसके अनुसार वैज्ञानिक, साहित्यिक या कलात्मक कार्यों के लेखन से उत्पन्न नैतिक और भौतिक हितों की सुरक्षा से लाभ का अधिकार गारंटीकृत है।
    • बौद्धिक संपदा के महत्त्व को पहली बार औद्योगिक संपदा के संरक्षण के लिये पेरिस अभिसमय (1883) और साहित्यिक तथा कलात्मक कार्यों के संरक्षण के लिये बर्न अभिसमय (1886) में मान्यता दी गई थी। 
  • बौद्धिक संपदा अधिकारों के प्रकार: 
    • कॉपीराइट: 
      • साहित्यिक और कलात्मक कार्यों (जैसे किताबें और अन्य लेखन, संगीत रचनाएँ, पेंटिंग, मूर्तिकला, कंप्यूटर प्रोग्राम और फिल्में) के लेखकों के अधिकारों को लेखक की मृत्यु के बाद कम-से-कम 50 वर्ष की अवधि के लिये कॉपीराइट द्वारा संरक्षित किया जाता है।
    • औद्योगिक संपदा: 
      • विशेष रूप से ट्रेडमार्क और भौगोलिक संकेतों में विशिष्ट चिह्नों का संरक्षण:
      • औद्योगिक डिज़ाइन और व्यापार गोपनीयता: 
        • अन्य प्रकार की औद्योगिक संपत्ति को मुख्य रूप से नवाचार, डिज़ाइन और प्रौद्योगिकी के निर्माण को प्रोत्साहित करने के लिये संरक्षित किया जाता है।
  • IPR की आवश्यकता: 
    • नवाचार को प्रोत्साहन: 
      • नई रचनाओं का विधिक संरक्षण आने वाले समय में नवाचार के लिये अतिरिक्त संसाधनों की प्रतिबद्धता को प्रोत्साहित करता है।
    • आर्थिक वृद्धि: 
      • बौद्धिक संपदा का प्रचार और संरक्षण आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देता है, नए रोज़गार तथा उद्योगों का सृजन करता है एवं जीवन की गुणवत्ता और खुशहाली को बढ़ाता है।
    • रचनाकारों के अधिकारों की सुरक्षा:
      • विनिर्मित वस्तुओं के उपयोग के तरीके को विनियमित करने के लिये विशिष्ट, सीमित समय के लिये अधिकारों की अनुमति देकर उनकी बौद्धिक संपदा के रचनाकारों और अन्य उत्पादकों की रक्षा के लिये IPR आवश्यक है।
    • ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस:
      • यह नवाचार और रचनात्मकता को प्रोत्साहन प्रदान करता है तथा व्यापार करने में आसानी सुनिश्चित करता है।
    • प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण:
      • यह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, संयुक्त उद्यम और लाइसेंसिंग के रूप में प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करता है।

IPR से संबंधित संधियाँ और अभिसमय: 

  • वैश्विक: 
    • भारत विश्व व्यापार संगठन का सदस्य है और बौद्धिक संपदा के व्यापार संबंधी पहलुओं (TRIPS समझौते) पर समझौते के लिये प्रतिबद्ध है।
    • भारत विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (World Intellectual Property Organisation- WIPO) का भी सदस्य है, जो पूरे विश्व में बौद्धिक संपदा अधिकारों के संरक्षण को बढ़ावा देने के लिये ज़िम्मेदार निकाय है।
    • भारत IPR से संबंधित निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण WIPO-प्रशासित अंतर्राष्ट्रीय संधियों और अभिसमय का भी सदस्य है:
      • पेटेंट संबंधी प्रक्रिया के प्रयोजनों के लिये सूक्ष्मजीवों के डिपोज़िट की अंतर्राष्ट्रीय मान्यता पर बुडापेस्ट संधि।
      • औद्योगिक संपत्ति के संरक्षण के लिये पेरिस अभिसमय।
      • विश्व बौद्धिक संपदा संगठन की स्थापना करने वाला अभिसमय।
      • साहित्यिक और कलात्मक कार्यों के संरक्षण के लिये बर्न अभिसमय।
      • पेटेंट सहयोग संधि।
  • राष्ट्रीय: 
    • भारतीय पेटेंट अधिनियम, 1970:
      • भारत में पेटेंट प्रणाली के लिये यह प्रमुख कानून वर्ष 1972 में लागू हुआ। इसे भारतीय पेटेंट और डिज़ाइन अधिनियम, 1911 के स्थान पर लाया गया
      • इस अधिनियम को पेटेंट (संशोधन) अधिनियम, 2005 द्वारा संशोधित किया गया था, जिसमें उत्पाद पेटेंट को भोजन, दवाओं, रसायनों और सूक्ष्मजीवों सहित प्रौद्योगिकी के सभी क्षेत्रों तक विस्तारित किया गया था।

