मनरेगा: कार्य दिवसों में वृद्धि की आवश्यकता | 07 Jul 2020

प्रीलिम्स के लिये

मनरेगा और उससे संबंधित आँकड़े

मेन्स के लिये

ग्रामीण गरीब परिवारों की आजीविका में मनरेगा की भूमिका

चर्चा में क्यों?

मनरेगा से संबंधित नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, देश भर के लगभग 1.4 लाख ग्रामीण गरीब परिवारों ने मौज़ूदा वर्ष के शुरुआती महीनों में ही मनरेगा के तहत 100 दिनों के कार्य का कोटा पूरा कर लिया है, जिसके कारण वे अब शेष वर्ष में योजना का लाभ प्राप्त करने के पात्र नहीं रह गए हैं।

  • प्रमुख बिंदु
  • वहीं देश भर के तकरीबन 7 लाख ग्रामीण गरीब परिवार ऐसे हैं, जिन्होंने मौज़ूदा वर्ष के शुरुआती महीनों में अपने कोटे के कुल 80 दिन पूरे कर लिये हैं और अब उनके पास पूरे वर्ष के लिये तकरीबन 20 दिन ही शेष बचे हैं।
  • आँकड़ों के अनुसार, मनरेगा के तहत 100 दिन के कार्य का कोटा पूरा करने वाले परिवारों की संख्या में पहले स्थान पर छत्तीसगढ़ है, जहाँ कुल 60000 परिवार ऐसे हैं जिन्होंने अपने 100 दिन के कार्य का कोटा पूरा कर लिया है और वे इस योजना के लाभ हेतु पात्र नहीं है।
    • इसके पश्चात् आंध्रप्रदेश का स्थान है जहाँ कुल 24,500 परिवारों ने अपना 100-दिवस का कोटा पूरा कर लिया है।

कारण

  • गौरतलब है कि COVID-19 महामारी और लॉकडाउन के कारण लाखों की संख्या में बेरोज़गार प्रवासी श्रमिक अपने गाँवों में लौट रहे हैं और वे अब पूर्ण रूप से मनरेगा मज़दूरी पर निर्भर हैं।
  • मानसून अभी तक सही दिखाई दे रहा है और जो लोग कृषि कार्य कर सकते हैं, उनके लिये यह आगामी कुछ महीनों में कार्य का एक विकल्प हो सकता है।
  • हालाँकि सबसे गंभीर और चिंताजनक स्थिति दिसंबर माह के आस-पास उत्पन्न होगी जब ग्रामीण गरीब परिवारों के पास न तो कृषि कार्य होगा और न ही मनरेगा कार्य।

प्रभाव 

  • यदि महामारी के दौरान ग्रामीण गरीब परिवारों को इस आधार पर मनरेगा के तहत कार्य प्रदान करना बंद कर दिया जाता है कि उन्होंने अपना 100 दिन का कोटा पूरा कर लिया है, तो उन परिवारों के समक्ष एक बड़ा आर्थिक संकट उत्पन्न हो जाएगा। 
  • 1.4 लाख परिवारों की संख्या मनरेगा के तहत लाभ प्राप्त करने वाले कुल परिवारों की संख्या की अपेक्षा काफी कम है, किंतु वर्तमान समय में इन परिवारों के पास मनरेगा के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है।

कार्य दिवस में वृद्धि की आवश्यकता

  • मनरेगा योजना के अंतर्गत सूखे अथवा अन्य प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित ज़िलों के लिये प्रावधान है कि वे अपने क्षेत्र में प्रति दिन 150 दिनों के कार्य की अनुमति देने के लिये संबंधित प्राधिकरण से योजना के विस्तार का अनुरोध कर सकते हैं।
    • यह देखते हुए कि देश में COVID-19 को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जा चुका है, सामाजिक कार्यकर्त्ताओं ने मनरेगा के उपरोक्त प्रावधान को तत्काल प्रभाव से लागू करने की मांग की है।
  • स्थिति को मद्देनज़र रखते हुए तमाम सामाजिक कार्यकर्त्ता सरकार से आग्रह कर रहे हैं कि ग्रामीण गरीब परिवारों की सहायता करने के लिये कार्य दिवस की सीमा को प्रति परिवार कम-से-कम 200 दिन तक बढ़ाया जाए।
  • इसके अलावा सरकार से यह भी मांग की जा रही है कि मनरेगा के तहत प्रतिदिन मिलने वाली मज़दूरी दर में भी बढ़ोतरी की जाए।

मनरेगा (MGNREGA)

  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम अर्थात् मनरेगा को भारत सरकार द्वारा वर्ष 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005 (NREGA-नरेगा) के रूप में प्रस्तुत किया गया था। वर्ष 2010 में नरेगा (NREGA) का नाम बदलकर मनरेगा (MGNREGA) कर दिया गया।
  • मनरेगा कार्यक्रम के तहत प्रत्येक परिवार के अकुशल श्रम करने के इच्छुक व्यस्क सदस्यों के लिये 100 दिवस के गारंटीयुक्त रोज़गार का प्रावधान किया गया है। 
    • वहीं सूखाग्रस्त क्षेत्रों और जनजातीय इलाकों में मनरेगा के तहत 150 दिनों के रोज़गार का प्रावधान है।

आगे की राह 

  • मौजूदा COVID-19 महामारी का देश की अर्थव्यवस्था खास तौर पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा है, जिसके कारण देश के ग्रामीण गरीब परिवारों के समक्ष आजीविका का संकट उत्पन्न हो गया है।
  • इस स्थिति में अधिकांश ग्रामीण गरीब परिवार मनरेगा को आय के एक विकल्प के रूप में देख रहे हैं, किंतु चूँकि मनरेगा के तहत केवल 100 दिवस के कार्य की ही मांग की जा सकती है, इसलिये जिन परिवारों ने अपने 100 दिवस पूरे कर लिये हैं उन्हें आने वाले समय में संकट का सामना करना पड़ सकता है।
  • आवश्यक है कि एक संतुलित उपाय खोजने का प्रयास किया जाए और इस प्रक्रिया में सभी हितधारकों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाए।
  • इसके अलावा सरकार को देश के शहरी गरीबों और निजी क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों की ओर भी ध्यान देना चाहिये और यह सुनिश्चित करना चाहिये कि शहरों में भी किसी व्यक्ति को रोज़गार के संकट का सामना न करना पड़े।

स्रोत: द हिंदू