अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान और शिक्षा का अधिकार | 16 Feb 2022

प्रिलिम्स के लिये:

अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान (MEI), बच्चों का निशुल्क’ और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम 2009, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21A, अनुच्छेद 29 और 30 के तहत सांस्कृतिक एवं शैक्षिक अधिकार।

मेन्स के लिये:

अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान (MEI) और बच्चों का निशुल्क’ एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 के बीच संबंध।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने मदरसों और वैदिक स्कूलों (अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों- MEI) को बच्चों के निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम 2009 के दायरे से बाहर करने पर सवाल उठाने वाली एक याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया है।

  •  इन संस्थानों को विशेष रूप से अगस्त 2012 के संशोधन द्वारा अनिवार्य शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 में शामिल किया गया था।
  • NCPCR की रिपोर्ट में अल्पसंख्यक संस्थानों की अनुपातहीन संख्या या अल्पसंख्यक संस्थानों में गैर- अल्पसंख्यक वर्ग के प्रभुत्व पर प्रकाश डाला गया है।

 MEI और RTE के संबंध में कानूनी प्रावधान:

  • अनुच्छेद 21A के तहत शिक्षा का अधिकार: यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21(A) (86वें संशोधन) के तहत भारत में 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के महत्त्व के तौर-तरीकों का वर्णन करता है।
    • अधिनियम में समाज के वंचित वर्गों के लिये 25% आरक्षण अनिवार्य है और वंचित समूहों में शामिल हैं:
      • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति
      • सामाजिक रूप से पिछड़ा वर्ग
      • निःशक्तजन
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 में अल्पसंख्यकों और अल्पसंख्यकों द्वारा संचालित संस्थानों के अधिकारों को सुरक्षित करने वाले प्रावधान हैं।
    • अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों को अधिकार प्रदान करता है कि सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षण संस्थाओं की स्थापना करने का अधिकार होगा।
  • अधिनियम की धारा 1(4) और 1(5) के संदर्भ में आरटीई में संशोधन किया गया।
    • RTI अधिनियम की धारा 1(5) में कहा गया है कि "इस अधिनियम में शामिल कोई भी प्रावधान मदरसों, वैदिक पाठशालाओं और प्राथमिक रूप से धार्मिक शिक्षा प्रदान करने वाले शैक्षणिक संस्थानों पर लागू नहीं होगा
    • आरटीई की धारा 1(4) में कहा गया है कि "संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 के प्रावधानों के अधीन इस अधिनियम के प्रावधान बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्रदान करने हेतु लागू होंगे।

याचिकाकर्त्ताओं की दलील:

  • प्रारंभिक वर्षों में धार्मिक प्रभाव से बचना: धारा 1(4) और 1(5) इस बात को निर्धारित करने में विफल हैं कि 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चे अपनी शिक्षा के प्रारंभिक वर्षों में हैं या नहीं और इस तरह की शिक्षा बच्चों के मन में एक धार्मिक संपृक्तार्थ (Religious Connotation) को उत्पन्न कर सकती है।
  • समान स्तर प्रदान करना: सामान्य पाठ्यक्रम और पाठ्यक्रम की शुरुआत से प्रत्येक बच्चे को भविष्य की चुनौतियों के लिये एक समान स्तर पर रखा जा सकेगा।
    • किसी बच्चे का अधिकार केवल मुफ्त शिक्षा तक ही सीमित नहीं होना चाहिये, बल्कि इसे बच्चे की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के आधार पर भेदभाव के बिना समान गुणवत्ता वाली शिक्षा प्राप्त करने के लिये भी विस्तारित किया जाना चाहिये।
  • संवैधानिक मूल्यों का पालन: यह प्रस्तावना के लक्ष्यों, विशेष रूप से बंधुत्व, एकता और राष्ट्रीय एकता के रूप में निर्धारित महान स्वर्णिम लक्ष्यों को प्राप्त करने में सार्थक योगदान देगा।
  • इसलिये न्यायालय वर्ष 2009 के अधिनियम की धारा 1(4) और 1(5) को मनमाना और तर्कहीन घोषित कर सकता है।

आगे की राह

  • अल्पसंख्यक संस्थानों के संबंध में सूचना के अधिकार के तहत दी गई छूट की समीक्षा करने की आवश्यकता है।
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों को सांस्कृतिक, भाषायी और धार्मिक संरक्षण के लिये अपने संस्थान खोलने का अधिकार सुनिश्चित करता है।
    • हालाँकि इसे अनुच्छेद 21(A) का उल्लंघन नहीं करना चाहिये जो बच्चे की शिक्षा के मौलिक अधिकार की रक्षा करता है

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स