उत्परिवर्तित कोरोना वायरस | 21 Dec 2020

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नोवेल कोरोनावायरस के एक नए उत्परिवर्ती (Mutated) स्वरूप का पता चला है जो यूनाइटेड किंगडम में फैले नए संक्रमण के लिये उत्तरदायी है।

  • मानव में होने वाले संक्रमण के पहले मामले से लेकर अब तक इस वायरस में कई परिवर्तन हो चुके हैं।

प्रमुख बिंदु

कोरोना वायरस में उत्परिवर्तन

  • उत्परिवर्ती वायरस (Mutant Virus) की पहचान N501Y के रूप में की गई है और इसके चलते स्पाइक प्रोटीन (Spike Protein) में उत्परिवर्तन की संभावना व्यक्त की जा रही है।
    • कोरोनावायरस का स्पाइक प्रोटीन ही वह घटक है जो मानव प्रोटीन के साथ मिलकर संक्रमण की प्रक्रिया शुरू करता है।
    • यह परिवर्तन संभवतः वायरस के व्यवहार को प्रभावित कर सकता है जिसमें वायरस की संक्रमण क्षमता, गंभीर बीमारी के लिये उत्तरदायी होना अथवा टीकों द्वारा विकसित प्रतिरक्षा प्रक्रिया को निष्प्रभावी करना शामिल है।
  • स्पाइक प्रोटीन के एक हिस्से में एकल न्यूक्लियोटाइड (Nucleotide) परिवर्तन हुआ है, इसलिये यह रोग की जैविकी (Biology) या निदान (Diagnostic) को प्रभावित नहीं करेगा।

संक्रमण और टीकाकरण पर प्रभाव:

  • कोरोनावायरस वायरस के विभिन्न टीकों को इस प्रकार विकसित किया गया है कि वे मानव शरीर में स्पाइक प्रोटीन को लक्षित करने में सक्षम एंटीबॉडी का निर्माण कर सकें।
  • टीके स्पाइक के कई क्षेत्रों को एक साथ लक्षित करते हैं, जबकि उत्परिवर्तन किसी एक बिंदु पर होने वाले परिवर्तन को संदर्भित करता है। अतः केवल एक उत्परिवर्तन का तात्पर्य यह नहीं है कि टीके काम नहीं करेंगे।
  • SARS-CoV-2 के सभी उपभेद आनुवंशिक रूप से एक-दूसरे के समान होते हैं और वैज्ञानिकों का मानना है कि इन उत्परिवर्तनों का प्रभाव अब तक देखे गए प्रभावों से अधिक नहीं होगा।
  • कुल मिलाकर उत्परिवर्तनों की कोई निश्चित दिशा नहीं होती, वे किसी भी रूप में विकसित हो सकते हैं।
    • उदाहरण के लिये वायरस का एक अलग स्ट्रेन/रूप अधिक संक्रामक तो हो सकता है लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि उससे बीमारियाँ भी बहुत अधिक हों।
  • शोधकर्त्ताओं को म्यूटेशन पर नज़र रखने की आवश्यकता है क्योंकि अभी तक इस बात के साक्ष्य नहीं मिले हैं कि यूनाइटेड किंगडम में देखा गया इस वायरस का नया स्वरूप अधिक संक्रामक अथवा गंभीर/टीकाकरण का प्रतिरोधी है।

भारत में उत्परिवर्ती संस्करण: शोधकर्त्ताओं ने अब तक भारत में इस प्रकार का कोई उत्परिवर्तन नहीं देखा है।

पूर्व में हुए उत्परिवर्तन:

  • D614G उत्परिवर्तन: इस विशेष उत्परिवर्तन ने मानव में ACE2 ग्राही के साथ वायरस के अधिक दक्षता से संलग्न होने में सहायता की परिणामस्वरूप अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में यह वायरस मानव शरीर में प्रवेश करने में अधिक सफल रहा।
    • D614G ने संक्रमण में वृद्धि प्रदर्शित की है लेकिन साथ ही इसने व्यक्ति की नाक और गले की कोशिकाभित्तियों के साथ संलग्न होने में अधिक दक्षता प्रदर्शित की जिससे संक्रमण का प्रभाव और बढ़ जाता है।

उत्परिवर्तन (Mutation)

  • उत्परिवर्तन का तात्पर्य वायरस के आनुवंशिक अनुक्रम में परिवर्तन से है। 
  • SARS-CoV-2 जो कि एक राइबोन्यूक्लिक एसिड (RNA) वायरस है, के मामले में उत्परिवर्तन अथवा म्यूटेशन का तात्पर्य उस अनुक्रम में परिवर्तन से है जिसमें उसके अणु व्यवस्थित होते हैं
    • SARS-CoV-2 वह वायरस है जो कोविड-19 के लिये उत्तरदायी है।
    • RNA एक महत्त्वपूर्ण जैविक बृहद् अणु (Macromolecule) है जो सभी जैविक कोशिकाओं में उपस्थित होता है।
      • यह मुख्य रूप से प्रोटीन संश्लेषण में शामिल होता है। यह डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल (Deoxyribonucleic acid- DNA) के निर्देशों द्वारा नियंत्रित होता है, इसमें जीवन के विकास एवं रक्षण हेतु आवश्यक आनुवंशिक निर्देश शामिल होते हैं।
  • डीएनए एक कार्बनिक रसायन है जिसमें आनुवंशिक जानकारी तथा प्रोटीन संश्लेषण के लिये निर्देश शामिल होते हैं। यह प्रत्येक जीव की अधिकांश कोशिकाओं में पाया जाता है।
  • RNA वायरस में उत्परिवर्तन प्रायः तब होता है जब स्वयं की प्रतिकृति बनाते समय वायरस से कोई चूक हो जाती है।
    • यदि उत्परिवर्तन/म्यूटेशन के परिणामस्वरूप प्रोटीन संरचना में कोई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होता है तो ही किसी बीमारी के प्रकार में बदलाव हो सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस