मध्याह्न भोजन योजना | 15 Jul 2019

चर्चा में क्यों?

पिछले तीन वर्षों में भारत के सरकारी विद्यालयों में मध्याह्न भोजन के उपभोग के कारण भारत में लगभग 900 से अधिक बच्चे बीमार हुए।

प्रमुख बिंदु

  • मानव संसाधन विकास मंत्रालय (Human Resource Development Ministry) के अनुसार, पिछले तीन वर्षों में भोजन की खराब गुणवत्ता के संबंध में लगभग 15 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों से 35 शिकायतें मंत्रालय में दर्ज हुई।
  • मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अनुसार, “पिछले तीन वर्षों और वर्तमान वर्ष में देश में कुल 930 बच्चे बीमार हुए लेकिन उनमें से किसी की मृत्यु नहीं हुई। साथ ही यह भी कहा गया कि बच्चों को पका हुआ और पौष्टिक मध्याह्न भोजन देने की समग्र ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों की है।
  • मध्याह्न भोजन योजना मानव संसाधन विकास मंत्रालय के स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग (Department of School Education and Literacy) के अंतर्गत आती है।

मध्याह्न भोजन योजना (Mid-Day Meal Scheme)

  • मिड डे मील कार्यक्रम को एक केंद्रीय प्रवर्तित योजना के रूप में 15 अगस्त, 1995 को पूरे देश में लागू किया गया था।
  • इसके पश्चात् सितंबर 2004 में कार्यक्रम में व्यापक परिवर्तन करते हुए मेनू आधारित पका हुआ गर्म भोजन देने की व्यवस्था प्रारंभ की गई थी।
  • इस योजना के तहत न्यूनतम 200 दिनों हेतु निम्न प्राथमिक स्तर के लिये प्रतिदिन न्यूनतम 300 कैलोरी ऊर्जा एवं 8-12 ग्राम प्रोटीन तथा उच्च प्राथमिक स्तर के लिये न्यूनतम 700 कैलोरी ऊर्जा एवं 20 ग्राम प्रोटीन देने का प्रावधान है।
  • मिड डे मील कार्यक्रम एक बहुद्देशीय कार्यक्रम है तथा यह राष्ट्र की भावी पीढी के पोषण एवं विकास से जुड़ा हुआ है। इसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
    • प्राथमिक शिक्षा के सार्वजनीकरण को बढ़ावा देना।
    • विद्यालयों में छात्रों के नामांकन में वृद्धि तथा छात्रों को स्कूल में आने के लिये प्रोत्साहित करना।
    • स्कूल ड्राप-आउट को रोकना।
    • बच्चों की पोषण संबंधी स्थिति में वृद्धि तथा सीखने के स्तर को बढ़ावा देना।

स्रोत: द हिंदू