IPR व्यवस्था से संबंधित मुद्दे: 

  • सार्वजनिक स्वास्थ्य के संदर्भ में पेटेंट-मित्रता: राष्ट्रीय IPR नीति विश्व स्तर पर सस्ती दवाएँ उपलब्ध कराने में भारतीय दवा क्षेत्र के योगदान को मान्यता देती है। हालाँकि भारत के पेटेंट प्रतिष्ठान ने सार्वजनिक स्वास्थ्य और फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में राष्ट्रीय हित पर पेटेंट-मित्रता (Patent-Friendliness) को प्राथमिकता दी है।
  • डेटा विशिष्टता: विदेशी निवेशकों और बहु-राष्ट्रीय निगमों (Multi-National Corporations- MNC) का आरोप है कि भारतीय कानून दवा या कृषि-रसायन उत्पादों के बाज़ार अनुमोदन के लिये आवेदन के दौरान परीक्षण डेटा या सरकार को प्रस्तुत अन्य डेटा के अनुचित व्यावसायिक उपयोग के खिलाफ सुरक्षा प्रदान नहीं करता है। वे इसके लिये डेटा विशिष्टता कानून की मांग करते हैं।
  • प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी बाज़ार परिणाम: पेटेंट अधिनियम में चार हितधारक हैं: समाज, सरकार, पेटेंट प्राप्तकर्त्ता एवं उनके प्रतियोगी, साथ ही केवल पेटेंट धारकों को लाभ पहुँचाने के लिये अधिनियम की व्याख्या करना और उसे लागू करना अन्य हितधारकों के अधिकारों को कमज़ोर करता है तथा प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी बाज़ार परिणामों की ओर ले जाता है।

निष्कर्ष: 

  • निवेश आकर्षित करने के लिये सिर्फ IPR केंद्रित माहौल को बढ़ावा देना ही काफी नहीं है। IPR का प्रचार राष्ट्रीय हित और सार्वजनिक स्वास्थ्य दायित्त्वों के साथ संतुलित होना चाहिये। "मेक इन इंडिया" को "आत्मनिर्भर भारत" से समझौता किये बिना प्राथमिकता दी जानी चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. 'राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. यह दोहा विकास एजेंडा और ट्रिप्स समझौते के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दोहराता है। 
  2. औद्योगिक नीति और संवर्द्धन विभाग भारत में बौद्धिक संपदा अधिकारों को विनियमित करने के लिये नोडल एजेंसी है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. भारतीय पेटेंट अधिनियम के अनुसार, किसी बीज को बनाने की जैव प्रक्रिया को भारत में पेटेंट कराया जा सकता है। 
  2. भारत में कोई बौद्धिक संपदा अपील बोर्ड नहीं है। 
  3. पादप किस्में भारत में पेटेंट कराए जाने की पात्र नहीं हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


प्रश्न: वैश्वीकृत दुनिया में बौद्धिक संपदा अधिकार महत्त्व रखते हैं और मुकदमेबाज़ी का एक स्रोत है। कॉपीराइट, पेटेंट तथा ट्रेड सीक्रेट्स के बीच व्यापक रूप से अंतर कीजिये। (मुख्य परीक्षा 2014)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस