भारत में लुप्त पुरावशेषों का खतरा | 15 Mar 2023

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI), यूनेस्को, प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्त्व स्थल और अवशेष अधिनियम 1958, पुरावशेष और कला निधि अधिनियम 1972

मेन्स के लिये:

लुप्त कलाकृतियों के संबंध में मुद्दे, पुरावशेषों के संरक्षण से संबंधित पहल  

चर्चा में क्यों?  

"आधिकारिक तौर पर" लुप्त घोषित की गई कलाकृतियों और वैश्विक बाज़ारों में जो सामने आ रही हैं या संग्रहालय के शेल्फों और तालिका में पाई जा रही कलाकृतियों के बीच एक बड़ा अंतर है।

लुप्त शिल्पकृतियों के संबंध में प्रकाशित किये गए मुद्दे:  

  • ASI के अनुसार, वर्ष 2014 में 292 और वर्ष 1976 से 2013 के बीच 13 पुरावशेष विदेशों से भारत वापस लाए गए हैं। 
    • ASI की लुप्त पुरावशेषों की सूची में 17 राज्यों और दो केंद्रशासित प्रदेशों के पुरावशेष शामिल हैं। इसमें मध्य प्रदेश के 139, राजस्थान के 95 और उत्तर प्रदेश के 86 पुरावशेष शामिल हैं। 
  • संसदीय समिति ने कहा कि ASI द्वारा विदेशों से "पुनर्प्राप्त की गई प्राचीन वस्तुओं की संख्या" देश से तस्करी करके लाई गई प्राचीन वस्तुओं की बड़ी संख्या की तुलना में अधिक है जो बड़ी समस्या की छोटी सी झलक है।
  • ASI के अधीन स्मारक और स्थल पूरे देश में पुरातात्त्विक स्थलों एवं स्मारकों की कुल संख्या का "छोटा प्रतिशत" है। 
  • लुप्त पुरावशेषों के खतरे को यूनेस्को द्वारा भी विश्लेषित किया गया है। यह अनुमान है कि "1989 तक भारत से 50,000 से अधिक कला वस्तुओं की तस्करी की गई है।" 

पुरावशेष (Antiquity): 

  • परिचय: 
    • पुरावशेष तथा बहुमूल्य कलाकृति अधिनियम, 1972 जो 1 अप्रैल, 1976 को लागू हुआ, "पुरावशेष" जो कम-से-कम 100 वर्षों से अस्तित्त्व में है, को वस्तु या कला के रूप में परिभाषित करता है।
      • इसमें सिक्के, मूर्तियाँ, पेंटिंग, पुरालेख, पृथक लेख आदि वस्तुएँ शामिल हैं जो विज्ञान, साहित्य, कला, धार्मिक प्रथाओं, सामाजिक लोकाचार या ऐतिहासिक राजनीति को चित्रित करती हैं।
    • "पांडुलिपि, रिकॉर्ड या अन्य दस्तावेज़ जो वैज्ञानिक, ऐतिहासिक, साहित्यिक या सौंदर्यवादी मूल्य के हैं" और जिनकी अवधि "75 वर्ष से कम नहीं है”, को पुरावशेष के रूप शमिल किया जाता है।
  • संरक्षण पहल: 
    • भारतीय:  
      • भारत में संघ सूची की मद- 67, राज्य सूची की मद- 12 तथा संविधान की समवर्ती सूची की मद- 40 देश की विरासत से संबंधित हैं।
      • स्वतंत्रता से पहले पुरावशेष (निर्यात नियंत्रण) अधिनियम अप्रैल 1947 में यह सुनिश्चित करने हेतु पारित किया गया था कि बिना लाइसेंस के किसी भी पुरावशेष का निर्यात नहीं किया जा सकता है।
      • प्राचीन स्मारकों और पुरातात्त्विक स्थलों को विनाश तथा दुरुपयोग से बचाने हेतु वर्ष 1958 में प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्त्व स्थल व अवशेष अधिनियम बनाया गया था।
    • वैश्विक:  
      • यूनेस्को ने सांस्कृतिक संपत्ति के अवैध आयात, निर्यात और स्वामित्त्व के हस्तांतरण को प्रतिबंधित करने एवं रोकने के साधनों पर अभिसमय 1970 स्थापित किया।
      • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भी संघर्ष वाले क्षेत्रों में सांस्कृतिक विरासत स्थलों की सुरक्षा हेतु वर्ष 2015 और 2016 में प्रस्ताव पारित किये।

पुरावशेष का ‘उत्पत्ति स्थान’: 

  • उद्गम में वे सभी मालिक सूची में शामिल हैं जब वस्तु ने निर्माता के नियंत्रण को उस समय तक छोड़ दिया था जब वह वर्तमान मालिक द्वारा अधिग्रहण किया गया था।

पुरावशेषों को वापस लाने की प्रक्रिया:

  • श्रेणियाँ:
    • स्वतंत्रता पूर्व भारत से ले जाए गए पुरावशेष
    • स्वतंत्रता के बाद से मार्च 1976 तक ले जाए गए पुरावशेष
    • अप्रैल 1976 से पुरावशेषों को देश से बाहर ले जाया गया 
  • स्वतंत्रता से पहले भारत से बाहर ले जाए गए पुरावशेषों के लिये उनकी पुनर्प्राप्ति हेतु अनुरोध द्विपक्षीय रूप से या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किया जाना चाहिये।  
    • उदाहरण के लिये नवंबर 2022 में महाराष्ट्र सरकार ने घोषणा की कि वह छत्रपति शिवाजी महाराज की तलवार को लंदन से वापस लाने के लिये कार्य कर रही है।
  • दूसरी और तीसरी श्रेणियों में पुरावशेषों को स्वामित्त्व के प्रमाण के साथ द्विपक्षीय मुद्दे को उठाकर तथा यूनेस्को कन्वेंशन का उपयोग करके आसानी से पुनर्प्राप्त किया जा सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न 1. भारतीय कला विरासत की रक्षा करना इस समय की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये। (2018)

प्रश्न 2. भारतीय दर्शन और परंपरा ने भारत में स्मारकों एवं उनकी कला की कल्पना तथा आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चर्चा कीजिये। (2020)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस