मंत्री RTI के अंतर्गत ‘लोक प्राधिकारी’ नहीं माने जाएंगे | 08 Dec 2017

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्रीय सूचना आयोग के उस आदेश को निरस्त कर दिया है जिसमें उसने प्रत्येक मंत्री (केंद्र तथा राज्य सरकारों के) को सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत “लोक प्राधिकारी” घोषित कर दिया था ।

प्रमुख बिंदु

  • उच्च न्यायालय ने केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) द्वारा केंद्र और राज्य सरकारों को जारी उन निर्देशों को भी निरस्त कर दिया जिसमें उसने प्रत्येक मंत्री के कार्यालय में सार्वजनिक सूचना अधिकारी की नियुक्ति करने के लिये राज्यों के मुख्य सचिवों और केंद्र में कैबिनेट सचिव को दो माह का समय दिया था। 
  • निरस्त किये गए आदेश में यह भी शामिल था कि प्रत्येक मंत्री को एक आधिकारिक वेबसाइट उपलब्ध कराई जाए, ताकि वे इस पर अपनी स्वेच्छा से आरटीआई अधिनियम के खंड 4 के तहत सूचनाएँ डाल सकें और उसे समय-समय पर अपडेट कर सकें।
  • इसके अतिरिक्त मंत्रियों द्वारा ली जाने वाली गोपनीयता की शपथ को पारदर्शिता की शपथ में परिवर्तित करने के सीआईसी के सुझाव को भी खारिज़ कर दिया गया है। उच्च न्यायालय ने कहा है कि ये सारे आदेश सीआईसी के अधिकार क्षेत्र से पूरी तरह बाहर हैं।
  • उच्च न्यायालय ने कहा कि CIC को इस मामले में नहीं पड़ना चाहिये था कि मंत्री, ‘लोक प्राधिकारी’ हैं या नहीं, जबकि सूचना आयोग के पास आई अपील मांगी गई सूचना प्रदान करने में हुई देरी से संबंधित थी।

निष्कर्ष 

आम नागरिक विभिन्न सरकारी विभागों के कार्यों से संबंधित सूचनाओं की जानकारी ही RTI के माध्यम से मांगता है। लेकिन यह बेहद आम बात है कि ज़्यादातर सरकारी विभाग अपने समस्त कार्यों का लेखा-जोखा ऑनलाइन या तो जारी ही नहीं करते या करते भी हैं तो काफी देर से। 

किसी विभाग के पास जो भी सूचना है उसे स्कैन करवाकर ऑनलाइन जारी करने का आरटीआई एक्ट 2005 की धारा 4 में प्रावधान है। लेकिन बहुत कम विभाग ऐसा कर रहे हैं। यही कारण है कि कई विभागों के सूचना अधिकारियों के खिलाफ धारा-4 को लेकर बरती जानी वाली लापरवाही की कई शिकायतें दर्ज की जाती हैं। जाँच-पड़ताल में पाया गया है कि मात्र 40-50 प्रतिशत जानकारियाँ ही ऑनलाइन जारी की जाती हैं तथा बाकि जानकारियाँ छिपा ली जाती हैं।

ऐसे में मंत्रियों को ‘लोक प्राधिकारी’ घोषित करने की बजाय सूचना आयोग को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि सभी सरकारी विभाग RTI-act की धारा-4 के प्रावधानों का गंभीरता से पालन करें, तब विभागों पर से RTI-आवेदनों की संख्या का दबाव कम होने की संभावना है।