हरित निर्माण मानदंड : अभी भी पिछड़े हुए है अधिकांश राज्य | 06 Jun 2018

चर्चा में क्यों?

राज्य ऊर्जा संरक्षण मानदंडों को लागू किये जाने के एक दशक बाद भी अभी तक अधिकांश राज्यों द्वारा इनका अनुपालन नहीं किया जा रहा है। केवल दर्जनभर राज्यों ने ही इन मानदंडों को अपनाया है।

पृठभूमि

  • प्रथम ऊर्जा संरक्षण भवन संहिता (Energy Conservation Building Code -ECBC) को मई 2007 में जारी किया गया था। तब से अब तक केवल 12 राज्यों/संघ शासित प्रदेशों ने ही इसे अधिसूचित किया है।
  • एक दशक बाद इस कोड को जून 2017 में अपडेट किया गया और वे राज्य जिन्होंने इसके पिछले संस्करण को अपनाया है, इन नए मानदंडों का अनुपालन करने के लिये अपनी अधिसूचनाओं को संशोधित कर रहे हैं।

ऊर्जा संरक्षण भवन संहिता

  • 27 मई, 2007 को भारत सरकार द्वारा नए वाणिज्यिक भवनों के लिये ऊर्जा संरक्षण भवन संहिता (ईसीबीसी) को अधिसूचित किया गया।
  • ईसीबीसी में 100 किलोवॉट के संयोजित लोड के साथ या 120 केवीए और इससे अधिक की संविदा मांग वाले नए वाणिज्यिक भवनों के लिये न्यूनतम ऊर्जा मानक तय किये गए हैं।
  • ईसीबीसी ऊर्जा प्रदर्शन के मानदंडों को परिभाषित करता है और उस देश के जलवायु क्षेत्रों को ध्यान में रखता है जहाँ भवन स्थित है।
  • भवन के प्रमुख घटक जो संहिता के माध्यम से संबोधित किये जा रहे हैं :
    ♦ एन्‍वेलप (वॉल, रूफ्स, विंडो)
    ♦ लाइटिंग प्रणाली
    ♦ एचवीएसी प्रणाली
    ♦ जल ताप और पम्पिंग प्रणाली
    ♦ इलेक्ट्रिकल विद्युत प्रणाली
  • ऊर्जा दक्ष भवनों के बाज़ार को आकर्षित करने के लिये प्रोत्साहन देने हेतु ऊर्जा दक्षता ब्यूरो ने भवनों के लिये एक स्वैच्छिक स्टार रेटिंग का विकास किया है जो भवन व इसके क्षेत्रफल में केडब्ल्यूएच/वर्गमीटर/वर्ष में व्यक्त ऊर्जा उपयोग के संदर्भ में भवन के वास्तविक निष्पादन पर आधारित है।
  • वर्तमान में भवनों की चार श्रेणियों (दिन में उपयोग होने वाले कार्यालय भवन/बीपीओ/शॉपिंग मॉल/अस्पताल) के लिये स्वैच्छिक स्टार लेबलिंग कार्यक्रम का विकास किया गया है और इन्हें सार्वजनिक क्षेत्र में लगाया गया है।
  • अलग-अलग श्रेणियों के तहत 150 से अधिक व्यावसायिक भवनों का मूल्यांकन किया गया है।

संहिता का अनुपालन करने वाले राज्य

  • मई 2017 तक ईसीबीसी मानदंडों को नौ राज्यों - राजस्थान, ओडिशा, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश, पंजाब, तेलंगाना, हरियाणा, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक तथा संघ शासित प्रदेश पुद्दुचेरी द्वारा अधिसूचित किया गया है। बहुत जल्द असम और केरल भी इस सूची में शामिल होने जा रहे है।
  • शुरू में राज्य ईसीबीसी को अपनाने के लिये अनिच्छुक थे क्योंकि वाणिज्यिक भवनों के निर्माण के लिये अनुमोदन करते समय इसके दूसरे स्तर के अनुपालन की भी आवश्यकता होती है। इस संबंध में जल्द ही अनुपालन का आकलन करने हेतु एक सॉफ्टवेयर लाने का प्रयास किया जा रहा है।

ड्राफ्ट संशोधन

  • राज्यों की आवश्यकताओं को समायोजित करने के लिये ईसीबीसी संशोधन का मसौदा तैयार किया गया है।
  • नई संहिता के अंतर्गत देश भर में नई व्यावसायिक इमारतों के निर्माण के लिये ऊर्जा प्रदर्शन मानकों को निर्धारित किया गया है। संहिता के तहत अक्षय ऊर्जा को शामिल करने संबंधी प्रावधान एवं एयर-कंडीशनिंग सिस्टम हेतु आवश्यकताओं आदि को शामिल करने की पेशकश की गई है।
  • ईसीबीसी 2017 को अपनाने में होने वाली देरी का परिणाम यह होगा कि इससे 2030 तक ऊर्जा उपयोग में 50 प्रतिशत की कटौती के उद्देश्य को प्राप्त करना और भी कठिन हो जाएगा।

एकाधिक हितधारक

  • विद्युत मंत्रालय द्वारा प्रदत्त एक जानकारी के अनुसार, ईसीबीसी 2017 के सफल अनुपालन से जहाँ एक ओर 2030 तक लगभग 300 अरब इकाइयों की ऊर्जा बचत होगी वहीं दूसरी ओर एक वर्ष में 15 गीगावाट से अधिक की ऊर्जा मांग में कमी आएगी।
  • दूसरे शब्दों में इससे तकरीबन ₹ 35,000 करोड़ की बचत तो होगी ही साथ ही 250 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी भी आएगी।
  • ईसीबीसी को विद्युत मंत्रालय के तहत तैयार किया गया था। हालाँकि, इसका कार्यान्वयन राज्य सरकारों के शहरी विकास विभाग (नगरपालिका निगमों और शहरी स्थानीय निकायों) के साथ नामित राज्य एजेंसियों के सहयोग से किया जा रहा है।
  • संहिता को अपनाने, इसका कार्यान्वयन और प्रवर्तन करने में कई हितधारकों को शामिल किया गया है। इन सब में आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के साथ-साथ राज्य एवं स्थानीय समकक्षों की भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण है।
  • भारत में ईसीबीसी को सफलतापूर्वक कार्यान्वित करने के लिये स्थानीय निकायों के प्रयासों को केंद्रीय और राज्य सरकारों के साथ एकीकृत करना बेहद ज़रुरी है। ईसीबीसी के उचित कार्यान्वयन और निष्पादन के लिये अधिकारियों की ज़िम्मेदारी के साथ-साथ जवाबदेहिता में भी वृद्धि की जानी चाहिये।

ऊर्जा दक्षता में सुधार से स्‍थायी विकास को प्रोत्‍साहन देने और अर्थव्‍यवस्‍था को प्रतिस्‍पर्द्धी बनाने का दोहरा उद्देश्‍य पूरा होता है। ऊर्जा की ज़रूरतों को पूरा करने की विकट चुनौतियों को पहचानते हुए और एक स्‍थायी विधि से वांछित गुणवत्ता की पर्याप्‍त और विविध ऊर्जा प्रदान करते हुए, दक्षता में सुधार लाना ऊर्जा नीति का महत्त्‍वपूर्ण घटक बन गया है। ऊर्जा संरक्षण को घटते ऊर्जा संसाधनों के संरक्षण के विचार के साथ भी अधिक महत्‍व दिया गया है।